अथर्ववेद - काण्ड 9/ सूक्त 6/ मन्त्र 6
सूक्त - ब्रह्मा
देवता - अतिथिः, विद्या
छन्दः - त्रिपदा गायत्री
सूक्तम् - अतिथि सत्कार
याव॑त्सत्त्र॒सद्ये॑ने॒ष्ट्वा सुस॑मृद्धेनावरु॒न्द्धे ताव॑देने॒नाव॑ रुन्द्धे ॥
स्वर सहित पद पाठयाव॑त् । स॒त्त्र॒ऽसद्ये॑न । इ॒ष्ट्वा । उ॒प॒ऽहर॑ति ॥९.६॥
स्वर रहित मन्त्र
यावत्सत्त्रसद्येनेष्ट्वा सुसमृद्धेनावरुन्द्धे तावदेनेनाव रुन्द्धे ॥
स्वर रहित पद पाठयावत् । सत्त्रऽसद्येन । इष्ट्वा । उपऽहरति ॥९.६॥
अथर्ववेद - काण्ड » 9; सूक्त » 6;
पर्यायः » 4;
मन्त्र » 6
विषय - अतिथियज्ञ का महान् फल।
भावार्थ -
(यः एवं विद्वान् मधु उपसिच्य उपहरति) जो इस प्रकार अतिथि यज्ञ को जानकर मधु आदि मधुर पदार्थ पात्र में रखकर अतिथि को तृप्त करता है (यावत् सत्रसद्येन इष्ट्वा०) जितना फल उत्तम रीति से सम्पादित ‘सत्रमद्य’ नाम के यज्ञ को करके प्राप्त करते हैं उतना फल वह अतिथियज्ञ से प्राप्त कर लेता है।
टिप्पणी -
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - ऋषिर्देवता च पूर्वोक्ते। १,३,५,७ प्राजापत्या अनुष्टुभः, ९ भुरिक्, २, ४, ६, त्रिपदा गायत्र्यः, १० चतुष्पाद प्रस्तारपंक्तिः। दशर्चं पर्यायसूक्तम्॥
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