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अथर्ववेद > काण्ड 19 > सूक्त 17

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  • अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 17/ मन्त्र 1
    सूक्त - अथर्वा देवता - मन्त्रोक्ताः छन्दः - उपजगती सूक्तम् - सुरक्षा सूक्त

    अ॒ग्निर्मा॑ पातु॒ वसु॑भिः पु॒रस्ता॒त्तस्मि॑न्क्रमे॒ तस्मि॑ञ्छ्रये॒ तां पुरं॒ प्रैमि॑। स मा॑ रक्षतु॒ स मा॑ गोपायतु॒ तस्मा॑ आ॒त्मानं॒ परि॑ ददे॒ स्वाह॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒ग्निः। मा॒। पा॒तु॒। वसु॑ऽभिः। पु॒रस्ता॑त्। तस्मि॑न्। क्र॒मे॒। तस्मि॑न्। श्र॒ये॒। ताम्। पुर॑म्। प्र। ए॒मि॒। सः। मा॒। र॒क्ष॒तु॒। सः। मा॒। गो॒पा॒य॒तु॒। तस्मै॑। आ॒त्मान॑म्। परि॑। द॒दे॒। स्वाहा॑। १७.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अग्निर्मा पातु वसुभिः पुरस्तात्तस्मिन्क्रमे तस्मिञ्छ्रये तां पुरं प्रैमि। स मा रक्षतु स मा गोपायतु तस्मा आत्मानं परि ददे स्वाह ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अग्निः। मा। पातु। वसुऽभिः। पुरस्तात्। तस्मिन्। क्रमे। तस्मिन्। श्रये। ताम्। पुरम्। प्र। एमि। सः। मा। रक्षतु। सः। मा। गोपायतु। तस्मै। आत्मानम्। परि। ददे। स्वाहा। १७.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 17; मन्त्र » 1

    भावार्थ -
    (अग्निः) अग्रणी, ज्ञानवान् (पुरस्तात्) आगे से या पूर्व की दिशा से (वसुभिः) वसुओं सहित (मा पातु) मेरी रक्षा करे। मैं (तस्मिन्) उसके बलपर या उसपर (क्रमे) आगे पग बढ़ाऊं या उसे वश करूं (तस्मिन् श्रये) मैं उसी में आश्रय लूं (तां) उसीको (पुरम्) अपनी पालक दुर्गनगरी समझकर (प्रैमि) उसको प्राप्त करूं। (स मा रक्षतु) वह मेरी रक्षा करे। (स मा गोपायतु) वह मुझे बचाये रखे। (तस्मै) उसी के हाथों (आत्मानं परिददे) मैं अपने आपको सौंपता हूं। (सु-आहा) यही मेरी उत्तम आहुति है, या त्याग है। इन दशों मन्त्रों में परमेश्वर से रक्षा की प्रार्थना है। राष्ट्र के पक्ष में—भिन्न दिशा के भिन्न भिन्न अधिकारियों या राजा के भिन्न भिन्न गुणों द्वारा उनसे रक्षा की प्रार्थना है। या आधिभौतिक शक्तियों को वश करें, वह वास योग्य अनादि पदार्थों से हमारी रक्षा करें।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - अथर्वा ऋषिः। मन्त्रोक्ता देवताः । १-४ जगत्यः। ५, ७, १० अतिजगत्यः, ६ भुरिक्, ९ पञ्चपदा अति शक्वरी। दशर्चं सूक्तम्॥

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