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अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 53/ मन्त्र 7
का॒ले मनः॑ का॒ले प्रा॒णः का॒ले नाम॑ स॒माहि॑तम्। का॒लेन॒ सर्वा॑ नन्द॒न्त्याग॑तेन प्र॒जा इ॒माः ॥
स्वर सहित पद पाठका॒ले। मनः॑। का॒ले। प्रा॒णः। का॒ले। नाम॑। स॒म्ऽआहि॑तम्। का॒लेन॑। सर्वाः॑। न॒न्द॒न्ति॒। आऽग॑तेन। प्र॒ऽजाः। इ॒माः ॥५३.७॥
स्वर रहित मन्त्र
काले मनः काले प्राणः काले नाम समाहितम्। कालेन सर्वा नन्दन्त्यागतेन प्रजा इमाः ॥
स्वर रहित पद पाठकाले। मनः। काले। प्राणः। काले। नाम। सम्ऽआहितम्। कालेन। सर्वाः। नन्दन्ति। आऽगतेन। प्रऽजाः। इमाः ॥५३.७॥
अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 53; मन्त्र » 7
विषय - ‘काल’ परमेश्वर।
भावार्थ -
(काले) काल रूप सर्वज्ञ, सर्वशक्तिमान् सर्वप्रेरक परमेश्वर में (मनः) मन, सब मनन करने वाले अन्तःकरण सीमित हैं। (काले) उसी काल, परमेश्वर में (प्राणः) समष्टि प्राण विद्यमान हैं। (नाम) समस्त पदार्थों के समस्त नाम भी (काले) उस सर्वज्ञ परमेश्वर में ही (सम् अहितम्) भली प्रकार विद्यमान हैं। (आगतेन) अनुकूल रूप से आये हुए (कालेन) उस काल से ही (सर्वाः इमाः) ये समस्त (प्रजाः) प्रजाएं (नन्दन्ति) समृद्ध सम्पन्न और आनन्द प्रसन्न होती हैं।
टिप्पणी -
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ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - भृगुर्ऋषिः सर्वात्मकः कालो देवता। १-४ त्रिष्टुभः। ५ निचृतपुरस्ताद् बृहती। ६-१० अनुष्टुप्।
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