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ऋग्वेद मण्डल - 1 के सूक्त 177 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 177/ मन्त्र 3
    ऋषिः - अगस्त्यो मैत्रावरुणिः देवता - इन्द्र: छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    आ ति॑ष्ठ॒ रथं॒ वृष॑णं॒ वृषा॑ ते सु॒तः सोम॒: परि॑षिक्ता॒ मधू॑नि। यु॒क्त्वा वृष॑भ्यां वृषभ क्षिती॒नां हरि॑भ्यां याहि प्र॒वतोप॑ म॒द्रिक् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ । ति॒ष्ठ॒ । रथ॑म् । वृष॑णम् । वृषा॑ । ते॒ । सु॒तः । सोमः॑ । परि॑ऽसिक्ता । मधू॑नि । यु॒क्त्वा । वृष॑ऽभ्याम् । वृ॒ष॒भ॒ । क्षि॒ती॒नाम् । हरि॑ऽभ्याम् । या॒हि॒ । प्र॒ऽवता॑ । उप॑ । म॒द्रिक् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आ तिष्ठ रथं वृषणं वृषा ते सुतः सोम: परिषिक्ता मधूनि। युक्त्वा वृषभ्यां वृषभ क्षितीनां हरिभ्यां याहि प्रवतोप मद्रिक् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आ। तिष्ठ। रथम्। वृषणम्। वृषा। ते। सुतः। सोमः। परिऽसिक्ता। मधूनि। युक्त्वा। वृषऽभ्याम्। वृषभ। क्षितीनाम्। हरिऽभ्याम्। याहि। प्रऽवता। उप। मद्रिक् ॥ १.१७७.३

    ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 177; मन्त्र » 3
    अष्टक » 2; अध्याय » 4; वर्ग » 20; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह ।

    अन्वयः

    हे वृषभ राजन् मद्रिग्वृषा सँस्त्वं यस्ते सोमः सुतस्तत्र मधूनि परिषिक्ता तं पीत्वा क्षितीनां वृषभ्यां हरिभ्यां वृषणं रथं युक्त्वा युद्ध मा तिष्ठ प्रवतोप याहि ॥ ३ ॥

    पदार्थः

    (आ) समन्तात् (तिष्ठ) (रथम्) विमानादियानम् (वृषणम्) दृढम् (वृषा) रसादि पूर्णः (ते) तुभ्यम् (सुतः) निष्पादितः (सोमः) सोमलतादिरसः (परिषिक्ता) परितः सर्वतः सिक्तानि (मधूनि) मधुरादि द्रव्याणि (युक्त्वा) (वृषभ्याम्) बलिष्ठाभ्याम् (वृषभ) परशक्तिबन्धकत्वेन बलिष्ठ (क्षितीनाम्) मनुष्याणाम् (हरिभ्याम्) हरणशीलाभ्याम् (याहि) (प्रवता) निम्नेन मार्गेण (उप) (मद्रिक्) अस्मानञ्चन् प्राप्नुवन् ॥ ३ ॥

    भावार्थः

    ये युक्ताहारविहाराः सोमाद्योषधिरससेविनो दीर्घब्रह्मचर्याः शरीरात्मबलयुक्ता राजानो विद्युदादिपदार्थवेगयुक्तानि यानानि साधयित्वा दण्डेन दुष्टान् निवार्य्य न्यायेन राज्यं रक्षयेयुस्त एव सुखिनो भवन्ति ॥ ३ ॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

    पदार्थ

    हे (वृषभ) दूसरों के सामर्थ्य रोकने से बलिष्ठ राजन् ! (मद्रिक्) हम लोगों को प्राप्त होते और (वृषा) रस आदि से परिपूर्ण होते हुए आप जो (ते) अपने लिये (सोमः) सोमलता आदि का रस (सुतः) उत्पन्न किया गया है उसमें (मधूनि) मीठे मीठे पदार्थ (परिषिक्ता) सब ओर से सींचे हुए हैं उस रस को पीकर (क्षितीनाम्) मनुष्यों के (वृषभ्याम्) प्रबल (हरिभ्याम्) हरणशील घोड़ों से (वृषणम्) दृढ़ (रथम्) रथ को (युक्त्वा) जोड़ युद्ध का (आ, तिष्ठ) यत्न करो वा युद्ध की प्रतिज्ञा पूर्ण करो और (प्रवता) नीचे मार्ग से (उप, याहि) समीप आओ ॥ ३ ॥

    भावार्थ

    जो आहार-विहार से सोमादि ओषधियों के रस के सेवनेवाले, दीर्घ ब्रह्मचर्य्य, किये हुए शरीर और आत्मा के बल से युक्त राजजन बिजुली आदि पदार्थों के वेग से युक्त यानों को सिद्ध कर दण्ड से दुष्टों को निवारण कर न्याय से राज्य की रक्षा कराया करें, वे ही सुखी होते हैं ॥ ३ ॥

