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ऋग्वेद मण्डल - 2 के सूक्त 28 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 2/ सूक्त 28/ मन्त्र 3
    ऋषिः - कूर्मो गार्त्समदो गृत्समदो वा देवता - वरुणः छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    तव॑ स्याम पुरु॒वीर॑स्य॒ शर्म॑न्नुरु॒शंस॑स्य वरुण प्रणेतः। यू॒यं नः॑ पुत्रा अदितेरदब्धा अ॒भि क्ष॑मध्वं॒ युज्या॑य देवाः॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अव॑ । स्या॒म॒ । पु॒रु॒ऽवीर॑स्य । शर्म॑न् । उ॒रु॒ऽशंस॑स्य । व॒रु॒ण॒ । प्र॒ने॒त॒रिति॑ प्रऽनेतः । यू॒यम् । नः॒ । पु॒त्राः॒ । अ॒दि॒तेः॒ । अ॒द॒ब्धाः॒ । अ॒भि । क्ष॒म॒ध्व॒म् । युज्या॑य । दे॒वाः॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तव स्याम पुरुवीरस्य शर्मन्नुरुशंसस्य वरुण प्रणेतः। यूयं नः पुत्रा अदितेरदब्धा अभि क्षमध्वं युज्याय देवाः॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अव। स्याम। पुरुऽवीरस्य। शर्मन्। उरुऽशंसस्य। वरुण। प्रनेतरिति प्रऽनेतः। यूयम्। नः। पुत्राः। अदितेः। अदब्धाः। अभि। क्षमध्वम्। युज्याय। देवाः॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 2; सूक्त » 28; मन्त्र » 3
    अष्टक » 2; अध्याय » 7; वर्ग » 9; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनः पुत्राः कीदृशाः स्युरित्याह।

    अन्वयः

    हे वरुण प्रणेतर्यथाहं पुरुवीरस्योरुशंसस्य तव शर्मन् सुखिनः स्याम। हे अदब्धा देवा नः पुत्रा यूयमदितेर्युज्याय देवा भूत्वाऽभिक्षमध्वम् ॥३॥

    पदार्थः

    (तव) (स्याम) (पुरुवीरस्य) बहुप्रवीणशूरस्य (शर्मन्) शर्मणि गृहे (उरुशंसस्य) बहुप्रशंसितस्य (प्रणेतः) सर्वेषां नयनकर्त्तः (यूयम्) (नः) अस्माकम् (पुत्राः) (अदितेः) अखण्डितविज्ञानस्य (अदब्धाः) अहिंसनीयाः (अभि) (क्षमध्वम्) (युज्याय) योक्तुमर्हाय व्यवहाराय (देवाः) विद्वांसः ॥३॥

    भावार्थः

    हे पुत्रा यथा वयमुत्तमस्य विदुषः सकाशान्नीतिविद्यां प्राप्यानन्दिताः स्मस्तथा यूयमपि क्षमाशीला भूत्वाऽध्यापकप्रियाचरणेन सुशिक्षिता विद्वांसो भवत ॥३॥

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    हिन्दी (4)

    विषय

    फिर पुत्र लोग कैसे हों, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

    पदार्थ

    हे (वरुण) श्रेष्ठ (प्रणेतः) सबके नायक सज्जन विद्वान् जैसे मैं (पुरुवीरस्य) बहुत प्रवीण शूर (उरुशंसस्य) बहुतों से प्रशंसा किये हुए (तव) आपके (शर्मन्) घर में हम लोग सुखी हों, हे (अदब्धाः) अहिंसनीय (नः) हमारे (पुत्राः) पुत्रो! (यूयम्) तुमलोग (युज्याय) युक्त करने योग्य व्यवहार के लिये (देवाः) विद्वान् होकर (अभि,क्षमध्वम्) सब ओर से क्षमा करनेवाले होओ ॥३॥

