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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 108

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 108/ मन्त्र 2
    सूक्त - नृमेधः देवता - इन्द्रः छन्दः - ककुबुष्णिक् सूक्तम् - सूक्त-१०८

    त्वं हि नः॑ पि॒ता व॑सो॒ त्वं मा॒ता श॑तक्रतो ब॒भूवि॑थ। अधा॑ ते सु॒म्नमी॑महे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    त्वम् । हि । न॒: । पि॒ता । व॒सो॒ इति॑ । त्वम् । मा॒ता । श॒त॒क्र॒तो॒ इति॑ शतऽक्रतो । ब॒भूवि॑थ ॥ अध॑ । ते॒ । सु॒म्नम् । ई॒म॒हे॒ ॥१०८.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    त्वं हि नः पिता वसो त्वं माता शतक्रतो बभूविथ। अधा ते सुम्नमीमहे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    त्वम् । हि । न: । पिता । वसो इति । त्वम् । माता । शतक्रतो इति शतऽक्रतो । बभूविथ ॥ अध । ते । सुम्नम् । ईमहे ॥१०८.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 108; मन्त्र » 2

    भावार्थ -
    हे (वसो) सबको बसाने हारे ! सब में बसने हारे, व्यापक ! हे (शतक्रतो) सैकड़ों प्रज्ञाओं और बलों से युक्त ! क्योंकि (त्वं हि) तू ही (नः) हमारे (पिता) पिता के समान पालक, उत्पादक और (माता) माता के समान स्नेही, उत्पादक और शिक्षक (बभूविथ) है। (अधा) इसीसे (ते) तुझसे हम (सुम्नम्) सुख की (ईमहे) याचना करते हैं। इसी प्रकार राजा भी प्रजा का माता पिता के समान स्नेह से पालन करें, उसको ऐश्वर्य प्रदान करे।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - नृमेध ऋषिः। इन्द्रो देवता। १ गायत्री, २ ककुप्, ३ पुर उष्णिक्। तृचं सूक्तम्॥

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