अथर्ववेद - काण्ड 7/ सूक्त 81/ मन्त्र 4
सूक्त - अथर्वा
देवता - सावित्री, सूर्यः, चन्द्रमाः
छन्दः - आस्तारपङ्क्तिः
सूक्तम् - सूर्य-चन्द्र सूक्त
द॒र्शोसि॑ दर्श॒तोसि॒ सम॑ग्रोऽसि॒ सम॑न्तः। सम॑ग्रः॒ सम॑न्तो भूयासं॒ गोभि॒रश्वैः॑ प्र॒जया॑ प॒शुभि॑र्गृ॒हैर्धने॑न ॥
स्वर सहित पद पाठद॒र्श: । अ॒सि॒ । द॒र्श॒त: । अ॒सि॒ । सम्ऽअ॑ग्र: । अ॒सि॒ । सम्ऽअ॑न्त: । सम्ऽअ॑ग्र॒: । सम्ऽअ॑न्त: । भू॒या॒स॒म् । गोभि॑: । अश्वै॑: । प्र॒ऽजया॑ । प॒शुऽभि॑: । गृ॒है: । धने॑न ॥८६.४॥
स्वर रहित मन्त्र
दर्शोसि दर्शतोसि समग्रोऽसि समन्तः। समग्रः समन्तो भूयासं गोभिरश्वैः प्रजया पशुभिर्गृहैर्धनेन ॥
स्वर रहित पद पाठदर्श: । असि । दर्शत: । असि । सम्ऽअग्र: । असि । सम्ऽअन्त: । सम्ऽअग्र: । सम्ऽअन्त: । भूयासम् । गोभि: । अश्वै: । प्रऽजया । पशुऽभि: । गृहै: । धनेन ॥८६.४॥
अथर्ववेद - काण्ड » 7; सूक्त » 81; मन्त्र » 4
विषय - सूर्य और चन्द्र।
भावार्थ -
पूर्व मन्त्र में ‘दर्श’ से कहे पदार्थ की व्याख्या करते हैं हे (दर्श) दर्श ! तू दर्श है अर्थात् (दर्शतः) तू दर्शत = दर्शनीय है और भक्ति और योग द्वारा साक्षात् करने योग्य है। आप (सम्-अग्रः) सब प्रकार से और सब कामों में सब पदार्थों के आगे, सबके पूर्व विद्यमान, सबके कारणस्वरूप, और सबके अग्रणी नेतास्वरूप (असि) हो। और (सम्-अन्तः) सब प्रकार से समस्त संसार के अन्तः अर्थात् प्रलयकाल में सबको अपने भीतर प्रलीन करने हारे हो। हे प्रभो मैं भी (गोभिः) गौओं, (अश्वैः) अश्वों, (प्रजया) प्रजा और (पशुभिः) पशुओं (गृहैः) गृहों, और (धनेन) धन सम्पत्तियों से (सम्-अग्रः) सबका अग्रणी और (सम्-अन्तः) सब से पिछला अर्थात् सब से उत्कृष्ट (भूयासम्) होऊँ।
टिप्पणी -
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ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - अथर्वा ऋषिः। सावित्री सूर्याचन्द्रमसौ च देवताः। १, ६ त्रिष्टुप्। २ सम्राट। ३ अनुष्टुप्। ४, ५ आस्तारपंक्तिः। षडृचं सूक्तम्॥
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