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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 87

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 87/ मन्त्र 4
    सूक्त - वसिष्ठः देवता - इन्द्रः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - सूक्त-८७

    यद्यो॒धया॑ मह॒तो मन्य॑माना॒न्साक्षा॑म॒ तान्बा॒हुभिः॒ शाश॑दानान्। यद्वा॒ नृभि॒र्वृत॑ इन्द्राभि॒युध्या॒स्तं त्वया॒जिं सौ॑श्रव॒सं ज॑येम ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यत् । यो॒धया॑: । म॒ह॒त: । मन्य॑मानान् । साक्षा॑म । तान् । बा॒हुभि॑: । शाश॑दानान् ॥ यत् । वा॒ । नृऽभि॑ । वृत॑: । इ॒न्द्र॒ । अ॒भि॒ऽयुध्या॑: । तम् । त्वया॑ । आ॒जिम‌् । सौ॒श्र॒व॒सम् । ज॒ये॒म॒ ॥८७.४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यद्योधया महतो मन्यमानान्साक्षाम तान्बाहुभिः शाशदानान्। यद्वा नृभिर्वृत इन्द्राभियुध्यास्तं त्वयाजिं सौश्रवसं जयेम ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यत् । योधया: । महत: । मन्यमानान् । साक्षाम । तान् । बाहुभि: । शाशदानान् ॥ यत् । वा । नृऽभि । वृत: । इन्द्र । अभिऽयुध्या: । तम् । त्वया । आजिम‌् । सौश्रवसम् । जयेम ॥८७.४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 87; मन्त्र » 4

    भावार्थ -
    हे (इन्द्र) राजन् ! सेनापते ! (यद्) जब तू (महतः मन्य मानान्) बड़े अभिमान करने वालों को (योधय) हमारे से लड़ाता है तब (शाशदानान्) हमारे पक्ष वालों को काटने वाले (तान्) उन शत्रुओं का हम (बाहुभिः) अपनी बाहुओं से ही (साक्षाम) पराजित करें। (यद् वा) और जब भी (नृभिः) उत्तम नेताओं से (वृतः) परिवृत होकर तू स्वयं (अभि युध्याः) शत्रु के मुकाबले पर लड़े तब (त्वया) तेरे द्वारा हम (सौश्रवसं) उत्तम यश और सम्पत्ति प्राप्त कराने वाले (आजिम्) युद्ध का (जयेम) विजय करें। परमेश्वर पक्ष में—जब भी हमपर परमेश्वर बड़े शत्रुओं से युद्ध का अवसर दे हम उनको अपने बाहुबल से पराजित करें। और हे (इन्द्र) परमात्मन् ! तू (नृभिः) अपनी नेतृ शक्तियों से (अभि युध्याः) उनका नाश करता हो। तब तो हम तेरी सहायता से उत्तम यश, अन्न के देने वाले संग्राम का विजय करें।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - वसिष्ठ ऋषिः। इन्द्रो देवता। त्रिष्टुभः। सप्तर्चं सूक्तम्॥

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