    भावार्थ

    हे पुत्रो! जैसे हम लोग उत्तम विद्वान् के सम्बन्ध से नीति विद्या को प्राप्त होके आनन्दित हों, वैसे तुम लोग भी क्षमाशील होके अध्यापकों के अनुकूल आचरण से सुशिक्षित विद्वान् होओ ॥३॥

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    विषय

    प्रभु के मित्र

    पदार्थ

    १. हे (वरुण) = पापनिवारक देव ! (पुरुवीरस्य) = खूब ही शत्रुओं को कम्पित करके दूर करनेवाले (उरुशंसस्य) = महान् स्तवनवाले (प्रणेतः) = प्रकृष्ट नेता प्रभो ! (तव) = आपकी (शर्मन्) = शरण में [गृहे सा०] (स्याम) = हम हों। प्रभु की शरण में चलने पर हमारे शत्रु नष्ट हो जाएँगे- प्रभु का उपासक कामादि वासनाओं से प्रतारित नहीं होता। २. (अदितेः पुत्राः) = अमृत के पुत्रो-आदित्यो (देवाः) = देवो! (अदब्धाः) = अहिंसित होते हुए (यूयम्) = आप (नः) = हमें युज्याय = उस प्रभु की मित्रता के लिए (अभिक्षमध्वम्) = सहनशक्ति से युक्त करो। आप हमें सब प्रकार से प्रभु के मेल के लिए सक्षम बनाओ। जितनाजितना हम देवों के समीप होते जाते हैं- जितनी-जितनी वे दिव्यवृत्तियाँ अहिंसित रूप से हमारे में स्थित होती हैं, उतना उतना हम प्रभु की मित्रता के योग्य होते जाते हैं।

    भावार्थ

    भावार्थ- हम प्रभु की शरण में रहें। देववृत्तियों का वर्धन करते हुए प्रभु के मित्र बनने योग्य हों।

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    Bhajan

    आज का वैदिक भजन 🙏 1093
    ओ३म् तव॑ स्याम पुरु॒वीर॑स्य॒ शर्म॑न्नुरु॒शंस॑स्य वरुण प्रणेतः ।
    यू॒यं न॑: पुत्रा अदितेरदब्धा अ॒भि क्ष॑मध्वं॒ युज्या॑य देवाः ॥
    ऋग्वेद 2/28/3

    अदिति के पुत्र हैं 
    वरुण भगवान्,
    एक रस हैं अदिति जैसे 
    वरुण है अखण्डनीय 
    निर्विकार सब के 
    प्रणेता हैं अभिराम
    अदिति के पुत्र हैं

    वरुण है सहस्त्रपुत्र 
    सबके कल्याणकारी
    रहते अखण्डनीय  
    एक रस धारी 
    उसी एक रस को प्राप्त 
    करने के हेतु ही 
    योग आपसे करना 
    चाहते हैं नर नारी 
    इसलिए प्यारे भगवन् 
    हुए हैं तुम्हारे अर्पण 
    सामर्थ देना है तुम्हारा ही काम
    अदिति के पुत्र हैं
     
    'पुरुवीर' वीरता के 
    उरुशंस नेता तुम ही 
    मिलता है मार्गदर्शन 
    समय समय सही 
    अपनी प्रशंसनीय 
    गुणावली के गुणों से 
    हमारे गुणों का भी  
    गुणन कर दे
    वेद ज्ञान के उपदेश का 
    नेतृत्व कारी नेता 
    शक्ति मांगते हैं तुमसे 
    हे शक्तिमान् !
    अदिति के पुत्र हैं 
    वरुण भगवान्,
    एक रस हैं अदिति जैसे 
    वरुण है अखण्डनीय 
    निर्विकार सब के 
    प्रणेता हैं अभिराम
    अदिति के पुत्र हैं

    रचनाकार व स्वर :- पूज्य श्री ललित मोहन साहनी जी – मुम्बई
    रचना दिनाँक :-  ८.५.२०१३    १४.००pm
    राग :- भीमपलासी
    गायन समय इनका तीसरा प्रहर, ताल कहरवा ८ मात्रा
                         
