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अथर्ववेद > काण्ड 19 > सूक्त 18

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  • अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 18/ मन्त्र 7
    सूक्त - अथर्वा देवता - मन्त्रोक्ताः छन्दः - प्राजापत्या त्रिष्टुप् सूक्तम् - सुरक्षा सूक्त

    वि॒श्वक॑र्माणं॒ ते स॑प्तऋ॒षिव॑न्तमृच्छन्तु। ये मा॑ऽघा॒यव॒ उदी॑च्या दि॒शोऽभि॒दासा॑त् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वि॒श्वऽक॑र्माणम्। ते। स॒प्त॒ऋ॒षिऽव॑न्तम्। ऋ॒च्छ॒न्तु॒। ये। मा॒। अ॒घ॒ऽयवः॑। उदी॑च्याः। दि॒शः। अ॒भि॒ऽदासा॑त् ॥१८.७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    विश्वकर्माणं ते सप्तऋषिवन्तमृच्छन्तु। ये माऽघायव उदीच्या दिशोऽभिदासात् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    विश्वऽकर्माणम्। ते। सप्तऋषिऽवन्तम्। ऋच्छन्तु। ये। मा। अघऽयवः। उदीच्याः। दिशः। अभिऽदासात् ॥१८.७॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 18; मन्त्र » 7

    भावार्थ -
    (ये अघायवः मा उदीच्याः दिशः अभिदासात् ते) जो दोही मेरे ऊपर उत्तर दिशा से आक्रमण करें वे (सप्तऋषिवन्तं विश्वकर्माणं ऋच्छन्तु) सात ऋपियों से युक्त विश्वकर्मा को प्राप्त होकर नष्ट हो जांय। (ये अघायवः मा एतस्याः दिशः अभिदासात्) जो द्रोही उसी दिशा से मुझ पर आक्रमण करते हैं (ते) वे (मरुत्वन्तम् इन्द्रम् ऋच्छन्तु) मरुतों या नाना वायु, शक्तियों या वायु के समान वेगवान् सैनिकों से सम्पन्न इन्द्र सेनापति को प्राप्त होकर नष्ट हों।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - अथर्वा ऋषिः। मन्त्रोक्ता देवताः। १, ८ साम्न्यौ त्रिष्टुभौ, २-६ आर्ष्यनुटुभौ। ५ सम्राड्=स्वराड्। ७, ९, १०, प्राजापत्यास्त्रिष्टुभः। दशर्चं सूक्तम्॥

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