अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 17/ मन्त्र 7
सूक्त - अथर्वा
देवता - मन्त्रोक्ताः
छन्दः - अतिजगती
सूक्तम् - सुरक्षा सूक्त
वि॒श्वक॑र्मा मा सप्तऋ॒षिभि॒रुदी॑च्या दि॒शः पा॑तु॒ तस्मि॑न्क्रमे॒ तस्मि॑ञ्छ्रये॒ तां पुरं॒ प्रैमि॑। स मा॑ रक्षतु॒ स मा॑ गोपायतु॒ तस्मा॑ आ॒त्मानं॒ परि॑ ददे॒ स्वाहा॑ ॥
स्वर सहित पद पाठवि॒श्वऽक॑र्मा। मा॒। स॒प्त॒ऋ॒षिऽभिः॑। उदी॑च्याः। दि॒शः। पा॒तु॒। तस्मि॑न्। क्र॒मे॒। तस्मि॑न्। श्र॒ये॒। ताम्। पुर॑म्। प्र। ए॒मि॒। सः। मा॒। र॒क्ष॒तु॒। सः। मा॒। गो॒पा॒य॒तु॒। तस्मै॑। आ॒त्मान॑म्। परि॑। द॒दे॒। स्वाहा॑ ॥१७.७॥
स्वर रहित मन्त्र
विश्वकर्मा मा सप्तऋषिभिरुदीच्या दिशः पातु तस्मिन्क्रमे तस्मिञ्छ्रये तां पुरं प्रैमि। स मा रक्षतु स मा गोपायतु तस्मा आत्मानं परि ददे स्वाहा ॥
स्वर रहित पद पाठविश्वऽकर्मा। मा। सप्तऋषिऽभिः। उदीच्याः। दिशः। पातु। तस्मिन्। क्रमे। तस्मिन्। श्रये। ताम्। पुरम्। प्र। एमि। सः। मा। रक्षतु। सः। मा। गोपायतु। तस्मै। आत्मानम्। परि। ददे। स्वाहा ॥१७.७॥
अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 17; मन्त्र » 7
विषय - रक्षा की प्रार्थना।
भावार्थ -
(विश्वकर्मा) विश्व का रचने वाला परमेश्वर (मा) मेरी (सप्तऋषिभिः) सात ऋषि, सात प्राणों द्वारा (उदीच्याः दिशः) उत्तर दिशा से (पातु) रक्षा करे। अथवा (विश्वकर्मा) शिल्पी जन सात ऋषियों, सात प्रकार के भिन्न ज्ञानवान शिल्पज्ञों से मेरी रक्षा करें। शेष पूर्ववत्।
टिप्पणी -
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ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - अथर्वा ऋषिः। मन्त्रोक्ता देवताः । १-४ जगत्यः। ५, ७, १० अतिजगत्यः, ६ भुरिक्, ९ पञ्चपदा अति शक्वरी। दशर्चं सूक्तम्॥
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