Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 1 के सूक्त 153 के मन्त्र
1 2 3 4
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 153/ मन्त्र 4
    ऋषिः - दीर्घतमा औचथ्यः देवता - मित्रावरुणौ छन्दः - भुरिक्पङ्क्ति स्वरः - पञ्चमः

    उ॒त वां॑ वि॒क्षु मद्या॒स्वन्धो॒ गाव॒ आप॑श्च पीपयन्त दे॒वीः। उ॒तो नो॑ अ॒स्य पू॒र्व्यः पति॒र्दन्वी॒तं पा॒तं पय॑स उ॒स्रिया॑याः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उ॒त । वा॒म् । वि॒क्षु । मद्या॑सु । अन्धः॑ । गावः॑ । आपः॑ । च॒ । पी॒प॒य॒न्त॒ । दे॒वीः । उ॒तो इति॑ । नः॒ । अ॒स्य । पू॒र्व्यः । पतिः॑ । दन् । वी॒तम् । पा॒तम् । पय॑सः । उ॒स्रिया॑याः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उत वां विक्षु मद्यास्वन्धो गाव आपश्च पीपयन्त देवीः। उतो नो अस्य पूर्व्यः पतिर्दन्वीतं पातं पयस उस्रियायाः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उत। वाम्। विक्षु। मद्यासु। अन्धः। गावः। आपः। च। पीपयन्त। देवीः। उतो इति। नः। अस्य। पूर्व्यः। पतिः। दन्। वीतम्। पातम्। पयसः। उस्रियायाः ॥ १.१५३.४

    ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 153; मन्त्र » 4
    अष्टक » 2; अध्याय » 2; वर्ग » 23; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह ।

    अन्वयः

    हे मित्रावरुणौ यथा देवीर्गाव आपश्च मद्यासु विक्षु वां पीपयन्तोताऽन्धः प्रदद्युः। उतो पूर्व्यः पतिः नोऽस्माकमस्योस्रियायाः पयसो दन् वर्त्तते तथा युवां विद्या वीतं दुग्धं च पातम् ॥ ४ ॥

    पदार्थः

    (उत) (वाम्) युवाम् (विक्षु) प्रजासु (मद्यासु) हर्षणीयासु (अन्धः) अन्नम् (गावः) वाण्यः (आपः) जलानि (च) (पीपयन्त) वर्द्धयन्ति (देवीः) दिव्याः (उतो) (नः) अस्माकम् (अस्य) अध्यापनकर्मणः (पूर्व्यः) पूर्वैः कृतः (पतिः) पालयिता (दन्) ददन्। अत्र बहुलं छन्दसीति शपो लुक्। (वीतम्) व्याप्नुतम् (पातम्) पिबतम् (पयसः) दुग्धस्य (उस्रियायाः) दुग्धदाया धेनोः। उस्रियेति गोना०। निघं० २। ११। ॥ ४ ॥

    भावार्थः

    अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। येऽत्र गोवत्सुखप्रदाः प्राणवत् प्रियाः प्रजासु वर्त्तन्ते तेऽतुलमानन्दमाप्नुवन्ति ॥ ४ ॥अत्र मित्रावरुणगुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥इति त्रिपञ्चाशदुत्तरं सूक्तं त्रयोविंशो वर्गश्च समाप्तः ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

    पदार्थ

    हे मित्र और वरुण श्रेष्ठ जन ! जैसे (देवीः) दिव्य (गावः) वाणी (आपः, च) और जल (मद्यासु) हर्षित करने योग्य (विक्षु) प्रजाजनों में (वाम्) तुम दोनों को (पीपयन्त) उन्नति देते हैं (उत) और (अन्धः) अन्न अच्छे प्रकार देवें (उतो) और (पूर्व्यः) पूर्वजों ने नियत किया हुआ (पतिः) पालना करनेवाला (नः) हमारे (अस्य) पढ़ाने के काम सम्बन्धी (उस्रियायाः) दुग्ध देनेवाली गौ के (पयसः) दूध को (दन्) देता हुआ वर्त्तमान है, वैसे तुम दोनों विद्या को (वीतम्) व्याप्त होओ और दुग्ध (पातम्) पिओ ॥ ४ ॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो यहाँ गौओं के समान सुख देनेवाले और प्राण के समान प्रिय प्रजाजनों में वर्त्तमान हैं, वे इस संसार में अतुल आनन्द को प्राप्त होते हैं ॥ ४ ॥इस सूक्त में मित्र और वरुण के गुणों का वर्णन होने से इस सूक्त के अर्थ की पिछले सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥यह एकसौ त्रेपनवाँ सूक्त और तेईसवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    वीर्य, गोदुग्ध व जल

