अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 17/ मन्त्र 10
सूक्त - अथर्वा
देवता - मन्त्रोक्ताः
छन्दः - अतिजगती
सूक्तम् - सुरक्षा सूक्त
बृह॒स्पति॑र्मा॒ विश्वै॑र्दे॒वैरू॒र्ध्वाया॑ दि॒शः पा॑तु॒ तस्मि॑न्क्रमे॒ तस्मि॑ञ्छ्रये॒ तां पुरं॒ प्रैमि॑। स मा॑ रक्षतु॒ स मा॑ गोपायतु॒ तस्मा॑ आ॒त्मानं॒ परि॑ ददे॒ स्वाहा॑ ॥
स्वर सहित पद पाठबृह॒स्पतिः॑। मा॒ । विश्वैः॑। दे॒वैः। ऊ॒र्ध्वायाः॑। दि॒शः। पा॒तु॒। तस्मि॑न्। क्र॒मे॒। तस्मि॑न्। श्र॒ये॒। ताम्। पुर॑म्। प्र। ए॒मि॒। सः। मा॒। र॒क्ष॒तु॒। सः। मा॒। गो॒पा॒य॒तु॒। तस्मै॑। आ॒त्मान॑म्। परि॑। द॒दे॒। स्वाहा॑ ॥१७.१०॥
स्वर रहित मन्त्र
बृहस्पतिर्मा विश्वैर्देवैरूर्ध्वाया दिशः पातु तस्मिन्क्रमे तस्मिञ्छ्रये तां पुरं प्रैमि। स मा रक्षतु स मा गोपायतु तस्मा आत्मानं परि ददे स्वाहा ॥
स्वर रहित पद पाठबृहस्पतिः। मा । विश्वैः। देवैः। ऊर्ध्वायाः। दिशः। पातु। तस्मिन्। क्रमे। तस्मिन्। श्रये। ताम्। पुरम्। प्र। एमि। सः। मा। रक्षतु। सः। मा। गोपायतु। तस्मै। आत्मानम्। परि। ददे। स्वाहा ॥१७.१०॥
अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 17; मन्त्र » 10
विषय - रक्षा की प्रार्थना।
भावार्थ -
(बृहस्पतिः) बृहती वेदवाणी का पालक, या बृहत्=महान् लोकों का पालक (विश्वैः देवेः) समस्त दिव्य पदार्थों द्वारा (ऊर्ध्वायाः दिशः) ऊपर की दिशाओं से (मा पातु) मेरी रक्षा करे। शेष पूर्ववत्।
ईश्वर पक्ष में—अग्नि, वायु, सोम, वरुण, सूर्य, आपः, विश्वकर्मा, इन्द्र, प्रजापति, और बृहस्पति, ये दसों नाम ईश्वर के हैं, वह वसुओं, वास योग्य पृथिव्यादि लोकों से, अन्तरिक्ष से, ११ रुद नाम प्राणों से, आदित्यनाम १२ मासों से, द्यौ, पृथिवी, औषधि, सप्त ऋषि मरुत्, प्राणों से मुझ जीव की रक्षा करें।
राजा पक्ष में—भिन्न भिन्न विभाग की शक्ति प्राप्त करके राजा ही दश नामों को धारण करता है। अथवा उसीके अधीन सेनापति, यदि अधिकारी इन नामों से कहे जाने योग्य हैं। प्राची आदि दिशा, आगे पीछे, दायें बायें, ऊपर नीचे के निदर्शक हैं। शैव आदि पाखण्ड धर्मों में भी एक ही देव के नाना गुणानुरूप नामों से नाना दिशाओं से रक्षा की प्रार्थना करने वाले कवच और स्तोत्र वेद के इस सूक्त का अनुकरण मात्र हैं।
टिप्पणी -
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ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - अथर्वा ऋषिः। मन्त्रोक्ता देवताः । १-४ जगत्यः। ५, ७, १० अतिजगत्यः, ६ भुरिक्, ९ पञ्चपदा अति शक्वरी। दशर्चं सूक्तम्॥
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