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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 155 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 155/ मन्त्र 2
    ऋषिः - शिरिम्बिठो भारद्वाजः देवता - ब्रह्मणस्पतिः छन्दः - निचृदनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः

    च॒त्तो इ॒तश्च॒त्तामुत॒: सर्वा॑ भ्रू॒णान्या॒रुषी॑ । अ॒रा॒य्यं॑ ब्रह्मणस्पते॒ तीक्ष्ण॑शृण्गोदृ॒षन्नि॑हि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    च॒त्तो इति॑ । इ॒तः । च॒त्ता । अ॒मुतः॑ । सर्वा॑ । भ्रू॒णानि॑ । आ॒रुषी॑ । अ॒रा॒य्य॑म् । ब्र॒ह्म॒णः॒ । प॒ते॒ । तीक्ष्ण॑ऽशृङ्ग । उ॒त्ऽऋ॒षन् । इ॒हि॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    चत्तो इतश्चत्तामुत: सर्वा भ्रूणान्यारुषी । अराय्यं ब्रह्मणस्पते तीक्ष्णशृण्गोदृषन्निहि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    चत्तो इति । इतः । चत्ता । अमुतः । सर्वा । भ्रूणानि । आरुषी । अराय्यम् । ब्रह्मणः । पते । तीक्ष्णऽशृङ्ग । उत्ऽऋषन् । इहि ॥ १०.१५५.२

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 155; मन्त्र » 2
    अष्टक » 8; अध्याय » 8; वर्ग » 13; मन्त्र » 2
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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (इतः) यहाँ से (चत्ता-उ) हिंसित ही (अमुतः) उस दूर स्थान से (चत्ता) हिंसित हो-नष्ट हो (सर्वा भ्रूणानि) सारे ओषधिगर्भो-बीजों को (आरुषी) नष्ट करनेवाली तू है (ब्रह्मणस्पते) हे ब्रह्माण्ड के स्वामिन् परमात्मा या मेघाच्छन्न आकाश के ज्ञाता विद्वन् ! (तीक्ष्णशृङ्ग) तीक्ष्ण तेजवाले (अराय्यम्) न देनेवाली दुर्भिक्ष-विपत्ति को (उदृषन्) दूर फैंकता हुआ (इहि) प्राप्त हो ॥२॥

    भावार्थ

    दुर्भिक्षरूप आपत्ति पास से, दूर से अर्थात् सभी स्थनों से हटे-नष्ट होवे, मेघवर्षण की विद्या जाननेवाला मेघ वर्षा कर उसे दूर करे ॥२॥

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    विषय

    उभयलोक विनाशिनी अदानवृत्ति

    पदार्थ

    [१] गत मन्त्र के अनुसार यह अदानवृत्ति (इतः) = इस लोक के दृष्टिकोण से (चत्ता उ) = निश्चय से विनाशकारिणी है । (अमुतः) = परलोक के दृष्टिकोण से भी (चत्ता) = विनाश करनेवाली है । दानवृत्ति ही यज्ञियभावना है [यज्= दाने] अयज्ञिय भावनावाले का न इस लोक में कल्याम है, न उस लोक में। बिना इस यज्ञिय भावना के समाज का संगठन असम्भव है । उसके बिना ऐहिक कल्याण नहीं । दान के बिना परलोक में भी उत्तम गति नहीं । स्वार्थी पुरुष पशु-पक्षियों की योनि में ही जन्म लेते हैं। जितना स्वार्थ, उतना जीवन भोग-प्रधान। जितना-जितना भोग-प्रधान जीवन, उतना उतना निकृष्ट पशुओं की योनि में जन्म । [२] यह अदान की वृत्ति (सर्वा भ्रूणानि) = सब गर्भस्थ बालकों को भी (आरुषी) = हिंसित करनेवाली है। माता की कृपणता की वृत्ति गर्भस्थ बालक पर भी अनुचित प्रभाव पैदा करती है। गर्भस्थ बालक भी इसी वृत्ति का बनता है और इस प्रकार वह गर्भावस्था में ही अवनति के मार्ग पर चलना आरम्भ करता है । [३] इसलिए कहते हैं कि हे (ब्रह्मणस्पते) = ज्ञान के रक्षक ! (तीक्ष्णशृंग) = तीक्ष्ण तेजवाले ! तू (अराय्यम्) = इस अदानवृत्ति को (उदृषन्) = [उद्गमयन्] अपने जीवन से बाहिर [out = उद्] करता हुआ (इहि) = गति कर । अर्थात् हमारे सब व्यवहारों के अन्दर कृपणता को स्थान न हो, हमारे हृदयों में उदारता हो, नकि अदानवृत्ति ।

