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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 142

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 142/ मन्त्र 6
    सूक्त - शशकर्णः देवता - अश्विनौ छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त १४२

    यन्नू॒नं धी॒भिर॑श्विना पि॒तुर्योना॑ नि॒षीद॑थः। यद्वा॑ सु॒म्नेभि॑रुक्थ्या ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यत् । नू॒नम् । धी॒भि: । अ॒श्वि॒ना॒ । पि॒तु: । योना॑ । नि॒ऽसीद॑थ: ॥ यत् । वा॒ । सु॒म्नेभि॑: । उ॒क्थ्या॒ ॥१४२.६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यन्नूनं धीभिरश्विना पितुर्योना निषीदथः। यद्वा सुम्नेभिरुक्थ्या ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यत् । नूनम् । धीभि: । अश्विना । पितु: । योना । निऽसीदथ: ॥ यत् । वा । सुम्नेभि: । उक्थ्या ॥१४२.६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 142; मन्त्र » 6

    भावार्थ -
    हे (अश्विनौ) विद्या और कर्म में पारंगत आचार्य और प्रध्यापक एवं विद्वान् स्त्री पुरुषो ! (यत्) क्योंकि आप दोनों (धीभिः) कर्मों और ज्ञानों से (पितुः) पालक पिता के (योनौ) स्थान पर (निषीदथः) विराजते हो तुम दोनों पिता के तुल्य पूजनीय हो (यद्वा) और क्योंकि तुम दोनों (सुम्नेभिः) सुखकारी उपायों से भी पिता के पद पर बैठने योग्य हो इसलिये तुम दोनों (उक्थ्या) प्रशंसा के योग्य हो।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - शशकर्ण ऋषिः। अश्विनौ देवते -१-४ अनुष्टुभः। ५, ६, गायत्र्यौ। षडृचं सूक्तम्॥

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