ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 26/ मन्त्र 7
ऋषिः - विमद ऐन्द्रः प्राजापत्यो वा वसुकृद्वा वासुक्रः
देवता - पूषा
छन्दः - पादनिचृदनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
इ॒नो वाजा॑नां॒ पति॑रि॒नः पु॑ष्टी॒नां सखा॑ । प्र श्मश्रु॑ हर्य॒तो दू॑धो॒द्वि वृथा॒ यो अदा॑भ्यः ॥
स्वर सहित पद पाठइ॒नः । वाजा॑नाम् । पतिः॑ । इ॒नः । पु॒ष्टी॒नाम् । सखा॑ । प्र । श्मश्रु॑ । ह॒र्य॒तः । दू॒धो॒त् । वि । वृथा॑ । यः । अदा॑भ्यः ॥
स्वर रहित मन्त्र
इनो वाजानां पतिरिनः पुष्टीनां सखा । प्र श्मश्रु हर्यतो दूधोद्वि वृथा यो अदाभ्यः ॥
स्वर रहित पद पाठइनः । वाजानाम् । पतिः । इनः । पुष्टीनाम् । सखा । प्र । श्मश्रु । हर्यतः । दूधोत् । वि । वृथा । यः । अदाभ्यः ॥ १०.२६.७
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 26; मन्त्र » 7
अष्टक » 7; अध्याय » 7; वर्ग » 14; मन्त्र » 2
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अष्टक » 7; अध्याय » 7; वर्ग » 14; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
हिन्दी (3)
पदार्थ
(इनः) पोषणकर्त्ता परमात्मा जगत् का स्वामी (वाजानां पतिः) बलों का स्वामी (इनः पुष्टीनां सखा) आत्म-पुष्टिवालों का पालक स्वामी (हर्यतः) कामयमान स्तोता उपासक के (श्मश्रु) सब अङ्गों के रोमों को (वृथा प्र दूधोत्) अनायास प्रहर्षित करता है (यः-अदाभ्यः) जो परमात्मा अहिंसनीय है ॥७॥
भावार्थ
परमात्मा सब जगत् का स्वामी सब बलों का स्वामी सब आत्मा-पुष्टिवालों का सखारूप स्वामी है। कामना करनेवाले उपासक का रोम हर्षित कर देता है। ऐसा वह अबाध्य स्वामी उपासनायोग्य है ॥७॥
विषय
मलापहरण
पदार्थ
[१] वे प्रभु (इनः) = स्वामी हैं, (वाजानाम्) = सब अन्नों व शक्तियों के (पतिः) = पति हैं । [२] (इन:) = ब्रह्माण्ड के स्वामी प्रभु (पुष्टीनाम्) = अपना पोषण करनेवालों के (सखा) = मित्र हैं । प्रभु निर्बलों के मित्र नहीं 'नायमात्मा बलहीनेन लभ्यः ' । विलासमय जीवन ही हमें 'क्षीणायु' बनाता है, यह विलासी पुरुष ही प्रभु की कृपा दृष्टि को प्राप्त नहीं करता । [३] वे (हर्यतः) = जाने योग्य व चाहने योग्य प्रभु (श्मश्रु) = [श्मनि श्रितं नि०] शरीर में आश्रित 'इन्द्रियों, मन व बुद्धि' को (प्र दूधोद्) = प्रकर्षेण कम्पित करके निर्मल करनेवाले हैं। जैसे झाड़कर कपड़े के मल को दूर कर दिया जाता है, उसी प्रकार वे प्रभु हमारी इन्द्रियों, मन व बुद्धि को भी झाड़कर निर्मल बना देते हैं । इन्द्रियों की निर्बलता दूर हो जाती है, मन की मैल भस्मीभूत चकनाचूर हो जाती है और बुद्धि उज्ज्वल हो उठती है । [४] 'इतने अनन्त जीवों के मलों को वे प्रभु कैसे दूर सकते होंगे' ? इस शंका का करना व्यर्थ है, वे अनन्त शक्ति प्रभु इन अपने एक देश में होनेवाले जीवों को (वृथा) = अनायास ही (वि दूधोद्) = विशिष्टरूप से झाड़कर ठीक कर देते हैं। वे प्रभु तो वे हैं (यः) = जो (अदाभ्यः) = किसी से हिंसित होनेवाले नहीं ।
भावार्थ
भावार्थ- वे प्रभु सबके स्वामी हैं। वे प्रभु ही चाहनेवालों व प्रभु की ओर जानेवालों के मलों का अपहरण करते हैं।
विषय
सब ऐश्वर्यों का स्वामी, सर्वप्रेरक है।
भावार्थ
वह प्रभु (वाजानां इनः) समस्त बलों, ज्ञानों और ऐश्वर्यों, वेगवान् पदार्थों का स्वामी (पतिः) पालक (पुष्टीनां इनः) समस्त पशु, अन्न आदि समृद्धियों का स्वामी, (सखा) सब का मित्र है। वह (हर्यतः) अति कान्तिमान्, तेजस्वी (श्मश्रु वृथा प्र दूधोत्) देह में आश्रित अंगों या बालों के समान समस्त जगत् के पदार्थों को अनायास संचालित करता है और (यः अदाभ्यः) जो स्वयं अविनाशी है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
विमद ऐन्द्रः प्राजापत्यो वा वसुकृद्वा वासुक ऋषिः। पूषा देवता॥ छन्दः- १ उष्णिक् ४ आर्षी निचृदुष्णिक्। ३ ककुम्मत्यनुष्टुप्। ५-८ पादनिचदनुष्टुप्। ९ आर्षी विराडनुष्टुप्। २ आर्ची स्वराडनुष्टुप्॥ नवर्चं सूक्तम्॥
संस्कृत (1)
पदार्थः
(इनः) स पूषा पोषयिता स्वामी परमात्मा (वाजानां पतिः) बलानां स्वामी (इनः पुष्टीनां सखा) स परमात्मा पोषणानां पालकः सखा (हर्यतः) कामयमानस्य स्तोतुः (श्मश्रु) श्मश्रूणि सर्वाङ्गाणां रोमाणि हर्षेण (वृथा प्रदूधोत्) अनायासेन प्रधुनोति प्रहर्षयति (यः-अदाभ्यः) यः पूषा परमात्माऽहिंस्योऽस्ति ॥७॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Mighty Pusha is the master controller of energies and powers of the world, generous friends of growth and progress, spontaneous energises and inspirer of rising youth, and he is the unchallengeable supreme power over all.
मराठी (1)
भावार्थ
परमात्मा सर्व जगाचा स्वामी, सर्व बलांचा स्वामी, सर्व आत्म पुष्टी करणाऱ्यांचा सखारूप स्वामी आहे. कामना करणाऱ्यांना रोमांचित व हर्षित करतो. असा तो अबाध्य स्वामी उपासनायोग्य आहे. ॥७॥
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