Sidebar
अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 53/ मन्त्र 10
का॒लः प्र॒जा अ॑सृजत का॒लो अग्रे॑ प्र॒जाप॑तिम्। स्व॑यं॒भूः क॒श्यपः॑ का॒लात्तपः॑ का॒लाद॑जायत ॥
स्वर सहित पद पाठका॒लः। प्र॒ऽजाः। अ॒सृ॒ज॒त॒। का॒लः। अग्रे॑। प्र॒जाऽप॑तिम्। स्व॒य॒म्ऽभूः। क॒श्यपः॑। का॒लात्। तपः॑। का॒लात्। अ॒जा॒य॒त॒ ॥५३.१०॥
स्वर रहित मन्त्र
कालः प्रजा असृजत कालो अग्रे प्रजापतिम्। स्वयंभूः कश्यपः कालात्तपः कालादजायत ॥
स्वर रहित पद पाठकालः। प्रऽजाः। असृजत। कालः। अग्रे। प्रजाऽपतिम्। स्वयम्ऽभूः। कश्यपः। कालात्। तपः। कालात्। अजायत ॥५३.१०॥
अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 53; मन्त्र » 10
विषय - ‘काल’ परमेश्वर।
भावार्थ -
(कालः) कालरूप परमेश्वर ही (प्रजाः सृजत) समस्त प्रजाओं का सर्जन करता है। (कालः) वही काल परमेश्वर (प्रजापतिम्) प्रजा के पालक हिरण्यगर्भ को (असृजत्) उत्पन्न करता है (स्वयंभूः) स्वयं अपनी शक्ति से विद्यमान (कश्यपः) स्वयंप्रकाश, स्वयं सबका द्रष्टश सूर्य (कालात्) काल से उत्पन्न हुआ और (तपः) तप, तपनशक्ति भी (कालात् अजायत) काल से ही उत्पन्न होती है।
टिप्पणी -
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - भृगुर्ऋषिः सर्वात्मकः कालो देवता। १-४ त्रिष्टुभः। ५ निचृतपुरस्ताद् बृहती। ६-१० अनुष्टुप्।
इस भाष्य को एडिट करें