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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 29

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 29/ मन्त्र 2
    सूक्त - गोषूक्त्यश्वसूक्तिनौ देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-२९

    इन्द्र॒मित्के॒शिना॒ हरी॑ सोम॒पेया॑य वक्षतः। उप॑ य॒ज्ञं सु॒राध॑सम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इन्द्र॑म् । इत् । के॒शिना॑ । हरी॒ इति॑ । सो॒म॒ऽपेया॑य । व॒क्ष॒त॒: ॥ उप॑ । य॒ज्ञम् । सु॒ऽराध॑सम् ॥२९.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इन्द्रमित्केशिना हरी सोमपेयाय वक्षतः। उप यज्ञं सुराधसम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इन्द्रम् । इत् । केशिना । हरी इति । सोमऽपेयाय । वक्षत: ॥ उप । यज्ञम् । सुऽराधसम् ॥२९.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 29; मन्त्र » 2

    भावार्थ -
    (केशिना हरी) केशों वाले घोड़े (सुराधसम्) उत्तम ऐश्वर्य से युक्त (यज्ञं उप) सुव्यवस्थित राष्ट्र को (सोमपेयाय) ऐश्वर्य के भोग प्राप्त कराने के लिये (इन्द्रम् इत्) इन्द्र को ही (उपवक्षतः) प्राप्त कराते हैं। केशिना हरी—अध्यात्म में प्राण और उदान। परमेश्वर पक्ष में सबीज, निर्बीज योग मार्ग। सोम-अध्यात्म में ब्रह्मानन्दरस। इन्द्र=जीव।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - ऋष्यादयः पूर्ववत्। गायत्र्यः। पञ्चर्चं सूक्तम्॥

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