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अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 16/ मन्त्र 2
सूक्त - अथर्वा
देवता - मन्त्रोक्ताः
छन्दः - त्र्यवसाना सप्तपदा बृहतीगर्भातिशक्वरी
सूक्तम् - अभय सूक्त
दि॒वो मा॑दि॒त्या र॑क्षन्तु॒ भूम्या॑ रक्षन्त्व॒ग्नयः॑। इ॑न्द्रा॒ग्नी र॑क्षतां मा पु॒रस्ता॑द॒श्विना॑व॒भितः॒ शर्म॑ यच्छताम्। ति॑र॒श्चीन॒घ्न्या र॑क्षतु जा॒तवे॑दा भूत॒कृतो॑ मे स॒र्वतः॑ सन्तु॒ वर्म॑ ॥
स्वर सहित पद पाठदि॒वः। मा॒। आ॒दि॒त्याः। र॒क्ष॒न्तु॒। भूम्याः॑। र॒क्ष॒न्तु॒। अ॒ग्नयः॑। इ॒न्द्रा॒ग्नी इति॑। र॒क्ष॒ता॒म्। मा॒। पुरस्ता॑त्। अ॒श्विनौ॑। अ॒भितः॑। शर्म॑। य॒च्छ॒ता॒म्। ति॒र॒श्चीन्। अ॒घ्न्या। र॒क्ष॒तु॒। जा॒तऽवे॑दाः। भू॒त॒ऽकृतः॑। मे॒। स॒र्वतः॑। स॒न्तु॒। वर्म॑ ॥१६.२॥
स्वर रहित मन्त्र
दिवो मादित्या रक्षन्तु भूम्या रक्षन्त्वग्नयः। इन्द्राग्नी रक्षतां मा पुरस्तादश्विनावभितः शर्म यच्छताम्। तिरश्चीनघ्न्या रक्षतु जातवेदा भूतकृतो मे सर्वतः सन्तु वर्म ॥
स्वर रहित पद पाठदिवः। मा। आदित्याः। रक्षन्तु। भूम्याः। रक्षन्तु। अग्नयः। इन्द्राग्नी इति। रक्षताम्। मा। पुरस्तात्। अश्विनौ। अभितः। शर्म। यच्छताम्। तिरश्चीन्। अघ्न्या। रक्षतु। जातऽवेदाः। भूतऽकृतः। मे। सर्वतः। सन्तु। वर्म ॥१६.२॥
अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 16; मन्त्र » 2
विषय - अभय और रक्षा की प्रार्थना।
भावार्थ -
(दिवः) द्यौलौक, आकाश से (आदित्यः) आदित्य, १२ मास (मा रक्षन्तु) मेरी रक्षा करें। (भूम्याः) भूमि से (अग्नयः) अग्नि, अग्रणी नेता लोग (रक्षन्तु) रक्षा करें। (पुरस्तात्) आगे से (मा) मुझको (इन्द्राग्नी रक्षताम्) इन्द्र और अग्नि, वायु और आग, एवं राजा और सेनापति रक्षा करें। (अश्विनौ) दिन और रात दोनों, या सूर्य चन्द्र, या अश्व, अश्वारोही जन, (अभितः) इधर उधर से (शर्मयच्छताम्) सुख प्रदान करें। (जातवेदाः) प्रज्ञावान् पुरुष (अघ्न्या) न मारने योग्य (तिरश्चीन्=तिरश्चीः) तिर्यग् योनि के जन्तुओं की (रक्षतु) रक्षा करें। (भूतकृतः) प्राणियों के हितकारी जन अथवा भूत पन्चभूतों के नाना प्रकार के विकारों और विज्ञानों के आविष्कर्ता लोग (मे) मेरे (सर्वतः) सब ओर से (वर्म सन्तु) रक्षाकारी कवच के समान हो।
टिप्पणी -
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ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - अथर्वा ऋषिः। मन्त्रोक्ता देवताः। १ अनुष्टुप्, २ त्र्यवसाना सप्तपदा बृहतीगर्भा अतिशक्वरी द्वयृचं सूक्तम्॥
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