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अथर्ववेद > काण्ड 9 > सूक्त 6 > पर्यायः 1

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  • अथर्ववेद - काण्ड 9/ सूक्त 6/ मन्त्र 14
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - अतिथिः, विद्या छन्दः - साम्न्यनुष्टुप् सूक्तम् - अतिथि सत्कार

    ये व्री॒हयो॒ यवा॑ निरु॒प्यन्तें॒ऽशव॑ ए॒व ते ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ये । व्री॒हय॑: । यवा॑: । नि॒:ऽउ॒प्यन्ते॑ । अं॒शव॑: । ए॒व । ते ॥६.१४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ये व्रीहयो यवा निरुप्यन्तेंऽशव एव ते ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ये । व्रीहय: । यवा: । नि:ऽउप्यन्ते । अंशव: । एव । ते ॥६.१४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 9; सूक्त » 6; पर्यायः » 1; मन्त्र » 14

    भावार्थ -
    (ये) जो अतिथि यज्ञ के अवसर पर (ब्रीहयः यवाः) धान और जौ (निरुपयन्ते) प्राप्त किये जाते हैं (अंशव एव ते) वे यज्ञ में सोमलता के खण्डों के समान हैं। और (यानि) जो अतिथि के भोजनादि तैयार करने के लिये (उलूखल-मुसलानि) ओखली और मूसल धान कूटने के लिये काम में लाये जाते हैं (ग्रावाणः एव ते) वे यज्ञ में सोम कूटने के उपयोगी पत्थरों के समान हैं।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - ‘सो विद्यात्’ इति षट् पर्यायाः। एकं सुक्तम्। ब्रह्मा ऋषिः। अतिथिरुत विद्या देवता। तत्र प्रथमे पर्याये १ नागी नाम त्रिपाद् गायत्री, २ त्रिपदा आर्षी गायत्री, ३,७ साम्न्यौ त्रिष्टुभौ, ४ आसुरीगायत्री, ६ त्रिपदा साम्नां जगती, ८ याजुषी त्रिष्टुप्, १० साम्नां भुरिग बृहती, ११, १४-१६ साम्न्योऽनुष्टुभः, १२ विराड् गायत्री, १३ साम्नी निचृत् पंक्तिः, १७ त्रिपदा विराड् भुरिक् गायत्री। सप्तदशर्चं सूक्तम्॥

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