अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 69/ मन्त्र 7
अक्षि॑तोतिः सनेदि॒मं वाज॒मिन्द्रः॑ सह॒स्रिण॑म्। यस्मि॒न्विश्वा॑नि॒ पौंस्या॑ ॥
स्वर सहित पद पाठअक्षि॑तऽऊति: । स॒ने॒त् । इ॒मम् । वाज॑म् । इन्द्र॑: । म॒ह॒स्रिण॑म् ॥ यस्मि॑न् । विश्वा॑नि । पौंस्या॑ ॥६९.७॥
स्वर रहित मन्त्र
अक्षितोतिः सनेदिमं वाजमिन्द्रः सहस्रिणम्। यस्मिन्विश्वानि पौंस्या ॥
स्वर रहित पद पाठअक्षितऽऊति: । सनेत् । इमम् । वाजम् । इन्द्र: । महस्रिणम् ॥ यस्मिन् । विश्वानि । पौंस्या ॥६९.७॥
अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 69; मन्त्र » 7
विषय - राजा, सेनापति, परमेश्वर।
भावार्थ -
(यस्मिन्) जिस परमेश्वर में (विश्वानि) समस्त (पौंस्या) वीर्य, पराक्रम एवं पुरुष के उपयोगी पदार्थ एवं शक्तियें विद्यमान हैं। वह (इन्द्रः) ऐश्वर्यवान् परमेश्वर (अक्षितोतिः) अक्षय, अनन्त रक्षाकारिणी शक्ति वाला होकर हमें (इमं) इस (सहस्रिणम् वाजम्) हज़ारों सुखों के देने वाले ऐश्वर्य या अन्न को (सनेत्) प्रदान करे। इसी प्रकार वह राजा अक्षय पालन शक्ति से युक्त होकर सहस्रों ऐश्वर्य देने में समर्थ (वाजं सनेत्) संग्राम करे। जिसमें (विश्वानि पौंस्या) समस्त पौरुष बल हैं।
टिप्पणी -
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ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - मधुच्छन्दा ऋषिः। इन्द्रो देवता। गायत्र्यः। द्वादशर्चं सूक्तम्॥
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