ऋग्वेद - मण्डल 2/ सूक्त 3/ मन्त्र 8
सर॑स्वती सा॒धय॑न्ती॒ धियं॑ न॒ इळा॑ दे॒वी भार॑ती वि॒श्वतू॑र्तिः। ति॒स्रो दे॒वीः स्व॒धया॑ ब॒र्हिरेदमच्छि॑द्रं पान्तु शर॒णं नि॒षद्य॑॥
स्वर सहित पद पाठसर॑स्वती । सा॒धय॑न्ती । धिय॑म् । नः॒ । इळा॑ । दे॒वी । भार॑ती । वि॒श्वऽतू॑र्तिः । ति॒स्रः । दे॒वीः । स्व॒धया॑ । ब॒र्हिः । आ । इ॒दम् । अच्छि॑द्रम् । पा॒न्तु॒ । श॒र॒णम् । नि॒ऽसद्य॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
सरस्वती साधयन्ती धियं न इळा देवी भारती विश्वतूर्तिः। तिस्रो देवीः स्वधया बर्हिरेदमच्छिद्रं पान्तु शरणं निषद्य॥
स्वर रहित पद पाठसरस्वती। साधयन्ती। धियम्। नः। इळा। देवी। भारती। विश्वऽतूर्तिः। तिस्रः। देवीः। स्वधया। बर्हिः। आ। इदम्। अच्छिद्रम्। पान्तु। शरणम्। निऽसद्य॥
ऋग्वेद - मण्डल » 2; सूक्त » 3; मन्त्र » 8
अष्टक » 2; अध्याय » 5; वर्ग » 23; मन्त्र » 3
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अष्टक » 2; अध्याय » 5; वर्ग » 23; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह।
अन्वयः
या साधयन्ती सरस्वती देवीळा विश्वतूर्त्तिर्भारती च तिस्रो देवीरिदमच्छिद्रं बर्हिर्निषद्य स्वधया नो धियमापान्तु तासां शरणमस्माभिर्विधेयम् ॥८॥
पदार्थः
(सरस्वती) प्रशस्तविज्ञानकारिका वागिव स्त्री (साधयन्ती) विद्याशिक्षाभ्यामन्यान्विदुषः कारयन्ती (धियम्) प्रज्ञां कर्म वा (नः) अस्माकम् (इळा) स्तोतुमर्हा (देवी) देदीप्यमाना (भारती) शुभान् गुणान् धरन्ती (विश्वतूर्त्तिः) या विश्वं सर्वं जगत् त्वरति (तिस्रः) (देवीः) कमनीया देव्यः (स्वधया) अन्नेन (बर्हिः) अन्तरिक्षम् (आ) समन्तात् (इदम्) (अच्छिद्रम्) छिद्रवर्जितम् (पान्तु) (शरणम्) आश्रयम् (निषद्य) नितरां प्राप्य ॥८॥
भावार्थः
एका जननी द्वितीया अध्यापिका तृतीयोपदेशिका स्त्री कन्याभिः सदोपसेवनीया यतो धीविद्ये नित्यं वर्द्धेताम् ॥८॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।
पदार्थ
जो (साधयन्ती) विद्या और उत्तम शिक्षा से औरों को विद्वान् कराती (सरस्वती) प्रशस्त विज्ञान करानेवाली वाणी सदृश स्त्री (देवी) देदीप्यमान (इळा) स्तुति करने योग्य (विश्वतूर्त्तिः) समस्त संसार को शीघ्रता करानेवाली (भारती) और शुभ गुणों को धारण करनेवाली (तिस्रः) तीन (देवीः) मनोहर देवी (इदम्) इस (अच्छिद्रम्) छिद्ररहित (बर्हिः) अन्तरिक्ष को (निषद्य) निरन्तर प्राप्त हो के (स्वधया) अन्न से (नः) हमारी (धियम्) बुद्धि वा कर्म को (आपान्तु) अच्छे प्रकार पालें उनका (शरणम्) आश्रय हम लोगों को करना चाहिये ॥८॥
भावार्थ
एक माता दूसरी पढ़ानेवाली और तीसरी उपदेश करनेवाली स्त्री कन्याओं को सदा समीप में सेवनी चाहिये, जिससे बुद्धि और विद्या नित्य बढ़े ॥८॥
विषय
‘सरस्वती- इळा- भारती'
पदार्थ
१. (नः) = हमारी धियम् बुद्धि को व कर्म को (साधयन्ती) = सिद्ध करती हुई (सरस्वती) = ज्ञान की अधिष्ठात्री देवी 'सरस्वती', (देवी) = हमारे सब व्यवहारों को सिद्ध करनेवाली (इळा) = वाणी, तथा विश्वतूर्तिः = सब दोषों का संहार करनेवाली (भारती) = भरण-पोषण की देवी । ये (तिस्रः देवीः) = तीनों देवियाँ (स्वधया) = अपनी-अपनी धारणशक्ति के साथ (इदम्) = इस (बर्हिः) = मेरे वासनाशून्य हृदय में (आ निषद्य) = सर्वथा आसीन होकर (शरणम्) = इस शरीरगृह को (अच्छिद्रं पान्तु) = निरन्तर रक्षित करें । २. 'सरस्वती' की उपासना हमारे मस्तिष्क को ज्ञान से दीप्त करके सुन्दर बनाती है। 'इळा' की उपासना हमारे सब व्यवहारों को ठीक करती है। हमारे सब व्यवहार वेदवाणी के अनुकूल होने लगते हैं। यह वेदवाणी हमारे लिए 'इ-डा' = एक कानून बन जाती है - वेद के अनुसार हमारे सब कर्म होते हैं ' श्रुतिप्रामाण्यतो विद्वान् स्वधर्मे निविशेत वै'। 'भारती' का उपासन हमारे शरीरों को निर्दोष बनाता है और हम स्वस्थ बनकर इस शरीर को प्रभु का सुन्दर मन्दिर बना पाते हैं।
