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अथर्ववेद > काण्ड 6 > सूक्त 126

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  • अथर्ववेद - काण्ड 6/ सूक्त 126/ मन्त्र 3
    सूक्त - अथर्वा देवता - दुन्दुभिः छन्दः - पुरोबृहती विराड्गर्भा त्रिष्टुप् सूक्तम् - दुन्दुभि सूक्त

    प्रामूं ज॑या॒भी॒मे ज॑यन्तु केतु॒मद्दु॑न्दु॒भिर्वा॑वदीतु। समश्व॑पर्णाः पतन्तु नो॒ नरो॒ऽस्माक॑मिन्द्र र॒थिनो॑ जयन्तु ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प्र । अ॒मूम् । ज॒य॒ । अ॒भि । इ॒मे । ज॒य॒न्तु॒ । के॒तु॒ऽमत् । दु॒न्दु॒भि: । वा॒व॒दी॒तु॒। सम् । अश्व॑ऽपर्णा: । प॒त॒न्तु॒ । न॒: । नर॑: ।अ॒स्माक॑म् । इ॒न्द्र॒ । र॒थिन॑:। ज॒य॒न्तु॒ ॥१२६.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    प्रामूं जयाभीमे जयन्तु केतुमद्दुन्दुभिर्वावदीतु। समश्वपर्णाः पतन्तु नो नरोऽस्माकमिन्द्र रथिनो जयन्तु ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    प्र । अमूम् । जय । अभि । इमे । जयन्तु । केतुऽमत् । दुन्दुभि: । वावदीतु। सम् । अश्वऽपर्णा: । पतन्तु । न: । नर: ।अस्माकम् । इन्द्र । रथिन:। जयन्तु ॥१२६.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 126; मन्त्र » 3

    भावार्थ -
    हे इन्द्र ! राजन् ! (अमूम्) उस दूर देख पड़ने वाली शत्रु सेना को (प्र जय) उत्तम रीति से विजय कर (अभि इमे जयन्तु) और ये हमारे वीर भट विजय प्राप्त करें। यह (दुन्दुभिः) नक्कारा (केतुमत्) झण्डे वाला (वावदीतु) खूब शब्द करे। (नः नरः) हमारे वीर नेता सैनिक (अश्व-पर्णाः) घोड़े सहित दौड़ते हुए (संपतन्तु) एक साथ आक्रमण करें। और हे इन्द्र ! राजन् ! (अस्माकम् रथिनः) हमारे रथी, सवार लोग (जयन्तु) विजय करें। अध्यात्म में—हे पुरुष ! (अमूम्) उस दुर्वासना को (प्रजय) खूब जीत। (इमे अभि जयन्तु) ये तेरे इन्द्रियगण सब व्यसनों पर विजय प्राप्त करें। (केतुमत् दुन्दुभिर्वावदीतु) ज्ञानवान् गुरु तुझे उपदेश करे (नः नरः, संपतन्तु) हमारे नेता इन्द्रियगण अश्व=प्राण से वेगवान् होकर पदार्थों तक पहुँचे और वे ही (रथिनः) देह रूप रथ में चढ़ कर या प्राणरूप या रसरूप रथ में विराज कर विजयी हों। केनोपनिषद् की ब्रह्मविजय की कथा का यहां अवश्य परामर्श कर लेना उचित है।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - अथर्वा ऋषिः। वानस्पत्यो दुन्दुभिर्देवता। १, २ भुरिक् त्रिष्टुभौ, ३ पुरोबृहती विराड् गर्भा त्रिष्टुप्। तृचं सूक्तम्॥

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