    पदार्थ

    १. (उत) = और (वाम्) = आपको- प्राणापान को (मद्यासु) = हर्षस्वभाववाली विक्षु प्रजाओं में (पीपयन्त) = आप्यायित करते हैं। कौन ? [क] (अन्धः) = आप्यायनीय सोम-रक्षण करने के योग्य वीर्य-शक्ति, [ख] (गावः) = गोदुग्ध, [ग] (च) = और (देवी: आपः) = दिव्यगुणोंवाले जल । वीर्य के रक्षण से, गोदुग्ध तथा जलों के समुचित प्रयोग से शरीर में प्राणापान की शक्ति बढ़ती है। स्नान के लिए स्पञ्जिग के रूप में जलों का प्रयोग प्राणापान की शक्ति का वर्धन करता है। इसी प्रकार पीने के लिए उष्ण जल का प्रयोग प्राणशक्ति को क्षीण नहीं होने देता। २. (उत) = और (उ) = निश्चय से (नः) = हमें (पूर्व्यः पतिः) = इस ब्रह्माण्ड का मुख्य स्वामी प्रभु (अस्य दन्) = इस प्राणशक्ति को देनेवाला हो । हे प्राणापानो! आप (उस्त्रियायाः) = इस वेद-धेनु के (पयसः) = ज्ञानदुग्ध का (वीतम्) = भक्षण करो और (पातम्) = उसका पान व रक्षण करो। प्रभु-स्तवन से वासनाओं का निराकरण होकर हमारी प्राणशक्ति का वर्धन हो और प्राणशक्ति के वर्धन से तीव्र बुद्धिवाले होकर हम वेदज्ञान को प्राप्त करनेवाले बनें ।

    भावार्थ

    भावार्थ – वीर्यरक्षण, गोदुग्ध व जल के प्रयोग से प्राणशक्ति में वृद्धि होती है। इस प्राणशक्ति के वर्धन से तीव्रबुद्धि होकर हम ज्ञानदुग्ध का पान करनेवाले बनते हैं।

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    पतिपत्नी के कर्त्तव्य ।

    भावार्थ

    हे स्त्री पुरुषो ! (मद्यासु विक्षु) हर्ष देने वाली, और हर्ष प्राप्त करने योग्य प्रजाओं के बीच में रहते हुए (वां) आप दोनों की ( गावः ) गौ आदि पशुगण (आपः च) जल कूप, नदी, तड़ाग आदि और आप्त पुरुष ( देवीः ) और उत्तम विदुषी स्त्रियें सभी ( पीपयन्त ) वृद्धि करें। आप दोनों के बल, साहस और सुख को बढ़ावें (उतो) और ( नः ) हमारे बीच में । (वां) आप दोनों में से जो (दन्)समस्त सुखों का देने हारा ( उस्त्रियायाः पयसः दन् ) गौ के दूध को देने वाले गोपालक के समान होकर (पूर्व्यः) पूर्व के बड़े आप्त पुरुषों द्वारा स्थिर कर दिया जाता है वह ही (पतिः) पालक पति रूप से रहे । वे तुम दोनों पति पत्नी ( अस्य पयसः) इस पुष्टिकारक दुग्ध, अन्नादि को (वीतं पातम्) खाओ और पीओ और आनन्दित रहों । स्त्री पुरुष में माता पिता गुरुजन ही जिसको पति बना देते हैं वहीं स्त्री को सब कुछ देने वाला होता है । तो भी गौ के समान भूमि के पुष्टि-कारक अन्नादि का वे दोनों मिलकर उपभोग करने के अधिकारी हैं। इति त्रयोविंशो वर्गः ॥

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    दीर्घतमा ऋषिः ॥ मित्रावरुणौ देवते ॥ छन्दः– १, २ निचृत् त्रिष्टुप । ३ त्रिष्टुप । ४ भुरिक् पङ्क्तिः ॥ चतुऋचं सूक्तम् ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जे गाईप्रमाणे सुख देणारे व प्राणाप्रमाणे प्रजेत प्रिय आहेत ते या जगात अतुल आनंद प्राप्त करतात. ॥ ४ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Mitra and Varuna, friends, teachers and leaders of humanity, may the cows and the holy voices, consecrated holy waters and food and the juice of soma among the happy people surfeit you with delight. And may the ancient master of our yajna of education, governance and production giving us the fruits of holiness sustain the yajna, and may you too continue to enjoy the fruits of that yajna and drink the milk of the cow as well as the lights of dawn.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    We should fully respect our teachers and preachers.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O Mitra and Varuna-the teachers and preachers! among all, only really capable persons endowed with divine qualities pay their respects and regards to you, and entertain you well with good water and food. It is just like the cow, which gives the milk. Hence, we pray to you to cover all branches of the sciences (be well-versed in them ), and after studies activate us thoroughly and become our adorable.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    The people who give joy like the cows and Pranas, enjoy unmatched happiness.

    Foot Notes

    (भघासु) हर्षणीयासु = That are to be made happy. ( अन्ध: ) अन्नम् - Food. ( उत्रियायाः) दुग्धदायाः धेनोः ( उत्रियेति गोनाम NG-2-11) = Of the milch cow.

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top