अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 49/ मन्त्र 5
सूक्त - गोपथः, भरद्वाजः
देवता - रात्रिः
छन्दः - त्रिष्टुप्
सूक्तम् - रात्रि सूक्त
शि॒वां रात्रि॑मनु॒सूर्यं॑ च हि॒मस्य॑ मा॒ता सु॒हवा॑ नो अस्तु। अ॒स्य स्तोम॑स्य सुभगे॒ नि बो॑ध॒ येन॑ त्वा॒ वन्दे॒ विश्वा॑सु दि॒क्षु ॥
स्वर सहित पद पाठशि॒वाम्। रात्रि॑म्। अ॒नु॒ऽसूर्य॑म्। च॒। हि॒मस्य॑। मा॒ता। सु॒हवा॑। नः॒। अ॒स्तु॒। अ॒स्य। स्तोम॑स्य। सु॒ऽभ॒गे॒। नि। बो॒ध॒। येन॑। त्वा॒। वन्दे॑। विश्वासु। दि॒क्षु ॥४९.५॥
स्वर रहित मन्त्र
शिवां रात्रिमनुसूर्यं च हिमस्य माता सुहवा नो अस्तु। अस्य स्तोमस्य सुभगे नि बोध येन त्वा वन्दे विश्वासु दिक्षु ॥
स्वर रहित पद पाठशिवाम्। रात्रिम्। अनुऽसूर्यम्। च। हिमस्य। माता। सुहवा। नः। अस्तु। अस्य। स्तोमस्य। सुऽभगे। नि। बोध। येन। त्वा। वन्दे। विश्वासु। दिक्षु ॥४९.५॥
अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 49; मन्त्र » 5
विषय - ‘रात्रि’ परम शक्ति का वर्णन।
भावार्थ -
हे (सुभगे) उत्तम ऐश्वर्यवति ! तू (हिमस्य) शत्रुओं को हनन करने वाले राजा की (माता) उत्पन्न करने वाली माता के समान राजा को बनाने वाली, उसको प्रभुत्व देने वाली है। तू (नः) हमें (सुहवा) उत्तम हव=ज्ञान-उपदेश देने में समर्थ (अस्तु) हो। तु (अस्य स्तोमस्य) इस ‘स्तोम’, वीर पुरुषों के उत्पन्न करने के कार्य को (नि बोध) भली प्रकार जान। अर्थात् राज्यतन्त्र को चाहिये कि वह वीरों को बराबर सेना में भर्त्ती करने और नये नये सैनिकों को तैयार करने के कार्य को खूब आवश्यक समझे। (येन) जिसके कारण हम (विश्वासु) समस्त (दिशु) दिशाओं में (त्वा) तुझ (शिवाम्) कल्याणकारिणी (रात्रिम्) सर्वैश्वर्य प्रद—राष्ट्री, राज्यशक्ति को और (अनु सूर्यम्) उसके अनुकूल उसके पोषक या उसके अनुरूप रात्रि के पीछे अनुगमन करने वाले सूर्य के समान उदयशील तेजस्वी राजा के भी (वन्दे) हम गुण और यशोगान करें।
१ – ‘हिमस्य’—हन्तेर्हि च। औणादिर्भक् प्रत्ययः। हन्ति उष्णं दुर्गन्धिं वा तद्धिमम्। हेमन्त ऋतुस्तुषारश्चन्दनं वा इति दया०। हेमन्तो हि इमाः प्रजाः स्ववशमुपनयते। श० १। ३। ४। ५॥ सहश्च सहस्यश्च एतो एव हैमन्तिकौ मासौ। यद् हेमन्त इमाः प्रजाः सहसा इव स्वं वशमुपन यते इमौ हैतौ सहश्च सहस्यश्च। श० ४। ३। १। १८॥ तस्य (पर्जन्यस्य) सेनजित् च सुषेणश्च सेनानीग्रामण्यौ इति हेमन्तिकौ तावृतू। श०८। ६। १। २०। हेम का अर्थ है मारने वाला, दण्ड देने वाला। हेमन्त के जिस प्रकार सहः सहस्य दो मास हैं उसी प्रकार प्रजाके वासयिता राजा कें सहः=शत्रु के पराजेता और सहस्य = बलशाली दो अधिकारी हैं जिनके बल से समस्त प्रजाओं को वह वश करता है। पर्जन्य=अर्थात् मेघ के समान प्रजापति के सेनजित् और सुषेण दोनों हेमन्त ऋतु के दो मासों के समान ही सेनापति और ग्रामणी या ग्रामपति दो अधिकारी होते हैं।
२ – ‘स्तोमस्य’—वीर्यं वै स्तोमाः। तां श०। ५। ४। वीरजननं वै स्तोमः। ता० २१। ९। ३॥ राजा का बल या सेनाबल स्तोम कहाता है।
टिप्पणी -
(प्र०) ‘शिवामे रात्र्यनुत्सूर्यं च’ इति ह्विटनिकामितः। ‘शिवां रात्रि महिन सूर्यं च’ इति पैप्प० सं०। ‘शिवां रात्रि महिसूर्यं च’ इति बहुत्र। ‘रात्रिमहि’ इति सायणाभिमतः। ‘शिवा रात्री मही सूर्यश्च’ इति शं० पा० कामितः। (द्वि०) ‘यमस्य माता०’ इति पैप्प० सं०॥ (तृ०) ‘अश्वस्तोम०’ इति बहुत्र। (च०) ‘वन्द्ये’, ‘वद्ये’ इति क्वचित्।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - गोपथो भरद्वाजश्च ऋषी। रात्रिर्देवता। १-५, ८ त्रिष्टुभः। ६ आस्तारपंक्तिः। ७ पथ्यापंक्तिः। १० त्र्यवसाना षट्पदा जगती। दशर्चं सूक्तम्॥
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