ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 161/ मन्त्र 2
ऋषिः - यक्ष्मनाशनः प्राजापत्यः
देवता - राजयक्ष्मघ्नम्
छन्दः - त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
यदि॑ क्षि॒तायु॒र्यदि॑ वा॒ परे॑तो॒ यदि॑ मृ॒त्योर॑न्ति॒कं नी॑त ए॒व । तमा ह॑रामि॒ निॠ॑तेरु॒पस्था॒दस्पा॑र्षमेनं श॒तशा॑रदाय ॥
स्वर सहित पद पाठयदि॑ । क्षि॒तऽआ॑युः । यदि॑ । वा॒ । परा॑ऽइतः । यदि॑ । मृ॒त्योः । अ॒न्ति॒कम् । निऽइ॑तः । ए॒व । तम् । आ । ह॒रा॒मि॒ । निःऽऋ॑तेः । उ॒पऽस्था॑त् । अस्पा॑र्षम् । ए॒न॒म् । श॒तऽशा॑रदाय ॥
स्वर रहित मन्त्र
यदि क्षितायुर्यदि वा परेतो यदि मृत्योरन्तिकं नीत एव । तमा हरामि निॠतेरुपस्थादस्पार्षमेनं शतशारदाय ॥
स्वर रहित पद पाठयदि । क्षितऽआयुः । यदि । वा । पराऽइतः । यदि । मृत्योः । अन्तिकम् । निऽइतः । एव । तम् । आ । हरामि । निःऽऋतेः । उपऽस्थात् । अस्पार्षम् । एनम् । शतऽशारदाय ॥ १०.१६१.२
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 161; मन्त्र » 2
अष्टक » 8; अध्याय » 8; वर्ग » 19; मन्त्र » 2
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अष्टक » 8; अध्याय » 8; वर्ग » 19; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
हिन्दी (3)
पदार्थ
(यदि क्षितायुः) यदि रोगाक्रान्त क्षीण आयु हो गया (यदि वा परेतः) यदि वर्त्तमान अवस्था से परे चला गया है, अधिक रोगी हो गया है (अन्तिकं नीतः-एव) यदि मृत्यु के समीप रोग ने पहुँचा दिया-मरणासन्न कर दिया (तं निर्ऋतेः) उस घोर आपत्ति के (उपस्थात्-आ हरामि) उत्सङ्ग से ले आता हूँ (एनं शतशारदाय) इसे सौ शरद् काल के लिए, सौ वर्ष-पर्यन्त जीवन के लिए (आस्पार्षम्) बलवान् करता हूँ ॥२॥
भावार्थ
रोगी घने रोग में पड़ जावे, तो चकित्सक ओषधि से चिकित्सा करता हुआ होमचिकित्सा करता हुआ साथ-साथ बलवान् शब्दों में आश्वासन दे कि मैं तुझे मृत्यु के समीप गये हुए को भी पूर्ण बलवान् बनाता हूँ ॥२॥
विषय
निरृति की गोद से बाहिर
पदार्थ
[१] (यदि) = यदि (क्षितायुः) - यह रुग्ण पुरुष क्षीण आयुष्यवाला हो गया है। (यदि वा) = अथवा (परेत:) = [परा इतः] रोग में बहुत दूर पहुँच गया है। यदि अगर (मृत्योः) = मृत्यु के (अन्तिकम्) = समीप (एव) = ही (नीतः) = प्राप्त कराया गया है, तो भी (तम्) = उसको (निर्ऋते:) = दुर्गति की (उपस्थात्) = गोद से (आहरामि) = बाहर ले आता हूँ। वस्तुतः गतमन्त्र में वर्णित अग्निहोत्र के द्वारा मैं इसे तीव्रतम रोगों से भी मुक्त करता हूँ। [२] इस प्रकार रोगमुक्त करके (एनम्) = इसको (शतशारदाय) = पूरे शतवर्ष के जीवन के लिये (अस्पार्षम्) = [स्पृ] बलयुक्त करता हूँ । अग्निहोत्र के द्वारा इसे [क] रोगों से मुक्त करता हूँ और [ख] बल से युक्त करता हूँ।
भावार्थ
भावार्थं - अग्निहोत्र के द्वारा तीव्रतम रोगों से भी मुक्ति सम्भव है।
विषय
मृत्यु-मुख में पड़े रोगी की रक्षा का उपदेश।
भावार्थ
(यदि क्षितायुः) यदि रोगी की जीवनशक्ति नष्ट ही हो गई हो, (यदि वा परा- इतः) यदि वह सीमा से भी परे चला गया है, (यदि मृत्योः अन्तिकं) यदि वह मौत अर्थात् देह त्याग के समीप (नीतः एव) ही पहुंच गया है, तो भी (तम्) उस रोगी को मैं (निकृतेः उपस्थात् आ हरामि) अति कष्टप्रद रोग के पंजे से छुड़ा लाऊं। और (एनं) उस रोगी को (शत-शारदाय) सौ वर्ष के जीवन के लिये (अस्पार्षम्) बलयुक्त करूं।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिर्यक्ष्मनाशनः प्राजापत्यः ॥ देवता—राजयक्ष्मध्नम्॥ छन्द:- १, ४ भुरिक् त्रिष्टुप्। २ त्रिष्टुप्। ३ निचृत् त्रिष्टुप। ५ निचृदनुष्टुप्॥ पञ्चर्चं सूक्तम् ॥
संस्कृत (1)
पदार्थः
(यदि क्षितायुः) यदि रोगाक्रान्तः-क्षीणायुः (यदि वा परेतः) यदि चेतोऽवस्थातः परागतः (यदि-मृत्योः-अन्तिकं नीतः-एव) यदि मृत्योः समीपं रोगेण नीतो मरणासन्नः कृतोऽपि (तं निर्ऋतेः-उपस्थात्-आहरामि) तं घोरापत्तेरुपस्थानादुत्सङ्गादानयामि (एनं शतशारदाय-अस्पार्षम्) एनं शतशरत्कालाय शतवर्षपर्यन्तमित्यर्थः-बलिनं करोमि “स्पृ प्रीतिबलनयोः” ॥२॥
इंग्लिश (1)
Meaning
If the patient is extremely debilitated, sunk beyond hope, almost gone to the brink of death, I touch and bring him back from the depth of despair to live his full hundred years of life. (The word ‘asparsham’ suggests the efficacy of touch therapy.)
मराठी (1)
भावार्थ
रोग अत्यंत बिकट अवस्थेत असेल तर चिकित्सकाने औषधी चिकित्सा व होमचिकित्सा करावी व प्रेरणादायक शब्दांत आश्वासन द्यावे, की मी तुला मृत्यूच्या दाढेजवळ गेलेल्याला पूर्ण आयूसाठी बलवान बनवितो. ॥२॥
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