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अथर्ववेद > काण्ड 19 > सूक्त 50

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  • अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 50/ मन्त्र 2
    सूक्त - गोपथः देवता - रात्रिः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - रात्रि सूक्त

    ये ते॑ रात्र्यन॒ड्वाह॑स्ती॒क्ष्णशृ॑ङ्गाः स्वा॒शवः॑। तेभि॑र्नो अ॒द्य पा॑र॒याति॑ दु॒र्गाणि॑ वि॒श्वहा॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ये। ते॒। रा॒त्रि॒। अ॒न॒ड्वाहः॑। तीक्ष्ण॑ऽशृङ्गाः। सु॒ऽआ॒शवः॑। तेभिः॑। नः॒। अ॒द्य। पा॒र॒य॒। अति॑। दुः॒ऽगानि॑। वि॒श्वहा॑ ॥५०.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ये ते रात्र्यनड्वाहस्तीक्ष्णशृङ्गाः स्वाशवः। तेभिर्नो अद्य पारयाति दुर्गाणि विश्वहा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ये। ते। रात्रि। अनड्वाहः। तीक्ष्णऽशृङ्गाः। सुऽआशवः। तेभिः। नः। अद्य। पारय। अति। दुःऽगानि। विश्वहा ॥५०.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 50; मन्त्र » 2

    भावार्थ -
    हे (रात्रि) रात्रि ! दण्डदात्रि ! राजशक्ते ! (ते) तेरे (ये) जो (अनड्वाहः) शकट या राजतन्त्र के भार उठाने वाले धुरन्धर (तीक्ष्णशृङ्गाः) तीखे हिंसासाधन वाले, तीक्ष्ण दण्ड देने हारे, (स्वाशयः) खूब तीव्रगति वाले, अति तीव्र, बुद्धिमान हैं (तेभिः) उनसे (नः) हमें (विश्वहा) सब प्रकार के (दुर्गाणि) दुर्ग स्थानों, कठिन संकटों को भी (अद्य) सदा (अति पारय) पार करा।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - गोपथभरद्वाजावृषी। रात्रिर्देवता। अनुष्टुभः। सप्तर्चं सूक्तम्॥

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