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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 93

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 93/ मन्त्र 1
    सूक्त - प्रगाथः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-९३

    उत्त्वा॑ मन्दन्तु॒ स्तोमाः॑ कृणु॒ष्व राधो॑ अद्रिवः। अव॑ ब्रह्म॒द्विषो॑ जहि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उत् । त्वा॒ । म॒न्द॒न्तु॒ । स्तोमा॑: । कृ॒णु॒ष्व । राध॑: । अ॒द्रि॒व॒: ॥ अव॑ । ब्र॒ह्म॒ऽद्विष॑: । ज॒हि॒ ॥९३.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उत्त्वा मन्दन्तु स्तोमाः कृणुष्व राधो अद्रिवः। अव ब्रह्मद्विषो जहि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उत् । त्वा । मन्दन्तु । स्तोमा: । कृणुष्व । राध: । अद्रिव: ॥ अव । ब्रह्मऽद्विष: । जहि ॥९३.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 93; मन्त्र » 1

    भावार्थ -
    हे (अद्रिवः) अखण्ड बलवीर्यवन् ! वज्रिन् ! (त्वा) तुझ को (स्तामाः) स्तुतिसमूह और स्तुतिकर्ता जन (उत् मन्दन्तु) हर्षित करें। तू (राधः कृणुष्व) अन्न और ज्ञान, भक्ति आदि ऐश्वर्य प्रदान कर। (ब्रह्मद्विषः) ब्रह्म, वेद और वेदज्ञ विद्वानों से द्वेष करने वाले पुरुषों को (जहि) नाश कर।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - १-३ प्रगाथः ऋषिः। ४-८ देवजामय इन्द्रमातरः। इन्द्रो देवता। गायत्र्यः। अष्टर्चं सूक्तम्।

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