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अथर्ववेद > काण्ड 7 > सूक्त 35

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  • अथर्ववेद - काण्ड 7/ सूक्त 35/ मन्त्र 3
    सूक्त - अथर्वा देवता - जातवेदाः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - सपत्नीनाशन सूक्त

    परं॒ योने॒रव॑रं ते कृणोमि॒ मा त्वा॑ प्र॒जाभि भू॒न्मोत सूनुः॑। अ॒स्वं त्वाप्र॑जसं कृणो॒म्यश्मा॑नं ते अपि॒धानं॑ कृणोमि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    पर॑म् । योने॑: । अव॑रम् । ते॒ । कृ॒णो॒मि॒ । मा । त्वा॒ । प्र॒ऽजा । अ॒भ‍ि । भू॒त् । मा । उ॒त । सूनु॑: । अ॒स्व᳡म् । त्वा॒ । अप्र॑जसम् । कृ॒णो॒मि॒ । अश्मा॑नम् । ते॒ । अ॒पि॒ऽधान॑म् । कृ॒णो॒मि॒ ॥३६.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    परं योनेरवरं ते कृणोमि मा त्वा प्रजाभि भून्मोत सूनुः। अस्वं त्वाप्रजसं कृणोम्यश्मानं ते अपिधानं कृणोमि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    परम् । योने: । अवरम् । ते । कृणोमि । मा । त्वा । प्रऽजा । अभ‍ि । भूत् । मा । उत । सूनु: । अस्वम् । त्वा । अप्रजसम् । कृणोमि । अश्मानम् । ते । अपिऽधानम् । कृणोमि ॥३६.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 7; सूक्त » 35; मन्त्र » 3

    भावार्थ -
    (ते) तेरे (योनेः) पद, स्थान या आश्रम के (परं) उत्कृष्ट, सबसे उन्नत पदको मैं प्रजा का मुख्य प्रतिनिधि (अवरम्) कुछ नीचा (कृणोमि) करता हूं और फिर भी (त्वा) तुझे (प्र-जा) प्रजा (उत) और (सूनुः) तेरा पुत्र अथवा तेरा प्रेरक मन्त्री आदि भी (मा त्वा अभि भूत्) तेरा तिरस्कार न करे। (त्वा) तुझको मैं (अ-स्वं) स्व=धन से रहित और (अ-प्रजसं) प्रजा पुत्र आदि से रहित (कृणोमि) करता हूं। (ते) तेरे (अपि-धानम्) चारों तरफ का आवरण (अश्मानं) पत्थर का (कृणोमि) बनाता हूं। राजा की सर्वोत्कृष्ट पदवी पुरोहित से नीचे रहे। प्रजा मंत्री और राजकुमार आदि राजा का अपमान न करें। राजा का अपना कोई धन या जायदाद नहीं। प्रजा और राष्ट्र ही उसकी सार्वजनिक जायदाद है। उसका पुत्र कोई उसका निजी पुत्र नहीं, प्रत्युत वह भी उसकी सामान्य प्रजा के समान है। वह राजा का पुत्र होने से राज्य का स्वामी नहीं हो सकता। राजा का पुत्र राजा नहीं यह एक पत्थर के समान दृढ़ या अभेद्य है अर्थात् यह नियम खूब कठोर होना चाहिये। २, ३ इन दोनों मन्त्रों को सायण ने प्रद्वेषिणी स्त्री के गर्भ-निरोध-परक लगाया है। ग्रीफिथ ने इन दोनों मन्त्रों को अश्लील जानकर अर्थ नहीं किया। परन्तु अथर्व सर्वानुक्रमणी के अनुसार इन दोनों का देवता पूर्वमन्त्रानुसार ‘जातवेदाः’ [ राजा ] है।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - अथर्वा ऋषिः। जातवेदा देवता। १ जगती छन्दः। २, ३ त्रिष्टुभौ। तृचं सूक्तम्॥

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