अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 49/ मन्त्र 3
सूक्त - गोपथः, भरद्वाजः
देवता - रात्रिः
छन्दः - त्रिष्टुप्
सूक्तम् - रात्रि सूक्त
वर्ये॒ वन्दे॒ सुभ॑गे॒ सुजा॑त॒ आज॑ग॒न्रात्रि॑ सु॒मना॑ इ॒ह स्या॑म्। अ॒स्मांस्त्रा॑यस्व॒ नर्या॑णि जा॒ता अथो॒ यानि॒ गव्या॑नि पु॒ष्ठ्या ॥
स्वर सहित पद पाठवर्ये॑। वन्दे॑। सुऽभ॑गे। सु॒ऽजा॑ते। आ। अ॒ज॒ग॒न्। रात्रि॑। सु॒ऽमनाः॑। इ॒ह। स्या॒म्। अ॒स्मान्। त्रा॒य॒स्व॒। नर्या॑णि। जा॒ता। अथो॒ इति॑। यानि॑। गव्या॑नि। पु॒ष्ट्या ॥४९.३॥
स्वर रहित मन्त्र
वर्ये वन्दे सुभगे सुजात आजगन्रात्रि सुमना इह स्याम्। अस्मांस्त्रायस्व नर्याणि जाता अथो यानि गव्यानि पुष्ठ्या ॥
स्वर रहित पद पाठवर्ये। वन्दे। सुऽभगे। सुऽजाते। आ। अजगन्। रात्रि। सुऽमनाः। इह। स्याम्। अस्मान्। त्रायस्व। नर्याणि। जाता। अथो इति। यानि। गव्यानि। पुष्ट्या ॥४९.३॥
अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 49; मन्त्र » 3
विषय - ‘रात्रि’ परम शक्ति का वर्णन।
भावार्थ -
हे (वर्ये) वरण करने योग्य ! हे (वन्दे) वन्दना या स्तुति करने योग्य प्रशंसनीय ! हे (सुभगे) उत्तम ऐश्वर्य से सम्पन्न हे सौभाग्यवति ! हे (सुजाते) शुभरूपे, शुभकुल में उत्पन्न महिला के समान उत्तम रूप से बनाई गई ! हे (रात्रि) राजशक्ते ! और ईश्वरीय शक्ते ! तू (आजगन्) आ, तू निरन्तर आती है। मैं (इह) यहां, इस लोक में (सुमनाः) उत्तम चित्तवाला, सुप्रसन्न होकर (स्याम) रहूं। तू (अस्मान्) हमको या हमारे लिये (जाता) उत्पन्न हुए (नर्याणि) मनुष्यों के उपयोगी (अथो) और (यानि) जो (गव्यानि) पशु आदि के उपयोग के अथवा मनुष्यों से उत्पादित शिल्प द्वारा उत्पन्न और पशुओं से प्राप्त दुग्ध घृत आदि पदार्थ हैं उन सबको (पुष्ट्या) हमारी पुष्टि समृद्धि के लिये (त्रायस्व) पालन कर।
टिप्पणी -
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ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - गोपथो भरद्वाजश्च ऋषी। रात्रिर्देवता। १-५, ८ त्रिष्टुभः। ६ आस्तारपंक्तिः। ७ पथ्यापंक्तिः। १० त्र्यवसाना षट्पदा जगती। दशर्चं सूक्तम्॥
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