    भावार्थ

    भावार्थ - अदानवृत्ति उभयलोक विनाशिनी है, यह गर्भस्थ बालकों पर भी अनुचित प्रभाव पैदा करती है। हम अपने व्यवहारों में इस कृपणता को न आने दें।

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    विषय

    बृहस्पति सेनापति को परशत्रु सैन्य के नाश का उपदेश।

    भावार्थ

    (इतः चत्तो) इधर से नाश को प्राप्त वा ताड़ित हो, (अमुतः चत्ता) उधर से भी नाशित या ताड़ी जाय, वह (सर्वा भ्रूणानि) सब गर्भों को या अंकुरों या जीवों को (आरुषी) नाश करने वाली है, ऐसी (अराय्यम्) शत्रुसेना को हे (ब्रह्मणः पते) मन्त्रों के पालक वा हे महान् धर्म-बल के पालक स्वामिन् ! हे (तीक्ष्ण-शृंग) हिंसाकारी सैन्य, आयुध आदि को तीक्ष्ण करने वाले ! तू (उद् ऋषन्) उत्तम गति से जाता हुआ (इहि) जा, उसका नाश कर।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः शिरिम्बिठा भारद्वाजः॥ देवता—१, ४ अलक्ष्मीघ्नम्। २, ३ ब्रह्मणस्पतिः। ५ विश्वेदेवाः॥ छन्द:- १, २, ४ निचृदनुष्टुप्। ३ अनुष्टुप्। ५ विराडनुष्टुप्। पञ्चर्चं सूक्तम्॥

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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (इतः-चत्ता-उ-अमुतः-चत्ता) अस्मात् स्थानान्नाशिता हि दूरस्थानादपि नाशिता भवतु ‘चते नाशने’ वैदिकधातुः “चातयति नाशनकर्मा” [निरु० ६।३०] (सर्वा भ्रूणानि-आरुषी) सर्वाणि जातानि-ओषधिगर्भाणि बीजानि यानि सन्ति तेषां समन्तात्-सर्वथा हिंसिकाऽसि “रुष हिंसायाम्” [भ्वादि०] (ब्रह्मणस्पते) हे ब्रह्माण्डस्य स्वामिन् परमात्मन् ! यद्वा ब्रह्मणो मेघाच्छन्नाकाशस्य ज्ञानस्य स्वामिन् विद्वन् ! त्वम् (तीक्ष्णशृङ्ग) तीक्ष्ण-तेजस्क ! “शृङ्गाणि ज्वलतो नामधेयम्” [निघ० १।१७] (अराय्यम्-उदृषन्-इहि) तामदात्रीं दूरमुद्गमयन् प्राप्नुहि ॥२॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Gone from here, be gone from there also, away from the mountain and the cloud. O lord of cosmic force, sharp with catalytic energy, come here, destroying this presence of deprivation, famine and indigence.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    दुर्भिक्षरूपी आपत्ती जवळून व दुरून अर्थात सर्व स्थानांहून हटावी - नष्ट व्हावी. मेघवर्षणाची विद्या जाणणाऱ्याने मेघवृष्टी करून ती दूर करावी. ॥२॥

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    हिंगलिश (1)

    Subject

    Poverty alleviation & Social leadership; सामाजिक दायित्व

    Word Meaning

    अदानशीलता समाज में प्रतिभा विद्वत्ता की भ्रूणहत्या करने वाली सिद्ध होती है. तेजस्वी धर्मानुसार अन्न और धन की व्यवस्था करने वाले राजा, परमेश्वर इस दान विरोधिनी संवेदना विहीन वृत्ति का कठोरता से नाश करें. The life style of not sharing with others around us is destroyer of all creative activities before their inception. Strong social leadership should work to destroy such insensitive tendencies.

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