भावार्थ
भावार्थ- हम 'सरस्वती, इळा व भारती' की उपासना से मस्तिष्क, वाणी व शरीर को सुन्दर बना पाएँ ।
विषय
मेघ के दृष्टान्त से प्रजापति पुरुष को उपदेश ।
भावार्थ
(सरस्वती) सरस्वती देवी (नः धियं) हमारी बुद्धि और कर्म को ( साधयन्ती ) सत्कर्म में प्रवृत्त कराती हुई और (इळा देवी) अभिलषित सुख देने वाली इडा देवी (विश्वतूर्त्तिः भारती) समस्तों को अति शीघ्र लेजाने या कार्य करने वाली और स्वयं शीघ्र कार्य करने वाली ‘भारती’ ( तिस्रः देवीः ) ये तीनों देवियें ( स्वधया ) स्वधा अर्थात् अन्न के द्वारा (शरणं निषद्य) आश्रय को प्राप्त करके (अच्छिद्रं) त्रुटिरहित, सावधानता से ( इदं बर्हिः ) इस वृद्धिशील गृहस्थ को ( आ पान्तु ) अच्छी प्रकार पालन करें । ‘सरस्वती’ —उत्तम ज्ञान वाली विदुषी, ‘इळा’ अन्न दात्री, भूमि के समान सब सुखों को उत्पन्न करने वाली, ‘भारती’ मनुष्यों को सुख और आश्रय देनेवाली अर्धांगिनी, स्त्री ही के तीनों गुण हैं विदुषी, अन्न साधिका और गृहस्थ सुख देनेवाली इन तीनों गुणों में स्थित तीनों गुणों से युक्त की स्त्रियाँ गृहस्थ बसा कर घर का पालन करें । राष्ट्र पक्ष में विद्वत्सभा, भूमि या अन्न की उपज आदि की प्रबन्ध कर्त्री सभा और समाज की सुव्यवस्था करने वाली सभा क्रम से सरस्वती ( Legislative ) इळा ( Revnue ) भारती ( Municipality ) वे तीनों ही राष्ट्र में अपना स्थान पाकर दोष रहित कार्य सम्पादन करें और प्रजा की रक्षा करें ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
गृत्समद ऋषिः । छन्दः—१, २ विराट् त्रिष्टुप् । ३, ५, ६ भुरिक् त्रिष्टुप् । । ४, ९, ११ निचृत् त्रिष्टुप् । ८,१० त्रिष्टुप् । ७ जगती ॥ एकादशर्चं सूक्तम् ॥
मराठी (1)
भावार्थ
एक माता, दुसरी अध्यापिका, तिसरी उपदेशिका अशा तीन स्त्रियांचा कन्यांनी नेहमी स्वीकार केला पाहिजे, ज्यामुळे बुद्धी व विद्या नित्य वाढेल. ॥ ८ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Ila, the transcendent Infinity of Divine Omniscience, Sarasvati, dynamic universal knowledge revealed, recorded and envisioned in meditation, and Bharati, living human speech which holds the treasure of secular knowledge ever on the move in life onward like a tempest: may these three goddesses inspire our intelligence and, with their innate and essential power, come and grace our holy seat of yajna and bless it as our perfect haven and faultless home under protection of the divinities.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
Attributes of women-mothers, lady teachers and lady preachers.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
A noble lady first learns herself and thereafter teaches others. She is knowledgeable and shining like a good speech. She is admirable and puts the humanity on the right tract, conceive good virtues and is of three types. Faultless, she is always highly placed with the yardstick of material prosperity, wisdom and action. We should emulate such women.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
Among the three types of women one of them is the mother, second is teacher and third one is preacher. Let our women and girls benefit from their company.
Foot Notes
(सरस्वती) प्रशस्त विज्ञानकारिका वागिव स्त्री = A woman comparable with speech containing extensive knowledge. (विश्वतूर्ति:) र विश्वं सर्व जगत् त्वरति। = One who moves quickly the whole world. (शरणम्) आश्रयम् = Protective cover. (निषद्य) नितरां प्राप्य = Get us fully.
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