ऋग्वेद - मण्डल 2/ सूक्त 28/ मन्त्र 10
ऋषिः - कूर्मो गार्त्समदो गृत्समदो वा
देवता - वरुणः
छन्दः - भुरिक्पङ्क्ति
स्वरः - पञ्चमः
यो मे॑ राज॒न्युज्यो॑ वा॒ सखा॑ वा॒ स्वप्ने॑ भ॒यं भी॒रवे॒ मह्य॒माह॑। स्ते॒नो वा॒ यो दिप्स॑ति नो॒ वृको॑ वा॒ त्वं तस्मा॑द्वरुण पाह्य॒स्मान्॥
स्वर सहित पद पाठयः । मे॒ । रा॒ज॒न् । युज्यः॑ । वा॒ । सखा॑ । वा॒ । स्वप्ने॑ । भ॒यम् । भी॒रवे॑ । मह्य॑म् । आह॑ । स्ते॒नः । वा॒ । यः । दिप्स॑ति । नः॒ । वृकः॑ । वा॒ । त्वम् । तस्मा॑त् । व॒रु॒ण॒ । पा॒हि॒ । अ॒स्मान् ॥
स्वर रहित मन्त्र
यो मे राजन्युज्यो वा सखा वा स्वप्ने भयं भीरवे मह्यमाह। स्तेनो वा यो दिप्सति नो वृको वा त्वं तस्माद्वरुण पाह्यस्मान्॥
स्वर रहित पद पाठयः। मे। राजन्। युज्यः। वा। सखा। वा। स्वप्ने। भयम्। भीरवे। मह्यम्। आह। स्तेनः। वा। यः। दिप्सति। नः। वृकः। वा। त्वम्। तस्मात्। वरुण। पाहि। अस्मान्॥
ऋग्वेद - मण्डल » 2; सूक्त » 28; मन्त्र » 10
अष्टक » 2; अध्याय » 7; वर्ग » 10; मन्त्र » 5
Acknowledgment
अष्टक » 2; अध्याय » 7; वर्ग » 10; मन्त्र » 5
Acknowledgment
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुना राजपुरुषविषयमाह।
अन्वयः
हे वरुण राजन् यो मे युज्यः सखा जागृते स्वप्ने वा भयं प्राप्नोति वा भीरवे मह्यं भयं प्राप्नोतीत्याह यः स्तेनो वा दस्युर्नो दिप्सति वृको वा दिप्सति तस्मात् त्वमस्मान् पाहि ॥१०॥
पदार्थः
(यः) (मे) मम (राजन्) (युज्यः) योक्तुमर्हः (वा) (सखा) मित्रः (वा) (स्वप्ने) निद्रायाम् (भयम्) भीरवे भयस्वभावाय (मह्यम्) (आह) प्रतिवदेत् (स्तेनः) चोरः (वा) (यः) (दिप्सति) हिंसितुमिच्छति (नः) अस्मान् (वृकः) वृकवदुत्कोचकश्चोरः (वा) (त्वम्) (तस्मात्) (वरुण) (श्रेष्ठ) (पाहि) (अस्मान्) ॥१०॥
भावार्थः
ये राजपुरुषाः प्रजायामभयं दुष्टानां निग्रहं कृत्वा सर्वां प्रजां रक्षन्ति ते निर्दुःखा जायन्ते ॥१०॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर राजपुरुष विषय को अगले मन्त्र में कहा है।
पदार्थ
हे (वरुण) श्रेष्ठ (राजन्) राजपुरुष (यः) जो (ये) मेरा (युज्यः) मेली (सखा) मित्र जागने (वा) अथवा (स्वप्ने) सोने में (भयम्) भय को प्राप्त होता (वा) अथवा (भीरवे) डरपोंक (मह्यम्) मुझको भय प्राप्त होता है ऐसा (आह) कहे (यः) जो (स्तेनः) चोर (वा) अथवा डाकू (नः) हमको (दिप्सति) धमकाता मारना चाहता (तस्मात्) उससे (त्वम्) आप (अस्मान्) हम लोगों की (पाहि) रक्षा कीजिये ॥१०॥
भावार्थ
जो राजपुरुष प्रजा में निर्भय दुष्टों का निग्रह कर सब प्रजा की रक्षा करते हैं, वे सब दुःखों से रहित हो जाते हैं ॥१०॥
विषय
भयंकर स्वप्न क्यों ?
