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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 9

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 9/ मन्त्र 3
    सूक्त - मेध्यातिथि देवता - इन्द्रः छन्दः - प्रगाथः सूक्तम् - सूक्त-९

    तत्त्वा॑ यामि सु॒वीर्यं॒ तद्ब्रह्म॑ पू॒र्वचि॑त्तये। येना॒ यति॑भ्यो॒ भृग॑वे॒ धने॑ हि॒ते येन॒ प्रस्क॑ण्व॒मावि॑थ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    तत् । त्वा॒ । या॒मि॒ । सु॒ऽवीर्य॑म् । तत् । ब्रह्म॑ । पू॒र्वऽचि॑त्तये । येन॑ । यति॑ऽभ्य: । भृग॑वे । धने॑ । हि॒ते । येन॑ । प्रस्क॑ण्वम् । आवि॑थ ॥९.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तत्त्वा यामि सुवीर्यं तद्ब्रह्म पूर्वचित्तये। येना यतिभ्यो भृगवे धने हिते येन प्रस्कण्वमाविथ ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    तत् । त्वा । यामि । सुऽवीर्यम् । तत् । ब्रह्म । पूर्वऽचित्तये । येन । यतिऽभ्य: । भृगवे । धने । हिते । येन । प्रस्कण्वम् । आविथ ॥९.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 9; मन्त्र » 3

    भावार्थ -
    हे परमेश्वर ! (पूर्वचित्तये) अपने पूर्व या पूर्ण प्रज्ञान प्राप्त करने के लिये (त्वा) तुझ से (तत् सुवीर्यम् ब्रह्म) उस उत्तम वीर्य, बलशाली (ब्रह्म) महान् स्वरूप को (यामि) उपासना करूं। (येन) जिससे (यतिभ्यः) यम नियम के पालक, तपस्वी पुरुषों और (भृगवे) पापों के भूनने हारे, तेजस्वी ज्ञानी पुरुष को तू (हिते) हितकर (धन) परम ऐश्वर्य में स्थापित करता है और (येन) जिससे (प्रस्कण्वम्) परम मेधावी पुरुष को (आविथ) रक्षा करता है। राजा के पक्ष में—(पूर्वचित्तये) पूर्व निर्धारित ‘चिति’ अर्थात् परस्पर के समझौते के अनुसार हे राजन् ! मैं तुझसे उत्तम वीर्यजनक (ब्रह्म) बड़े भारी ऐश्वर्य की प्रार्थना करता हूं जिससे तू नियमों में बद्ध प्रजाओं और (भृगव) ज्ञानवान् विद्वान् के निमित्त (हिते धने) वेतन रूप से बंधे धन में उनको सन्तुष्ट करता है और जिससे (प्रस्कण्वम्) उत्तम उत्तम ज्ञानी पुरुषों को भी (आविथ) अपने राष्ट्र में पालन करता है।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - १, २ नोधाः, ३, ४ मेधातिथिऋषिः। १, २ त्रिष्टुभौ, ३, ४ प्रगाथे। चतुर्ऋचं सूक्तम।

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