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अथर्ववेद > काण्ड 7 > सूक्त 6

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  • अथर्ववेद - काण्ड 7/ सूक्त 6/ मन्त्र 3
    सूक्त - अथर्वा देवता - अदितिः छन्दः - विराड्जगती सूक्तम् - आदित्यगण सूक्त

    सु॒त्रामा॑णं पृथि॒वीं द्याम॑ने॒हसं॑ सु॒शर्मा॑ण॒मदि॑तिं सु॒प्रणी॑तिम्। दैवीं॒ नावं॑ स्वरि॒त्रामना॑गसो॒ अस्र॑वन्ती॒मा रु॑हेमा स्व॒स्तये॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सु॒ऽत्रामा॑णम् । पृ॒थि॒वीम् । द्याम् । अ॒ने॒हस॑म् । सु॒ऽशर्मा॑णम् । अदि॑तिम् । सु॒ऽप्रणी॑तिम् । दैवी॑म् । नाव॑म् । सु॒ऽअ॒रि॒त्राम् । अना॑गस: । अस्र॑वन्तीम् । आ । रु॒हे॒म॒ । स्व॒स्तये॑ ॥७.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सुत्रामाणं पृथिवीं द्यामनेहसं सुशर्माणमदितिं सुप्रणीतिम्। दैवीं नावं स्वरित्रामनागसो अस्रवन्तीमा रुहेमा स्वस्तये ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सुऽत्रामाणम् । पृथिवीम् । द्याम् । अनेहसम् । सुऽशर्माणम् । अदितिम् । सुऽप्रणीतिम् । दैवीम् । नावम् । सुऽअरित्राम् । अनागस: । अस्रवन्तीम् । आ । रुहेम । स्वस्तये ॥७.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 7; सूक्त » 6; मन्त्र » 3

    भावार्थ -
    उसी का वर्णन और भी करते हैं। (सुत्रामाणम्) उत्तम रीति से सब का पालन करनेवाली, (पृथिवीम्) विशाल (घाम्) प्रकाशस्वरूप (अनेहसं) किसी प्रकार का आघात न पहुँचाने वाली, (सुशर्माणम्) सब जीवों को सुख-शान्ति, शरण देनेवाली, (सुप्रणीतिम्) उत्तम रूप से विधान की गई या शुभ मार्ग में ले जाने वाली, (दैवीं) देव, ईश्वर की बनाई हुई (सु-अरित्राम्) उत्तम पुण्यकर्म रूप पतवारों वाली (अस्रवन्तीम्) दोषादि छिद्रों से रहित, कभी न डूबने वाली, (नावम्) संसार को पार उतारने में समर्थ, वेदमयी या यज्ञमयी ज्ञान-नौका में हम (अनागसः) निष्पाप (स्वस्तये) अपने ही उत्तम कल्याण साधन के लिए (आरुहेम) सदा चढ़ें। अर्थात् अपने जीवनों को सफल करने के लिये वेद का आश्रय लें। उसकी व्यवस्था में चलें।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - अथर्वा ऋषिः। यजुर्वेदे १ प्रजापतिर्ऋषिः, २ वामदेवः। ऋग्वेदे गोतमो । राहूगण ऋषिः। अदितिर्देवता । त्रिष्टुप्। १ भुरिक्। ३, ४ विराड्-जगत्यौ। चतुर्ऋचं सूक्तम्॥

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