ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 155/ मन्त्र 4
ऋषिः - शिरिम्बिठो भारद्वाजः
देवता - अलक्ष्मीघ्नम्
छन्दः - निचृदनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
यद्ध॒ प्राची॒रज॑ग॒न्तोरो॑ मण्डूरधाणिकीः । ह॒ता इन्द्र॑स्य॒ शत्र॑व॒: सर्वे॑ बुद्बु॒दया॑शवः ॥
स्वर सहित पद पाठयत् । ह॒ । प्राचीः॑ । अज॑गन्त । उरः॑ । म॒ण्डू॒र॒ऽधा॒णि॒कीः॒ । ह॒ताः । इन्द्र॑स्य । शत्र॑वः । सर्वे॑ । बु॒द्बु॒दऽया॑शवः ॥
स्वर रहित मन्त्र
यद्ध प्राचीरजगन्तोरो मण्डूरधाणिकीः । हता इन्द्रस्य शत्रव: सर्वे बुद्बुदयाशवः ॥
स्वर रहित पद पाठयत् । ह । प्राचीः । अजगन्त । उरः । मण्डूरऽधाणिकीः । हताः । इन्द्रस्य । शत्रवः । सर्वे । बुद्बुदऽयाशवः ॥ १०.१५५.४
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 155; मन्त्र » 4
अष्टक » 8; अध्याय » 8; वर्ग » 13; मन्त्र » 4
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अष्टक » 8; अध्याय » 8; वर्ग » 13; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
हिन्दी (3)
पदार्थ
(मण्डूरधाणिकीः) मेंढकों को धारण करनेवाली बरसाती नदियाँ, जलाशय (यत्-ह) जबकि (प्राचीः-अजगन्त) सामने बह रही हों, तब (इन्द्रस्य शत्रवः) आत्मा के दुर्भिक्ष आदि शत्रु (हताः) नष्ट हो गये-नष्ट हो जाते हैं (सर्वे बुद्बुदयाशवः) सब पानी की बुद्बुदों की भाँति गतिवाले-अर्थात् शीघ्र नष्ट होनेवाले होते हैं ॥४॥
भावार्थ
जब मेघ बरसने पर नाले मेंढकोंवाले नदी तालाब आदि सामने बहने लगें, तब दुर्भिक्ष आदि शत्रु पानी के बुद्बुदों की भाँति नष्ट हो जानेवाले होते हैं ॥४॥
विषय
कामादि शत्रुओं का विनाश
पदार्थ
[१] गत मन्त्र के अनुसार प्रभु का आश्रय करके (यद्) = जब (ह) = निश्चय से प्राची: (अजगन्त) = गतिवाले होकर लोग चलते हैं, तो (उर:) = [उर्वी हिंसायाम्] वासनाओं का हिंसन करनेवाले होते हैं, (मण्डूरधाणिकी:) = [मन्दनस्य धनस्य धारयित्यः] आनन्दप्रद धनों का धारण करनेवाले होते हैं। प्रभु का भक्त कभी अनुचित उपायों से धनार्जन नहीं करता । [२] (इन्द्रस्य) = इस जितेन्द्रिय पुरुष के (शत्रवः) = काम-क्रोध-लोभ आदि शत्रु (हताः) = विनष्ट होते हैं। ये (सर्वे) = सब शत्रु (बुद्बुदयाशवः) = [यान्ति, अनुवते] बुलबुलों की तरह नष्ट हो जानेवाले होते हैं और व्यापक रूप को धारण करते हैं। बुलबुला फटा और पानी में मिलकर उसी में फैल गया [= विलीन हो गया]। इसी प्रकार 'काम' फटकर प्रेम का रूप धारण कर लेता है, क्रोध फटकर करुणा के रूप में हो जाता है और लोभ विनष्ट होकर त्याग का रूप धारण कर लेता है।
भावार्थ
भावार्थ - हम कामादि शत्रुओं को नष्ट करके आगे बढ़नेवाले हों ।
विषय
शत्रुनाशक, गोली छोड़ने वाले (मशीनगन आदि) यन्त्रों का उपदेश।
भावार्थ
हे वीर पुरुष ! (यत्) जब (प्राचीः) आगे बढ़ने वाली (उरो) बड़ी विशाल, एवं शत्रु हिंसक, (मण्डूर-धाणिकीः) लोह कणों को धारण करने वाली तोपें (अजगन्त) प्रयाण करती हैं, तब (इन्द्रस्य) इन्द्र, वीर राजा के (शत्रवः) शत्रु (सर्वे) समस्त (बुद्-बुद-याशवः) बुलबुले के समान नष्ट होने वाले होकर (हताः) नष्ट हो जाते हैं।
टिप्पणी
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ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिः शिरिम्बिठा भारद्वाजः॥ देवता—१, ४ अलक्ष्मीघ्नम्। २, ३ ब्रह्मणस्पतिः। ५ विश्वेदेवाः॥ छन्द:- १, २, ४ निचृदनुष्टुप्। ३ अनुष्टुप्। ५ विराडनुष्टुप्। पञ्चर्चं सूक्तम्॥
संस्कृत (1)
पदार्थः
(मण्डूरधाणिकीः) हे मण्डूराणां मण्डूकानाम् ‘कस्य रेफश्छान्दसः’ मडिधातोरुरच् प्रत्ययः, मण्डूकानां धारिका वार्षिकीरापो नद्यो जलाशयाः (यत्-ह) यत् खलु (प्राचीः-अजगन्त) प्रागञ्चन्त्यो गच्छन्ति, तदा (इन्द्रस्य) आत्मनः (शत्रवः) दुर्भिक्षप्रभृतयः (हताः) हताः परास्ता भवन्ति (सर्वे बुद्बुदयाशवः) सर्वेऽपि बुद्बुदवत्-यातारः-बुद्बुदवच्छीघ्रं नश्वराः भवन्ति ॥४॥
इंग्लिश (1)
Meaning
When floods of water flow forth bearing iron ore, rejoicing as if with croaking frogs, all adversities, enemies of humanity, disappear like bubbles, at once.
मराठी (1)
भावार्थ
जेव्हा मेघवर्षाव होतो तेव्हा नाले, नद्या, मंडूकयुक्त तलाव इत्यादी वाहत असतील तर दुर्भिक्ष वगैरे शत्रू पाण्याच्या बुडबुड्याप्रमाणे नष्ट होतात. ॥४॥
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