ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 138/ मन्त्र 4
अना॑धृष्टानि धृषि॒तो व्या॑स्यन्नि॒धीँरदे॑वाँ अमृणद॒यास्य॑: । मा॒सेव॒ सूर्यो॒ वसु॒ पुर्य॒मा द॑दे गृणा॒नः शत्रूँ॑रशृणाद्वि॒रुक्म॑ता ॥
स्वर सहित पद पाठअना॑धृष्टानि । धृ॒षि॒तः । वि । आ॒स्य॒त् । नि॒ऽधीन् । अदे॑वान् । अ॒मृ॒ण॒त् । अ॒यास्यः॑ । मा॒साऽइ॑व । सूर्यः॑ । वसु॑ । पुर्य॑म् । आ । द॒दे॒ । गृ॒णा॒नः । शत्रू॑न् । अ॒शृ॒णा॒त् । वि॒ऽरुक्म॑ता ॥
स्वर रहित मन्त्र
अनाधृष्टानि धृषितो व्यास्यन्निधीँरदेवाँ अमृणदयास्य: । मासेव सूर्यो वसु पुर्यमा ददे गृणानः शत्रूँरशृणाद्विरुक्मता ॥
स्वर रहित पद पाठअनाधृष्टानि । धृषितः । वि । आस्यत् । निऽधीन् । अदेवान् । अमृणत् । अयास्यः । मासाऽइव । सूर्यः । वसु । पुर्यम् । आ । ददे । गृणानः । शत्रून् । अशृणात् । विऽरुक्मता ॥ १०.१३८.४
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 138; मन्त्र » 4
अष्टक » 8; अध्याय » 7; वर्ग » 26; मन्त्र » 4
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अष्टक » 8; अध्याय » 7; वर्ग » 26; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
हिन्दी (3)
पदार्थ
(धृषितः) शत्रुओं का धर्षणकर्ता दबानेवाला (अनाधृष्टानि) न धर्षण करने योग्य बलों को (वि-आस्यत्) विशेषरूप से फेंकता है (अयास्यः) अभ्रान्त-न थका हुआ (निधीन्-अदेवान्) बलनिधि नास्तिक उद्दण्ड शत्रुओं को (अमृणात्) हिंसित करता है (मासा इव सूर्यः) अपनी रश्मि से सूर्य रस खींच लेता है, उसी प्रकार (पुर्यं वसु-आददे) शत्रु के पुरि नगरी में होनेवाले धन को बल को ले लेता है (गृणानः) प्रार्थना में लाया हुआ (विरुक्मता शत्रून्-अशृणात्) विशेष तेजस्वी वज्र से शत्रुओं को मारता है ॥४॥
भावार्थ
राजा धर्षणशील हो, अहिंसित शस्त्रों से न थकता हुआ शत्रुओं को मारे-बल धनकोषों को वश में करे, सूर्य जैसे रश्मि से रस ले लेता है, सब कुछ शत्रु को स्ववश में ले लेवे, तेजस्वी शस्त्र से शत्रु को मारे ॥४॥
विषय
अदेव निधि-निधन [हिंसन]
पदार्थ
[१] (धृषितः) = गत मन्त्र का ज्ञानाग्नि द्वारा शत्रु धर्षण शक्ति से युक्त पुरुष (अनाधृष्टानि) = जिनका धर्षण करना बड़ा कठिन है, उन काम-क्रोधादि शत्रुओं को (व्यास्यत्) = इस ज्ञानाग्नि के द्वारा परे फेंकता है ज्ञान से मनुष्य को वह शक्ति प्राप्त होती है जिससे कि वह काम-क्रोध आदि का शिकार नहीं होता । [२] यह (अयास्यः) = [ चालयितुमशक्यः सा० ] मार्ग से विचलित न किया जा सकनेवाला यह व्यक्ति (अदेवान् निधीन्) = आसुरी सम्पत्तियों को (अमृणत्) = हिंसित करता है । सब आसुरभावों को विनष्ट करके दिव्यगुणों का धारण करता है और अपने जीवन में दैवी सम्पत्ति को बढ़ानेवाला होता है। [३] यह अपने जीवन में दैवी सम्पत्ति का वर्धन करनेवाला व्यक्ति (पुर्यं वसु) = शरीररूप नगरी के लिए हितकर सब वसुओं का [धनों का ] (आददे) = ग्रहण