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अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 14/ मन्त्र 3
यो न॑ इ॒दमि॑दं पु॒रा प्र वस्य॑ आनि॒नाय॒ तमु॑ व स्तुषे। सखा॑य॒ इन्द्र॑मू॒तये॑ ॥
स्वर सहित पद पाठय: । न॒: । इ॒दम्ऽइ॑दम् । पु॒रा । प्र । वस्य॑: । आ॒ऽनि॒नाय॑ । तम् । ऊं॒ इति॑ । व॒: । स्तु॒षे॒ ॥ सखा॑य: । इ॒न्द्र॑म् । ऊ॒तये॑ ॥१४.३॥
स्वर रहित मन्त्र
यो न इदमिदं पुरा प्र वस्य आनिनाय तमु व स्तुषे। सखाय इन्द्रमूतये ॥
स्वर रहित पद पाठय: । न: । इदम्ऽइदम् । पुरा । प्र । वस्य: । आऽनिनाय । तम् । ऊं इति । व: । स्तुषे ॥ सखाय: । इन्द्रम् । ऊतये ॥१४.३॥
अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 14; मन्त्र » 3
विषय - राजा का वर्णन
भावार्थ -
हे (सखायः) समान नाम, यश, कीर्त्ति वाले परस्पर स्नेही मित्रजनो ! (यः) जो (नः) हमें (इदम् इदम्) यह, यह नाना प्रकार के गौ, अश्व, सुवर्ण आदि नाना (वस्यः) अति उत्तम जीवनोपयोगी ऐश्वर्य (पुरा) सबसे पहले (प्र आनिनाय) अच्छी प्रकार प्राप्त कराता है, प्रदान करता है, (वः ऊतये) आप लोगों की रक्षा के लिये उसही (इन्द्रम्) इन्द्र राजा की मैं (स्तुषे) स्तुति करता हूं।
टिप्पणी -
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ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - सौम्नीर्ऋषिः। इन्द्रो देवता। प्रगाथः। चतुर्ऋचं सूक्तम्॥
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