    शीर्षक :- हम वरुण के नेतृत्व में रहें 🎧668वां🎧
    *तर्ज :- *
    0108-708 

    अखण्डनीय = जिस के टुकड़े ना हो सकें
    सहस्त्रपुत्र = बल का पुत्र
    उपदेष्टा = शिक्षाप्रद उपदेश देने वाला
    पुरुवीर = महा पराक्रमी
    उरुशंस = सबके स्तुति करने योग्य
    गुलावली = गुणों की श्रेणी 
    गुणन = हिसाब करना,
     

    Vyakhya

    प्रस्तुत भजन से सम्बन्धित पूज्य श्री ललित साहनी जी का सन्देश :-- 👇👇

    हम वरुण के नेतृत्व में रहें
    इस मन्त्र में वरुण भगवान को अदिति का पुत्र कहा है। अदिति का अर्थ अखंडनीय अवस्था एक रास्ता की विकार ही नेता की अवस्था होता है । उसका पुत्र कहने का अभिप्राय यह हुआ कि भगवान भी अखंड अनीय हैं। एकरस निर्विकार हैं। यह वेद का कहने का एक अलंकारिक ढंग है। वेद में अति बलवान कहना हो तो "सहस्त्रपुत्र" कह देते हैं। यह बहुवचन का प्रयोग व्याकरण की रीति से आदर के लिए समझना चाहिए। भगवान अदिति के पुत्र हैं। सदा अखंडनीय हैं और एकरस स्थिति में रहते हैं। जब भगवान से जो 'शर्मन्' जो कल्याण प्राप्त होगा वह भी सदा अखंडनीय  और एकरस रहेगा। उसमें कभी क्षीणता और विकार नहीं आएंगे। उसी एकरस को प्राप्त करने के लिए हे भगवान! हम आपसे योग करना चाहते हैं-- अपने आत्मा का आपके साथ अनुभवपूर्ण सम्बन्ध करना चाहते हैं। हे प्रभु!इसके लिए आप हमें समर्थ बनाइए। भगवान से बढ़कर यह सामर्थ्य और कौन दे सकता है? वे हमारे 'पुरुवीर' और 'उरुशंस' नेता हैं। तो उसके नेतृत्व में ही हम उनसे योग के मार्ग में चलने के लिए समर्थ हो सकते हैं। वह पुरुवीर हैं। उनकी वीरता उनके पराक्रम की तुलना कोई नहीं कर सकता। अपने आप को बड़े भी मानने वालों से भी कहीं अधिक महान वीर हैं। वस्तुत:उनकी वीरता की तुलना इस विश्व में कोई भी नहीं कर सकता। वह ब्रह्माण्ड में हर वस्तु को बलपूर्वक थामे हुए हैं ।उन्हें नियम में रखकर तीव्र गति से उनके निश्चित मार्गों पर चला रहे हैं।
     वह पराक्रमी महाबलिष्ठ होने के साथ-साथ भगवान पूर्व 'उरुशंस' भी हैं यानी उनके अन्दर ऐसे असंख्य गुण हैं जिनकी हमें बलात् प्रशंसा करनी पड़ती है। और वह गुण उनमें इतनी बड़ी मात्रा में है कि हम उनकी प्रशंसा करते करते थक जाते हैं और उनकी महिमा का पार नहीं पाते। अपने प्रशंसनीय गुणों द्वारा भगवान हमें भी प्रशंसनीय बना देते हैं। अपने गुणों के विभूति दिखाकर वह हमें बता देते हैं कि किधर जाना चाहिए?क्या बनना चाहिए? कुछ इस प्रकार हमें प्रभु का नेतृत्व प्राप्त हो जाता है।मार्गदर्शन मिल जाता है। प्रभु एक और प्रकार से 'उरुशंस' हैं। उन्होंने महान वेद ज्ञान का हमारे लिए शंसन किया है, यानी उपदेश किया है। इसलिए वे महान उपदेक होने से भी उरुशंस  हैं। प्रभु का यह वेदोंपदेश हमें मार्ग दिखाता है-- हमारा नेतृत्व करता है। प्रभु की गुणावली पर अथवा उनके वेदोपदेश पर यदि हम चलेंगे तो हमारे आत्मा की शुद्धि होने से निश्चित ही हम उनसे योग के अधिकारी बन जाएंगे। 
    प्रभु ! हम इसके लिए आपसे शक्ति मांगते हैं पुरुवीर वीर ! हमें शक्ति दीजिए।
    हे मेरे आत्मा! यदि अपना कल्याण चाहता है तो उस पूरुवीर और उरुशंस प्रभु के नेतृत्व में चला कर।

