ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 115/ मन्त्र 8
ऋषिः - उपस्तुतो वार्ष्टिहव्यः
देवता - अग्निः
छन्दः - पादनिचृत्त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
ऊर्जो॑ नपात्सहसाव॒न्निति॑ त्वोपस्तु॒तस्य॑ वन्दते॒ वृषा॒ वाक् । त्वां स्तो॑षाम॒ त्वया॑ सु॒वीरा॒ द्राघी॑य॒ आयु॑: प्रत॒रं दधा॑नाः ॥
स्वर सहित पद पाठऊर्जः॑ । न॒पा॒त् । स॒ह॒सा॒ऽव॒न् । इति॑ । त्वा॒ । उ॒प॒ऽस्तु॒तस्य॑ । व॒न्द॒ते॒ । वृषा॑ । वाक् । त्वाम् । स्तो॒षा॒म॒ । त्वया॑ । सु॒ऽवीराः॑ । द्राघी॑यः । आयुः॑ । प्र॒ऽत॒रम् । दधा॑नाः ॥
स्वर रहित मन्त्र
ऊर्जो नपात्सहसावन्निति त्वोपस्तुतस्य वन्दते वृषा वाक् । त्वां स्तोषाम त्वया सुवीरा द्राघीय आयु: प्रतरं दधानाः ॥
स्वर रहित पद पाठऊर्जः । नपात् । सहसाऽवन् । इति । त्वा । उपऽस्तुतस्य । वन्दते । वृषा । वाक् । त्वाम् । स्तोषाम । त्वया । सुऽवीराः । द्राघीयः । आयुः । प्रऽतरम् । दधानाः ॥ १०.११५.८
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 115; मन्त्र » 8
अष्टक » 8; अध्याय » 6; वर्ग » 19; मन्त्र » 3
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अष्टक » 8; अध्याय » 6; वर्ग » 19; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
हिन्दी (3)
पदार्थ
(ऊर्जः-नपात्) हे अध्यात्मबल के न गिरानेवाले किन्तु बढ़ानेवाले (सहसावन्) साहसी तथा साहस दिलानेवाले (इति) तुझे ऐसा मानकर (उपस्तुतस्य) उपासना करनेवाले की (वृषा वाक्) सुख वर्षानेवाली वाणी (वन्दते) तेरे गुणों का प्रकाश करती है (त्वाम्) तुझे-तेरी (स्तोषाम) स्तुति करते हैं (त्वया) तेरे साथ संयुक्त हुए (सुवीराः) अच्छे प्राणवान् होते हुए (द्राघीयः) अत्यन्त दीर्घ लम्बी (आयुः) आयु को (प्रतरं दधानाः) उत्कृष्टरूप में धारण करते हुए हम होवें ॥८॥
भावार्थ
परमात्मा अध्यात्मबल को बढ़ानेवाला, साहस दिलानेवाला है, उपासक की वाणी उसके गुणों का प्रकाश करती है, उससे संयुक्त होकर अच्छे प्राणवाले होकर मनुष्य दीर्घ आयु को प्राप्त करते हैं ॥८॥
विषय
ऊर्जोनपात्-सहसावन्
पदार्थ
[१] (उपस्तुतस्य) = उपासना करते हुए स्तुति करनेवाले की (वृषावाक्) = सब पर सुखों का वर्षण करनेवाली वाणी (त्वा) = आपको 'ऊर्जोनपात्' तथा 'सहसावन्' इन नामों से (वन्दते) = वन्दित करती है। यह उपस्तुत आपको इस रूप में याद करता है कि आप 'ऊर्जोनपात्' हैं, बल और प्राणशक्ति को न गिरने देनेवाले हैं। आप 'सहसावन्' हैं, शत्रुओं को कुचल देनेवाली शक्तिवाले हैं। आपसे शक्ति को प्राप्त करके ही उपासक काम-क्रोध आदि को कुचलनेवाला बनता है । [२] (त्वां स्तोषाम) = हे प्रभो ! हम आपका ही स्तवन करें। (त्वया सुवीराः) = आपके सम्पर्क से हम उत्तम वीर बनें। और (द्राघीयः आयुः) = दीर्घ जीवन को (प्रतरं प्रकृष्टतरम्) = खूब अच्छी प्रकार (दधानाः) = धारण करते हुए हों। 'ऊर्ज्' के द्वारा हम शरीरस्थ रोगों को जीतकर नीरोग व दीर्घजीवी हों । तथा 'सहस्' के द्वारा काम-क्रोध को कुचलकर स्वस्थ व निर्मल मनवाले होते हुए हम प्रकृष्टतर जीवनवाले हैं। गत मन्त्र के शब्दों में हम ऊर्ज् के द्वारा 'मित्रासः न' नीरोग व सूर्यसम तेजस्वी हों । सहस् के द्वारा 'द्यावः न' सूर्यसम ज्ञानदीप्त हों ।
