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ऋग्वेद मण्डल - 1 के सूक्त 144 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 144/ मन्त्र 6
    ऋषिः - दीर्घतमा औचथ्यः देवता - अग्निः छन्दः - भुरिक्पङ्क्ति स्वरः - पञ्चमः

    त्वं ह्य॑ग्ने दि॒व्यस्य॒ राज॑सि॒ त्वं पार्थि॑वस्य पशु॒पा इ॑व॒ त्मना॑। एनी॑ त ए॒ते बृ॑ह॒ती अ॑भि॒श्रिया॑ हिर॒ण्ययी॒ वक्व॑री ब॒र्हिरा॑शाते ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    त्वम् । हि । अ॒ग्ने॒ । दि॒व्यस्य॑ । राज॑सि । त्वम् । पार्थि॑वस्य । प॒शु॒पाःऽइ॑व । त्मना॑ । एनी॒ इति॑ । ते॒ । ए॒ते इति॑ । बृ॒ह॒ती इति॑ । अ॒भि॒ऽश्रिया॑ । हि॒र॒ण्ययी॒ इति॑ । वक्व॑री॒ इति॑ । ब॒र्हिः । आ॒शा॒ते॒ इति॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    त्वं ह्यग्ने दिव्यस्य राजसि त्वं पार्थिवस्य पशुपा इव त्मना। एनी त एते बृहती अभिश्रिया हिरण्ययी वक्वरी बर्हिराशाते ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    त्वम्। हि। अग्ने। दिव्यस्य। राजसि। त्वम्। पार्थिवस्य। पशुपाःऽइव। त्मना। एनी इति। ते। एते इति। बृहती इति। अभिऽश्रिया। हिरण्ययी इति। वक्वरी इति। बर्हिः। आशाते इति ॥ १.१४४.६

    ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 144; मन्त्र » 6
    अष्टक » 2; अध्याय » 2; वर्ग » 13; मन्त्र » 6
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह ।

    अन्वयः

    हे अग्ने त्वं हि पशुपाइव त्मना दिव्यस्य राजसि त्वं पार्थिवस्य राजसि ये एते एनी बृहती अभिश्रिया हिरण्ययी वक्वरी द्यावापृथिव्यौ ते विज्ञानानुकूलं बर्हिराशाते ॥ ६ ॥

    पदार्थः

    (त्वम्) (हि) किल (अग्ने) सूर्यइव प्रकाशमान (दिव्यस्य) दिवि भवस्य वृष्ट्यादिविज्ञानस्य (राजसि) प्रकाशयसि (त्वम्) (पार्थिवस्य) पृथिव्यां विदितस्य पदार्थविज्ञानस्य (पशुपाइव) यथा पशुपालकस्तथा (त्मना) आत्मना (एनी) ये इतस्ते (ते) तव (एते) प्रत्यक्षे (बृहती) महत्यौ (अभिश्रिया) अभितः शोभायुक्ते (हिरण्ययी) प्रभूतहिरण्यमय्यौ (वक्वरी) प्रशंसिते (बर्हिः) वर्द्धनम् (आशाते) व्याप्नुतः ॥ ६ ॥

    भावार्थः

    अत्रोपमावाचकलुप्तोपमालङ्कारौ। यथा ऋद्धिसिद्धयः पूर्णां श्रियं कुर्वन्ति तथात्मवान् पुरुषः परमेश्वरे भूराज्ये च सुप्रकाशते यथा वा पशुपालः स्वान्पशून् प्रीत्या रक्षति तथा सभापतिः स्वाः प्रजा रक्षेत् ॥ ६ ॥

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    हिन्दी (1)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

    पदार्थ

    हे (अग्ने) सूर्य के समान प्रकाशमान विद्वान् ! (त्वं, हि) आप ही (पशुपाइव) पशुओं की पालना करनेवाले के समान (त्मना) अपने से (दिव्यस्य) अन्तरिक्ष में हुई वृष्टि आदि के विज्ञान को (राजसि) प्रकाशित करते वा (त्वम्) आप (पार्थिवस्य) पृथिवी में जाने हुए पदार्थों के विज्ञान का प्रकाश करते हो (एते) ये प्रत्यक्ष (एनी) अपनी अपनी कक्षा में घूमनेवाले (बृहती) अतीव विस्तारयुक्त (अभिश्रिया) सब ओर से शोभायमान (हिरण्ययी) बहुत हिरण्य जिनमें विद्यमान (वक्वरी) प्रशंसित सूर्यमण्डल और भूमण्डल वा (ते) आपके ज्ञान के अनुकूल (बर्हिः) वृद्धि को (आशाते) व्याप्त होते हैं ॥ ६ ॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में उपमा और वाचकलुप्तोपमालङ्कार हैं। जैसे ऋद्धि और सिद्धि पूरी लक्ष्मी को करती हैं वैसे आत्मवान् पुरुष परमेश्वर और पृथिवी के राज्य में अच्छे प्रकार प्रकाशित होता जैसे पशुओं का पालनेवाला प्रीति से अपने पशुओं की रक्षा करता है, वैसे सभापति अपने प्रजाजनों की रक्षा करे ॥ ६ ॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात उपमा व वाचकलुप्तोपमालंकार आहेत. जशा रिद्धी सिद्धी पूर्ण लक्ष्मीयुक्त करतात. तसा आत्मवान पुरुष परमेश्वर व पृथ्वीवरील राज्यामध्ये सुप्रकाशित होतो. जसा पशूंचा पालनकर्ता प्रेमाने आपल्या पशूंचे रक्षण करतो तसे सभापतीने आपल्या प्रजेचे रक्षण करावे. ॥ ६ ॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Agni, light supreme and power, you light and rule the heavens. You enliven and mle the earth and the earthly like a master shepherd with love and care. And both of them, heaven and earth, move on, mighty, grand and graceful, golden rich and beautiful, rotating and revolving in their orbits, rushing on and participating in the cosmic yajna.

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