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अथर्ववेद > काण्ड 6 > सूक्त 133

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  • अथर्ववेद - काण्ड 6/ सूक्त 133/ मन्त्र 3
    सूक्त - अगस्त्य देवता - मेखला छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - मेखलाबन्धन सूक्त

    मृ॒त्योर॒हं ब्र॑ह्मचा॒री यदस्मि॑ नि॒र्याच॑न्भू॒तात्पुरु॑षं य॒माय॑। तम॒हं ब्रह्म॑णा॒ तप॑सा॒ श्रमे॑णा॒नयै॑नं॒ मेख॑लया सिनामि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    मृ॒त्यो: । अ॒हम् । ब्र॒ह्म॒ऽचा॒री । यत् । अस्मि॑ । नि॒:ऽयाच॑न् । भू॒तात् । पुरु॑षम् । य॒माय॑ । तम् । अ॒हम् । ब्रह्म॑णा । तप॑सा । श्रमे॑ण । अ॒नया॑ । ए॒न॒म् । मेख॑लया । सि॒ना॒मि॒ ॥१३३.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    मृत्योरहं ब्रह्मचारी यदस्मि निर्याचन्भूतात्पुरुषं यमाय। तमहं ब्रह्मणा तपसा श्रमेणानयैनं मेखलया सिनामि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    मृत्यो: । अहम् । ब्रह्मऽचारी । यत् । अस्मि । नि:ऽयाचन् । भूतात् । पुरुषम् । यमाय । तम् । अहम् । ब्रह्मणा । तपसा । श्रमेण । अनया । एनम् । मेखलया । सिनामि ॥१३३.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 133; मन्त्र » 3

    भावार्थ -

    (यत्) क्योंकि (अहम्) मैं (मृत्योः) आदित्य के समान प्रकाशवान् ज्ञानी पुरुष का अज्ञान के बन्धन से मुक्त करने वाले आचार्य का (ब्रह्मचारी) ब्रह्मचारी हूँ इसलिये (भूतात्) इस पन्चभूत के बने देह से (यमाय) उस ब्रह्म सर्वनियन्ता परमेश्वर की प्राप्ति के लिए (पुरुषम्) देहपुरी के वासी आत्मा को (निर्याचन् अस्मि) मुच करने के यत्न में हूँ। हे आचार्य ! ऐसे (तम्) उस (एनम्) इस आत्मा को (अहम्) मैं शिष्य (ब्रह्मणा) ब्रह्म, वेदोपदेश से, (तपसा) तपसे, (श्रमेण) श्रम से और (अनया मेखलया) इस मेखला से (सिनामि) बांधता हूँ। स एष आदित्यो मृत्युः। श० १०। ५। १। ४। अग्निर्मृत्युः॥ कौ० १३। ३॥ योऽग्निर्मृत्युः सः॥ जै० ३०। १। २५। ८॥ अथवा—(अहम्) मैं आचार्य ब्रह्मचारी स्वयं ब्रह्मचारी होकर (पुरुषं यमाय भूतात् मृत्योः निर्याचन् अस्मि) इस पुरुष को यमनियम पालन कराने के निमित्त, भूत अर्थात् निश्चित मृत्यु से छुड़ा देता हूँ। इसी निमत्त (ब्रह्मणा तपसा श्रमेण अनया मेखलया च श्रहं सिनामि) वेद, व्रत, तप, श्रम और इस मेखला से पुरुष को बाँधता हूँ और दीक्षित करता हूँ। इस प्रकरण को देखो। गोपथ पू० २। १॥ तथा जै० उ० १। २५। ८॥ तदनुसार प्रकाशस्वरूप परब्रह्म—समुद्र उसके तीन रूप हैं शुक्ल, कृष्ण और पुरुष। शुक्लरूप = वाणी और अग्नि। कृष्णरूप = आपः, मन या अन्न और यजुः। पुरुष रूप = प्राण, साम, ब्रह्म, अमृत।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर -

    अगस्त्य ऋषिः। मेखला देवता। १ भुरिक्। २, ५ अनुष्टुभौ। ३, त्रिष्टुप्। ४ भुरिक्। पञ्चर्चं सूक्तम्॥

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