अथर्ववेद - काण्ड 9/ सूक्त 6/ मन्त्र 1
सूक्त - ब्रह्मा
देवता - अतिथिः, विद्या
छन्दः - प्राजापत्यानुष्टुप्
सूक्तम् - अतिथि सत्कार
स य ए॒वं वि॒द्वान्क्षी॒रमु॑प॒सिच्यो॑प॒हर॑ति।
स्वर सहित पद पाठस: । य: । ए॒वम् । वि॒द्वान् । क्षी॒रम् । उ॒प॒ऽसिच्य॑ । उ॒प॒ऽहर॑ति ॥९.१॥
स्वर रहित मन्त्र
स य एवं विद्वान्क्षीरमुपसिच्योपहरति।
स्वर रहित पद पाठस: । य: । एवम् । विद्वान् । क्षीरम् । उपऽसिच्य । उपऽहरति ॥९.१॥
अथर्ववेद - काण्ड » 9; सूक्त » 6;
पर्यायः » 4;
मन्त्र » 1
विषय - अतिथियज्ञ का महान् फल।
भावार्थ -
(यः एवं विद्वान्) जो इस प्रकार अतिथि सत्कार के व्रत को जानता हुआ (क्षीरम् उपसिच्य) दूध को पात्र में डालकर (उपहरति) अतिथि को तृप्त करने के लिए लाता है तो (यावत्) जितना (सुसमृद्धेन) उत्तम रीति से सम्पादित (अग्नि ष्टोमेन) अग्निष्टोम यज्ञ से (इष्ट्वा) यज्ञ करके (अव रुन्धे) फल प्राप्त करता है (तावत्) उतना (अनेन) इस अतिथि यज्ञ से (अव रुन्धे) प्राप्त कर लेता है।
टिप्पणी -
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - ऋषिर्देवता च पूर्वोक्ते। १,३,५,७ प्राजापत्या अनुष्टुभः, ९ भुरिक्, २, ४, ६, त्रिपदा गायत्र्यः, १० चतुष्पाद प्रस्तारपंक्तिः। दशर्चं पर्यायसूक्तम्॥
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