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अथर्ववेद > काण्ड 7 > सूक्त 65

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  • अथर्ववेद - काण्ड 7/ सूक्त 65/ मन्त्र 3
    सूक्त - शुक्रः देवता - अपामार्गवीरुत् छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - दुरितनाशन सूक्त

    श्या॒वद॑ता कुन॒खिना॑ ब॒ण्डेन॒ यत्स॒हासि॒म। अपा॑मार्ग॒ त्वया॑ व॒यं सर्वं॒ तदप॑ मृज्महे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    श्या॒वऽद॑ता । कु॒न॒खिना॑ । ब॒ण्डेन॑ । यत् । स॒ह । आ॒सि॒म । अपा॑मार्ग । त्वया॑ । व॒यम् । सर्व॑म् । तत् । अप॑ । मृ॒ज्म॒हे॒ ॥६७.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    श्यावदता कुनखिना बण्डेन यत्सहासिम। अपामार्ग त्वया वयं सर्वं तदप मृज्महे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    श्यावऽदता । कुनखिना । बण्डेन । यत् । सह । आसिम । अपामार्ग । त्वया । वयम् । सर्वम् । तत् । अप । मृज्महे ॥६७.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 7; सूक्त » 65; मन्त्र » 3

    भावार्थ -
    (यत्) और जो (श्याव-दता) काले दांत वाले, मलिन मुख, दन्तधावन न करने वाले, व्यसन से मलिन पदार्थ अर्थात् मांस आदि को खाने वाले, (कु-नखिना) बुरे नखों वाले, (बण्डेन*) और लड़ाके या परस्पर फूट डालने वाले, चुगल खोर के साथ (आसिम) बैठें तो हे (अपमार्ग) पापों को दूर करने हारे ! (त्वया) तेरे बल पर (तत् सर्वं) उस सब दुष्प्रभाव को (अप मृज्महे) हम दूर करें।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - दुरितापमृष्टिप्रार्थी शुक्र ऋषिः। अपामार्गवीरुद् देवता। अनुष्टुप छन्दः। तृचं सूक्तम्॥

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