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अथर्ववेद > काण्ड 9 > सूक्त 6 > पर्यायः 4

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  • अथर्ववेद - काण्ड 9/ सूक्त 6/ मन्त्र 8
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - अतिथिः, विद्या छन्दः - त्रिपदा गायत्री सूक्तम् - अतिथि सत्कार

    याव॑द्द्वादशा॒हेने॒ष्ट्वा सुस॑मृद्धेनावरु॒न्द्धे ताव॑देने॒नाव॑ रुन्द्धे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    याव॑त् । द्वा॒द॒श॒ऽअ॒हेन॑ । इ॒ष्ट्वा । सुऽस॑मृध्देन । अ॒व॒ऽरु॒न्ध्दे । ताव॑त् । ए॒ने॒न॒ । अव॑ । रु॒न्ध्दे॒ ॥९.८॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यावद्द्वादशाहेनेष्ट्वा सुसमृद्धेनावरुन्द्धे तावदेनेनाव रुन्द्धे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यावत् । द्वादशऽअहेन । इष्ट्वा । सुऽसमृध्देन । अवऽरुन्ध्दे । तावत् । एनेन । अव । रुन्ध्दे ॥९.८॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 9; सूक्त » 6; पर्यायः » 4; मन्त्र » 8

    भावार्थ -
    (यः एवं विद्वान् मांसम् उपसिच्य उपहरति, यावद् सुसमृद्धेन द्वादशाहेन इष्ट्वा अवरुन्धे सः तावद् एनेन अवरुन्धे) जो इस प्रकार अतिथि यज्ञ के महत्व को जानता हुआ पुरुष और मनको रुचि देने वाले घी, मलाई, फल आदि पदार्थों को अतिथि के भेंट करता है तो जितना फल उत्तम रीति से सम्पादित द्वादशाह यज्ञ से प्राप्त करते हैं उतना फल वह इस अतिथियज्ञ से प्राप्त करता है।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - ऋषिर्देवता च पूर्वोक्ते। १,३,५,७ प्राजापत्या अनुष्टुभः, ९ भुरिक्, २, ४, ६, त्रिपदा गायत्र्यः, १० चतुष्पाद प्रस्तारपंक्तिः। दशर्चं पर्यायसूक्तम्॥

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