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    विषय

    शरीर-रथ से ब्रह्मधाम की ओर

    पदार्थ

    १. प्रभु प्रेरणा देते हुए कहते हैं कि (वृषणं रथम्) = इस शक्तिशाली रथ को (आतिष्ठ) = तू अधिष्ठित कर तू इस रथ का अधिष्ठाता बन । यह रथ पूर्णरूप से तेरे वश में हो। यह रोगों से जीर्ण न हो गया हो। २. यह (वृषा) = तुझे शक्तिशाली बनानेवाला व तुझपर सब सुखों का वर्षण करनेवाला (सोमः) = सोम [वीर्यशक्ति से ही] (ते) = तेरे लिए (सुतः) = उत्पन्न किया गया है। इस सोम के द्वारा (मधूनि परिषिक्ता) = सब माधुर्यो का तुझमें सेचन हुआ है। यह सोम तेरे मन, वचन व कर्मों में माधुर्य का सञ्चार करनेवाला है। इसके रक्षण से तेरे मन के विचार मधुर ही होते हैं, तेरी वाणी के उच्चार भी मधुर होते हैं और शरीर से तू मधुर ही आचरणवाला बनता है। ३. इस प्रकार (क्षितीणां वृषभ) = हे मनुष्यों में श्रेष्ठ [पुरुषर्षभ] ! तू (वृषभ्यां हरिभ्याम्) = शक्तिशाली ज्ञानेन्द्रिय व कर्मेन्द्रियरूप अश्वों से (युक्त्वा) = इस शरीर रथ को युक्त करके इस प्रवता वेगवान् रथ से मद्रिक् मेरे अभिमुख उपयाहि समीपता से प्राप्त हो । वस्तुतः शरीररूप रथ को दृढ़, स्वाधीन बनाकर, शक्ति के रक्षण द्वारा 'विचार, उच्चार व आचार' सभी को मधुर बनाकर, इन्द्रियाश्वों को रथ में जोतकर हमें प्रभु-प्राप्ति के मार्ग में बढ़ना है। यही मानव जीवन का लक्ष्य =

    भावार्थ

    भावार्थ- हम शरीर के अधिष्ठाता बनें। सोम का रक्षण करें। शक्तिशाली इन्द्रियाश्वों से इस शरीर रथ को युक्त करके जीवन यात्रा को पूर्ण करनेवाले बनें ।

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    विषय

    बलवान् नायकों का आह्वान, शासक के कर्त्तव्य ।

    भावार्थ

    हे राजन् ! तू ( वृषणं ) दृढ़, बलवान्, शत्रुओं के प्रबल आक्रमण को रोकने में समर्थ ( रथम् ) रथ और रथ सैन्य को (आ तिष्ठ) अपने अधीन रख, उस पर नायक बनकर रह । ( ते ) तेरे ही कार्य के लिये ( वृषा ) बलवान्, शत्रुबल को बांधने और अपने सैन्य का प्रबन्ध करने हारा ( सोमः ) सबको ठीक २ प्रेरने और सञ्चालन करने वाला (सुतः) अभिषिक्त पुरुष सेना नायक हो । जिस प्रकार ( मधूनि परिषिक्ता) अभिषेक काल में जलों को परिसेचन किया जाता है उसी प्रकार ( मधूनि ) शत्रु को व्यथित और संतप्त करने वाले नाना सैन्यांग भी (परि सिक्तानि) खूब परिपुष्ट हों । हे ( वृषभ ) नरश्रेष्ठ ! तू ( मद्रिक् ) हमें प्राप्त होकर ( वृषभ्यां हरिभ्यां ) बलवान् अश्वों से या अश्व सैन्य के दो दलों से ( वृषणं रथं युक्त्वा ) बलवान् रथ और पूर्वोक्त रथसैन्य को जोड़कर, अश्व सैन्यों से रथ-सैन्य को सुरक्षित करके ( प्रवता ) बड़े वेग से ( उपयाहि ) प्रयाण कर । (२) अध्यात्म में—बलवान् ‘रथ’ देह है। ‘सोम’ वीर्य है । रक्तादि रस ‘मधु’ हैं। प्राण और अपान दो ‘हरि’ हैं। वह चित्त भूमियों के विजय के लिये ( मद्रिक् ) आत्मवशी होकर प्रस्थान करता है ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अगस्त्य ऋषिः॥ इन्द्रो देवता ॥ छन्दः– १, २ निचृत् त्रिष्टुप् । ३ त्रिष्टुप् । ४ भुरिक् त्रिष्टुप् । ५ भुरिक् पङ्क्तिः ॥ स्वरः—१—४ धैवतः । ५ पञ्चमः ॥ पञ्चर्चं सूक्तम्॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जे आहारविहाराने युक्त, सोम इत्यादी औषधांचे रस पिणारे, दीर्घ ब्रह्मचर्य, शरीर आत्मा यांच्या बलाने युक्त राजे, विद्युत इत्यादी पदार्थांच्या वेगाप्रमाणे युक्त यान सिद्ध करून दंड देऊन दुष्टांचे निवारण करतात व न्यायाने राज्याचे रक्षण करतात, तेच सुखी होतात. ॥ ३ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Indra, potent lord of fertility and universal generosity, ride your celestial chariot and come. Distilled is soma, seasoned and sprinkled with the sweetest honey around the vedi, ready for the celebration. O potent and generous lord of the people, yoke the two most energetic powers of motion to the chariot and come right here to us by the shortest route at the fastest speed.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The rulers should protect the people well.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O mighty king ! you are benefactor ; ascend your strongly built chariot (aero bus) for the flavored Soma juice of various nourishing herbs, so that many sweet items are prepared. Drink them and having harnessed them, come with your vigorous power for the well-being of the mankind. Come with your rapid car to us.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    Those kings enjoy happiness who are regular in their habits of eating and walking etc. who take the juice of Soma and other medicinal plants, observe Brahmacharya for a long period, and get manufactured various vehicles run with power. They keep away the wicked by punishing them and run the administration with justice.

    Foot Notes

    (रथम् ) विमानादियानम् = Vehicles or cars in the form of aero plane etc. ( प्रवता ) निम्नेन मार्गेण = By downward path below. ( हरिभ्याम् ) हरणशीलाभ्याम् = Electric forces or horses.

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