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अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 53/ मन्त्र 8
का॒ले तपः॑ का॒ले ज्येष्ठं॑ का॒ले ब्रह्म॑ स॒माहि॑तम्। का॒लो ह॒ सर्व॑स्येश्व॒रो यः पि॒तासी॑त्प्र॒जाप॑तेः ॥
स्वर सहित पद पाठका॒ले। तपः॑। का॒ले। ज्येष्ठ॑म्। का॒ले। ब्रह्म॑। स॒म्ऽआहि॑तम्। का॒लः। ह॒। सर्व॑स्य। ई॒श्व॒रः। यः। पि॒ता। आसी॑त्। प्र॒जाऽप॑तेः ॥५३.८॥
स्वर रहित मन्त्र
काले तपः काले ज्येष्ठं काले ब्रह्म समाहितम्। कालो ह सर्वस्येश्वरो यः पितासीत्प्रजापतेः ॥
स्वर रहित पद पाठकाले। तपः। काले। ज्येष्ठम्। काले। ब्रह्म। सम्ऽआहितम्। कालः। ह। सर्वस्य। ईश्वरः। यः। पिता। आसीत्। प्रजाऽपतेः ॥५३.८॥
अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 53; मन्त्र » 8
विषय - ‘काल’ परमेश्वर।
भावार्थ -
(काले) कालरूप, सर्वज्ञ परमेश्वर में ही (तपः) समस्त तप, वीर्य, सत्यबल विद्यमान है। (ज्येष्ठं) सबसे बढ़के, सर्वोपरि बल (काले) उस काल में आश्रित है। (ब्रह्म) ब्रह्म, वेदज्ञान (काले) उस काल में ही (समाहितम्) विद्यमान है। (कालः) वह काल (ह) ही (सर्वस्य ईश्वरः) सबका ईश्वर, मालिक है (यः) जो (प्रजापतेः) प्रजा के पालक राजा और (प्रजापतेः) सूर्य, चन्द्र, नक्षत्र आदि तारागणों के प्रतिपालक हिरण्यगर्भ नाम प्रजापति का भी (पिता आसीत्) पिता रहा।
टिप्पणी -
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ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - भृगुर्ऋषिः सर्वात्मकः कालो देवता। १-४ त्रिष्टुभः। ५ निचृतपुरस्ताद् बृहती। ६-१० अनुष्टुप्।
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