ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 143/ मन्त्र 3
नरा॒ दंसि॑ष्ठा॒वत्र॑ये॒ शुभ्रा॒ सिषा॑सतं॒ धिय॑: । अथा॒ हि वां॑ दि॒वो न॑रा॒ पुन॒ स्तोमो॒ न वि॒शसे॑ ॥
स्वर सहित पद पाठनरा॑ । दंसि॑ष्ठौ । अत्र॑ये । शुभ्रा॑ । सिसा॑सतम् । धियः॑ । अथ॑ । हि । वा॒म् । दि॒वः । न॒रा॒ । पुन॒रिति॑ । स्तोमः॑ । न । वि॒शसे॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
नरा दंसिष्ठावत्रये शुभ्रा सिषासतं धिय: । अथा हि वां दिवो नरा पुन स्तोमो न विशसे ॥
स्वर रहित पद पाठनरा । दंसिष्ठौ । अत्रये । शुभ्रा । सिसासतम् । धियः । अथ । हि । वाम् । दिवः । नरा । पुनरिति । स्तोमः । न । विशसे ॥ १०.१४३.३
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 143; मन्त्र » 3
अष्टक » 8; अध्याय » 8; वर्ग » 1; मन्त्र » 3
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अष्टक » 8; अध्याय » 8; वर्ग » 1; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
हिन्दी (3)
पदार्थ
(दंसिष्ठौ) अत्यन्त दर्शनीय (शुभ्रा) निर्मल ज्ञानवाले (नरा) मानव को सुमार्ग पर ले जानेवाले-अध्यापक और उपदेशक (अत्रये) भोक्ता जीवात्मा के लिए (धियः) अध्यात्मबुद्धियों तथा अध्यात्मकर्मों को (सिषासतम्) देते हो (अथ-हि) अनन्तर ही (वां नरा) तुम दोनों नेता (दिवः) ज्ञान से द्योतमान हुए मेरा-मुझ ज्ञान से द्योतमान हुए का (स्तोमः) स्तुतिसमूह-प्रशंसाप्रवाह (न) सम्प्रति (पुनः-विशसे) पुनः विशंसन करने को प्राप्त होता है ॥३॥
भावार्थ
अत्यन्त दर्शनीय निर्मल ज्ञानवाले अध्यापक और उपदेशक भोक्ता जीवात्मा के लिए अध्यात्मबुद्धियों को उपजाते हैं और अध्यात्मकर्मों का आचरण करवाते हैं, ऐसे तुम लोगों को ज्ञान से द्योतमान परमात्मा के स्तुतिसमूह या प्रशंसाप्रवाह उस परमात्मा की विशेष प्रशंसा करने को प्रवृत्त होता है-प्राप्त होता है ॥३॥
विषय
शुभ्र बुद्धि
पदार्थ
[१] हे (नरा) = उन्नतिपथ पर ले चलनेवाले, (दंसिष्ठा) = दर्शनीयतम व उत्तम कर्मोंवाले, (शुभ्रा) = उज्ज्वल प्राणापानो! आप (अत्रये) = काम-क्रोध-लोभ से ऊपर उठे व्यक्ति के लिये (धियः सिषासतम्) = बुद्धियों को दीजिये । प्राणसाधना से अशुद्धियों का क्षय होकर ज्ञानदीप्ति व बुद्धि की सूक्ष्मता प्राप्त होती ही है । [२] (नः च) = और (अथा) = अब (हि) = निश्चय से (दिवः नरा) = ज्ञान के नेतृतम प्राणापानो ! (वाम्) = आप के प्रति (स्तोमः) = यह मेरा स्तवन (पुनः) = फिर (विशसे) = विशेषरूप से शंसन के लिये होता है। आपका स्तवन करता हुआ मैं उत्तम बुद्धियों व ज्ञान को प्राप्त करता हूँ ।
भावार्थ
भावार्थ - प्राणसाधना से हमारी बुद्धि सूक्ष्म होती है और ज्ञान बढ़ता है ।
विषय
दोनों जीव को ज्ञान देते हैं।
भावार्थ
हे (नरा) उत्तम मार्ग से लेजाने वाले ! हे (दंसिष्ठौ) उत्तम कर्म करने हारो ! आप दोनों (अत्रये शुभ्राः धियः सिसासतम्) तीनों दुःखों से रहित के लिये उत्तम २ बुद्धियों और कर्मों का माता पितावत् ज्ञानोपदेश द्वारा प्रदान करो। (अथ हि) और (वाम्) आप दोनों के प्रति (पुनः) फिर भी (दिवः) ज्ञानप्रकाश के (वि-शसे) विशेष रूप से उपदेश करने के लिये मेरी (स्तोमः न) यह स्तुति या प्रार्थना है कि आप बार २ मुझे उपदेश देते रहा करें।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिः अत्रिः सांख्यः॥ अश्विनौ देवते॥ छन्द:—१—५ अनुष्टुप्। ६ निचृदनुष्टुप्। षडृचं सूक्तम्॥
संस्कृत (1)
पदार्थः
(दंसिष्ठौ शुभ्रा नरा) हे अतिदर्शनीयौ निर्मलज्ञानवन्तौ नेतारावध्यापकोपदेशकौ (अत्रये धियः सिषासतम्) भोक्त्रे जीवात्मनेऽध्यात्मबुद्धीरध्यात्मकर्माणि वा प्रयच्छथः (अथ-हि) अनन्तरमेव (वां नरा) युवां नेतारौ (दिवः) ज्ञानेन द्योतमानस्य मम (स्तोमः-न पुनः-विशसे) स्तुतिसमूहः-प्रशंसाप्रवाहः सम्प्रति पुनर्विशास्तुं प्राप्नोति ॥३॥
इंग्लिश (1)
Meaning
O leading lights, noble souls, brilliant scholars, pray release the worldly man in search of freedom from bondage, bless him with holy thoughts and intelligence, since the enlightened man’s song of prayer and adoration in order to celebrate you reaches you, harbingers of light, again and again.
मराठी (1)
भावार्थ
अत्यंत दर्शनीय ज्ञानयुक्त अध्यापक भोक्ता जीवात्म्यासाठी अध्यात्म बुद्धीचे सृजन करतात व अध्यात्म कर्माचे आचरण करवितात. अशा प्रकारे ज्ञानाने दीप्त असलेल्या परमात्म्याची स्तुती किंवा प्रशंसा करण्यास प्रवृत्त करतात. ॥३॥
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