पदार्थ
१. हे (राजन्) = ब्रह्माण्ड के शासक प्रभो ! (यः) = जो ये (युज्यः वा) = मेरे साथ काम करनेवाला (वा) = अथवा (सखा) = मेरा मित्र (भीरवे मह्यम्) = मुझ भीरु के लिए (स्वप्ने) = स्वप्न में (भयम् आह) = भय को कहता है। हमने किसी युज्य वा सखा के विषय में कोई अपराध किया होता है तो कई बार रात्रि में स्वप्न में भय लगता है-वह पाप भयंकर होकर हमें पीड़ित करनेवाला बनता है। हे वरुण ! आप हमें उससे बचाइए। २. (वा) = अथवा (यः) = जो (स्तेनः) = चोर (नः) = हमें (दिप्सति) = हिंसित करना चाहता है, (वा) = अथवा कोई (वृकः) = भेड़िया आदि हिंस्रपशु हमें मारना चाहता है । हे (वरुण) = हमारे पापों व कष्टों को दूर करनेवाले प्रभो! आप (तस्मात्) = उससे (अस्मान्) = हमें (पाहि) = रक्षित करिए । हम चोरों व हिंस्र पशुओं के शिकार न हो जाएं। वस्तुतः जब हम अपने युज्यों [साथ काम करनेवालों व रिश्तेदारों] व सखाओं से धोखा करके अपने को धनी बनाना चाहते हैं तो यह पाप हमारे भयंकर स्वप्नों का कारण बनता है अथवा हमें चोरों व वृकों से पीड़ित करता है।
भावार्थ
भावार्थ- मैं पाप से ऊपर उहूँ । परिणामतः न भयंकर स्वप्नों को देखूँ—न चोरों व वृकों का शिकार होऊँ ।
विषय
प्रभु से रक्षादि की प्रार्थना ।
भावार्थ
हे ( राजन् ) राजन् ! ( यः ) जो ( मे ) मेरा ( युज्यः ) सहयोगी या ( सखा वा ) मित्र होकर ( मह्यं भीरवे ) मुझ भीरु पुरुष को ( स्वप्ने ) सोते समय में ( भयम् ) भय ( आह ) बतलावे ( वा ) या ( याः ) जो ( स्तेनः ) चोर या ( वृकः ) डाकू हो ( नः ) हम प्रजाजन को ( दिप्सति ) मारता, पीड़ित करता है हे ( वरुण ) दुष्टनिवारक राजन् ! ( त्वं ) तू (तस्मात् ) उस भयकारी साथी, मित्र, चोर या डाकू से ( अस्मान् पाहि ) हमें बचा। प्रजा में मित्र या साथी तथा चोर डाकू भी सोते समय एक दूसरे पर आक्रमण करते हैं, राजा उस समय पहरे का प्रबन्ध करे ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
कूर्मो गार्त्समदो वा ऋषिः॥ वरुणो देवता॥ छन्द:— १, ३, ६, ४ निचृत् त्रिष्टुप् । ५, ७,११ त्रिष्टुप्। ८ विराट् त्रिष्टुप् । ९ भुरिक् त्रिष्टुप् । २, १० भुरिक् पङ्क्तिः ॥ एकादशर्चं सूक्तम् ॥
मराठी (1)
भावार्थ
जे राजपुरुष प्रजेत निर्भयता निर्माण करून दुष्टांचा निग्रह करतात व सर्व प्रजेचे रक्षण करतात ते सर्व दुःखांपासून पृथक होतात. ॥ १० ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Varuna, lord of light and law, brilliant ruler, if a friend or companion threatens me with fear and I feel afraid in a state of sleep or wakefulness, or if a thief or a wolfish robber terrorizes us, save us from such fear and terror.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The duties of the State officials are underlined.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O noble State official ! in case my associate or friend apprehends fears or dangers or feels nervous, while in sleep or awakened, or if some criminal or thief threatens us, kindly give us your protection.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
Those State officials who overcome the wicked and provide protection to all common men, they become free from agonies.
Foot Notes
(युज्य:) योक्तु महंः । = Associate. (भयम् ) भोर वेभयस्वभावाय। = Coward. (दिप्सति ) हिसितुमिच्छति। = Desires to kill or threatens. (वृक:) वृकवदुत्कोचकश्वोर: = The wolf-like robber (s).
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Shri Virendra Agarwal
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal