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अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 97/ मन्त्र 1
व॒यमे॑नमि॒दा ह्योऽपी॑पेमे॒ह व॒ज्रिण॑म्। तस्मा॑ उ अ॒द्य स॑म॒ना सु॒तं भ॒रा नू॒नं भू॑षत श्रु॒ते ॥
स्वर सहित पद पाठव॒यम् । ए॒न॒म् । इ॒दा । ह्य: । अपी॑पेम । इ॒ह । व॒ज्रिण॑म् ॥ तस्मै॑ । ऊं॒ इति॑ । अ॒द्य । स॒म॒ना । सु॒तम् । भ॒र॒ । आ । नू॒नम् । भू॒ष॒त॒ । श्रु॒ते ॥९७.१॥
स्वर रहित मन्त्र
वयमेनमिदा ह्योऽपीपेमेह वज्रिणम्। तस्मा उ अद्य समना सुतं भरा नूनं भूषत श्रुते ॥
स्वर रहित पद पाठवयम् । एनम् । इदा । ह्य: । अपीपेम । इह । वज्रिणम् ॥ तस्मै । ऊं इति । अद्य । समना । सुतम् । भर । आ । नूनम् । भूषत । श्रुते ॥९७.१॥
अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 97; मन्त्र » 1
विषय - राजा।
भावार्थ -
(वयम्) हम लोग (ह्यः) गये दिन और (इदा) इस समय आज ओर कल भी, नित्य (एनम् वज्रिणम्) इस वीर्यवान् पुरुष को (इह) इस राष्ट्र में (अपीपेम) पुष्ठ करें। और (अद्य) आज (तस्मै उ) उसको ही (समना) संग्राम के लिये (सुतं) ऐश्वर्य (भर) प्राप्त करा (नूनं) निश्चय से वह (श्रुते) हमारी प्रार्थना सुनने पर (आ भूषत) आजाता है।
आत्मा के पक्ष में—हम उस आत्मा को सदा पुष्ट करें (तस्मै) उस जीव के लिये ही (समना) संग्राम में (सुतं) वीर्य को प्राप्त कराओ। और (श्रुते) वेदेोपदेश या गुरुपदेश से उसे (नूनं) निश्चय से (आभू पत) तुम सुशोभित करो।
टिप्पणी -
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ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - कलिर्ऋषिः। इन्द्रो देवता। बृहत्यः। तृचं सूक्तम्॥
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