     

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    विषय

    प्रभु से रक्षादि की प्रार्थना ।

    भावार्थ

    हे ( वरुण ) सर्वश्रेष्ठ ! राजन् ! प्रभो ! हे ( प्रणेतः ) उत्तम नायक ! हम लोग ( पुरुवीरस्य ) बहुत से वीर पुरुषों के स्वामी ( उपशंसस्य ) बहुतों से प्रशंसित, बहुत सों को उपदेश देने हारे ! हम ( तव ) तेरे ( शर्मन् ) शान्तिप्रद, दुःखनाशक शरण में ( स्याम ) रहें । हे ( देवाः ) विद्वान् विजयेच्छु पुरुषो! आप सब लोग ( नः ) हमारे बीच ( अदब्धाः ) कभी पीड़ित न होकर ( अदिते ) अखण्ड परमेश्वर या राजा के या राष्ट्रभूमि के ( पुत्राः ) पुत्र के समान होकर ( युज्याय ) परस्पर के सहायक होने के लिये ( अभिक्षमध्वम् ) सब प्रकार से समर्थ, सहनशील हो । अथवा ( नः पुत्राः ) तुम हम लोगों के पुत्र ( अदितेः ) माता पिता भाई आदि के सहायक होने और अखण्ड परमेश्वर के सखा होने या भोग द्वारा प्राप्त करने के लिये ( देवाः ) दानशील, अपीड़ित होकर ( अभि क्षमध्वं ) सदा समर्थ बने रहो ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    कूर्मो गार्त्समदो वा ऋषिः॥ वरुणो देवता॥ छन्द:— १, ३, ६, ४ निचृत् त्रिष्टुप् । ५, ७,११ त्रिष्टुप्। ८ विराट् त्रिष्टुप् । ९ भुरिक् त्रिष्टुप् । २, १० भुरिक् पङ्क्तिः ॥ एकादशर्चं सूक्तम् ॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    हे पुत्रांनो! जसे आम्ही उत्तम विद्वानांच्या संगतीने नीतिविद्या प्राप्त करून आनंदित होतो तसे तुम्ही क्षमाशील बनून अध्यापकाच्या अनुकूल आचरण करून सुशिक्षित विद्वान बना. ॥ ३ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Varuna, great leader of humanity, universally admired and followed by hosts of brave warriors, let us live in peace and bliss under your protection as in our heaven and home. And ye, all our children, be brilliant and generous, inviolable and indomitable, be strong and brilliant as children of eternity and prepare yourselves for action and cooperation in the service of the Lord.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The attributes of the sons are stated.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O noble leader ! I have seen your nice home where all family members are happy and brave. O my sons (even daughters) ! I wish and pray that you should be non-violent and efficient in proper dealings and become learned. Moreover, you should forgive others (in deserving cases).

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    O my sons ! we get knowledge and become happy through the nice learned persons. Likewise, you should also act on the lines of your teachers with good conduct and should forgive the weak.

    Foot Notes

    (पुरुवीरस्य) बहुप्रवीणशूरस्य = Of the one where many brave person are residing. (युज्याय) योक्तुमर्हाय व्यवहाराय = For the proper dealings.

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