करता है, उसी प्रकार (इव) = जैसे कि (सूर्य:) = सूर्य (मासा) = महीनों का [मासं=a month ] । एक-एक दिन करके सूर्य महीनों को मापता चलता है, इसी प्रकार वह उपासक वसुओं को प्राप्त करता है । [४] इस उपासक से (गृणानः) = स्तुति किये जाते हुए प्रभु ही (विरुक्मता) = देदीप्यमान ज्ञान से (शत्रून्) = काम-क्रोधादि शत्रुओं को (अशृणात्) = शीर्ण करते हैं। मैं प्रभु का उपासन करता हूँ, प्रभु मेरे शत्रुओं को नष्ट करते हैं।
भावार्थ
भावार्थ- हम प्रभु के उपासन से ज्ञान का वर्धन करके कामादि शत्रुओं का हिंसन करनेवाले हों ।
विषय
सूर्यवत् राष्ट्र में राजा के कर्त्तव्यों का वर्णन। शत्रु से करादान, दण्ड-ग्रहण की व्यवस्था।
भावार्थ
वह राजा (धृषितः) शत्रु को पराजित करने वाला (अना धृष्टानि) अपीड़ित, अपराजित शत्रु-बलों को (वि आस्यत्) विशेष रूप से पीड़ित करे। (अदेवान्) कर न देने वाले (निधीन्) बल, धन के स्वामियों को (अयास्यः) स्वयं अनथक परिश्रमी होकर (अमृणत्) नाश करे। (मासा इव सूर्यः) अपने तेज से सूर्य जिस प्रकार जल को ले लेता है उसी प्रकार वह (पुर्यम्) शत्रु के पुर, नगर दुर्गादि का समस्त धन प्राप्त करे, (गृणानः) स्तुति किया जाता हुआ, (विरुक्मता) विशेष दीप्तियुक्त शस्त्रादि से (शत्रून् अशृणात्) शत्रुओं को नाश करे।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिरंग औरवः। इन्द्रो देवता॥ छन्दः- १, ४, ६ पादनिचृज्जगती। २ निचृज्जगती। ३, ५ विराड् जगती। षडृच सूक्तम्॥
संस्कृत (1)
पदार्थः
(धृषितः) शत्रूणां धर्षयिताऽभिभविता (अनाधृष्टानि-आस्यत्) धर्षयितुमयोग्यानि बलानि विक्षिपति (अयास्यः) अभ्रान्तः सन् (निधीन्-अदेवान्) बलनिधीन् नास्तिकानुद्दण्डान् शत्रून् (अमृणात्) हिनस्ति “मृण हिंसायाम्” [तुदादि०] (मासा-इव सूर्यः) रश्मिना “मासा वै रश्मयः” [ता० १४।१२।९] यथा सूर्यो रसमादत्ते तद्वत् (पुर्यं वसु-आददे) शत्रोः पुरि भवं धनं बलं सर्वमादत्ते (गृणानः) प्रार्थयमानः (विरुक्मता शत्रून्-अशृणात्) विशेषतेजस्विना वज्रेण शत्रून् हंसि ॥४॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Dauntless and valiant Indra, ruler of the world, breaks down the formidable unimpaired selfish hoarders of wealth and power and, just as the sun by seasonal heat of its rays takes up the waters, so does he take out the concealed wealth and power of the antisocial elements, and, adored and celebrated, destroys the enemies of humanity by the lustre of his justice and power.
मराठी (1)
भावार्थ
राजा दबंग असावा. त्याने न थकता शस्त्रांनी शत्रूंना मारावे. त्यांचे धन व बल आपल्या ताब्यात घ्यावे. सूर्य जसा रश्मीद्वारे रस ओढून घेतो. तसे शत्रूला स्ववश करावे. प्रखर शस्त्रांनी त्यांना मारावे. ॥४॥
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