भावार्थ
भावार्थ - प्रभु 'ऊर्जोनपात्' व 'सहसावन्' हैं। इस प्रकार स्तवन करता हुआ मैं भी उर्जस्वी व सहसावन् बनूँ। ऊर्जस्वी होकर नीरोग और सहस्वी होकर निर्मल मनवाला होऊँ।
विषय
प्रभु की स्तुति।
भावार्थ
हे (ऊर्जः नपात्) अन्न रस के तुल्य बल द्वारा प्रकट होने वाले ! हे (सहसावन्) बलशालिन् ! (उप-स्तुतस्य) स्तुति करने वाले उपासक की (वृषा वाक्) सुखप्रद वाणी (त्वा) तुझे (इति) इसी प्रकार (वन्दते) स्तुति करती है। हम (त्वां स्तोषाम) तेरी स्तुति करते हैं। हम (त्वया) तेरे बल से ही (सु-वीराः) उत्तम वीर्यवान् होकर, (द्राघीयः प्रतरं आयुः दधानाः) अति दीर्घ, उत्तम आयु को धारण करते हुए रहें।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिरुपस्तुतो वाष्टिर्हव्यः॥ अग्निर्देवता॥ छन्द:- १, २, ४, ७ विराड् जगती। ३ जगती। ५ आर्चीभुरिग् जगती। ६ निचृज्जगती। ८ पादनिचृत् त्रिष्टुप्। ९ पादनिचृच्छक्वरी। नवर्चं सूक्तम्॥
संस्कृत (1)
पदार्थः
(ऊर्जः-नपात्) हे अध्यात्मबलस्य न पातयितः-अपि तु वर्धयितः ! (सहसावन्) सहस्विन्-बलवन् (इति) इत्येवं कृत्वा (उपस्तुतस्य वृषा वाक्-वन्दते) उपासकस्य ‘उपस्तुतः-इति कर्त्तरि क्तश्छान्दसः’ सुखवर्षयित्री वाक् खलु तव गुणान् प्रकाशयति “वन्दते गुणान् प्रकाशयति” [यजु० ३।४६ दयानन्दः] (त्वां स्तोषाम) त्वां स्तुमः “स्तुधातोर्लटि सिप्-आट् चागमः” (त्वया सुवीराः) त्वया संयुक्ताः सुष्ठु प्राणवन्तः सन्तः “प्राणा वै दशवीराः” [श० १२।८।१।२२] (द्राघीयः-आयुः प्रतरं दधानाः) अति दीर्घमायुः प्रकृष्टतरं धारयन्तो भवेम ॥८॥
इंग्लिश (1)
Meaning
“Child of energy, creator, sustainer and master of strength, energy and victory, undaunted and inviolable wielder of courage, patience and enthusiasm for living”, thus does the celebrant’s profound vision and word describe you as he closely watches and adores you. We, holy, brave and grateful, praise you while we enjoy your gift of good health, long life and the vision and hope of ultimate success and fulfilment.
मराठी (1)
भावार्थ
परमात्मा अध्यात्मबलाला वाढविणारा, साहस देणारा आहे. उपासकाची वाणी त्याच्या गुणांचा प्रकाश करते. त्याच्याशी संयुक्त होऊन चांगले प्राणयुक्त बनून माणसे दीर्घ आयू प्राप्त करतात. ॥८॥
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