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ऋग्वेद मण्डल - 2 के सूक्त 40 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 2/ सूक्त 40/ मन्त्र 6
    ऋषिः - गृत्समदः शौनकः देवता - सोमापूषणावदितिश्च छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    धियं॑ पू॒षा जि॑न्वतु विश्वमि॒न्वो र॒यिं सोमो॑ रयि॒पति॑र्दधातु। अव॑तु दे॒व्यदि॑तिरन॒र्वा बृ॒हद्व॑देम वि॒दथे॑ सु॒वीराः॑॥

    स्वर सहित पद पाठ

    धिय॑म् । पू॒षा । जि॒न्व॒तु॒ । वि॒श्व॒म्ऽइ॒न्वः । र॒यिम् । सोमः॑ । र॒यि॒ऽपतिः॑ । द॒धा॒तु॒ । अव॑तु । दे॒वी । अदि॑तिः । अ॒न॒र्वा । बृ॒हत् । व॒दे॒म॒ । वि॒दथे॑ । सु॒ऽवीराः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    धियं पूषा जिन्वतु विश्वमिन्वो रयिं सोमो रयिपतिर्दधातु। अवतु देव्यदितिरनर्वा बृहद्वदेम विदथे सुवीराः॥

    स्वर रहित पद पाठ

    धियम्। पूषा। जिन्वतु। विश्वम्ऽइन्वः। रयिम्। सोमः। रयिऽपतिः। दधातु। अवतु। देवी। अदितिः। अनर्वा। बृहत्। वदेम। विदथे। सुऽवीराः॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 2; सूक्त » 40; मन्त्र » 6
    अष्टक » 2; अध्याय » 8; वर्ग » 6; मन्त्र » 6
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह।

    अन्वयः

    हे विद्वांसो येन प्रकारेण पूषा मे धियं जिन्वतु विश्वमिन्वो रयिपतिस्सोमो रयिं दधातु। अनर्वा देव्यदितिर्धियमवतु यतस्सुवीरा वयं विदथे बृहद्वदेम ॥६॥

    पदार्थः

    (धियम्) प्रज्ञां कर्म वा (पूषा) प्राणः (जिन्वतु) प्राप्नोतु सुखयतु वा (विश्वमिन्वः) विश्वं मिनोति व्याप्नोति यस्सः (रयिम्) श्रियम् (सोमः) पदार्थसमूहः (रयिपतिः) धनरक्षकः (दधातु) (अवतु) रक्षतु (देवी) दिव्यगुणा (अदितिः) माता (अनर्वा) अविद्यमाना अश्वा यस्याः सा (बृहत्) (वदेम) (विदथे) (सुवीराः) ॥६॥

    भावार्थः

    हे मनुष्या यथा सर्वे पदार्थाः श्रीप्रज्ञारोग्यायुषां वर्द्धकाः स्युस्तथा विदधतं येन सर्वे मनुष्या महत्सुखं प्राप्नुयुरिति ॥६॥ अत्र प्राणापानाग्निवायुविद्वद्गुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या॥ इति चत्वारिंशत्तमं सूक्तं षष्ठो वर्गश्च समाप्तः॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

    पदार्थ

    हे विद्वानो ! जिस प्रकार से (पूषा) प्राण मेरी (धियम्) बुद्धि वा कर्म को (जिन्वतु) प्राप्त हो वा सुखी करे (विश्वमिन्वः) तथा जो विश्व को व्याप्त होता वह (रयिपतिः) धन की रक्षा करनेवाला (सोमः) पदार्थों का समूह (रयिम्) लक्ष्मी को (दधातु) धारण करे (अनर्वा) तथा जिसके अविद्यमान घोड़े हैं वह (देवी) दिव्यगुणवाली (अदितिः) माता बुद्धि वा कर्म की (अवतु) रक्षा करे जिससे (सुवीराः) शोभन वीरोंवाले हम लोग (विदथे) संग्राम में (बृहत्) बहुत (वदेम) कहें ॥६॥

    भावार्थ

    हे मनुष्यो ! जैसे सब पदार्थ धन बुद्धि आरोग्यता और आयु के बढ़ानेवाले हों, वैसे विधान करो, जिससे सब मनुष्य बहुत सुख को प्राप्त होवें ॥६॥ इस सूक्त में प्राण अपान अग्नि वायु और विद्वानों के गुणों का वर्णन होने से इस सूक्त के अर्थ की पिछले सूक्त के अर्थ के साथ संगति है, यह जानना चाहिये ॥ यह चालीसवाँ सूक्त और छठा वर्ग समाप्त हुआ॥

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    विषय

    धी+रय (बुद्धि+शक्ति )

    पदार्थ

    १. (विश्वम् इन्वः) = सम्पूर्ण विश्व को प्रीणित करनेवाला पूषा-पोषक सूर्य (धियम् जिन्वतु) = हमारे में बुद्धि को प्रेरित करे-हमें बुद्धि को प्राप्त कराए तथा (रयिपतिः) = सब ऐश्वर्यों व रविशक्ति का स्वामी (सोमः) = चन्द्र (रयिं दधातु) = हमारे में रयि का धारण करे। सूर्य बुद्धि को उज्ज्वल करके हमारे मस्तिष्क को प्रकाशमय करता है और चन्द्रमा हमारे में रयि का स्थापन करके हमारे शरीर को स्वस्थ रखता है। 'वीर्यं वै रयिः ' श० १३.४.२.१३ इस वीर्य के स्थापन द्वारा सोम हमें अमृतत्व व नीरोगता को प्राप्त कराता है। २. बुद्धि व वीर्य के स्थापन होने पर (देवी) = सब व्यवहारों को उत्तमता से सिद्ध करनेवाली (अनर्वा) = अहिंसित (अदितिः) = यह स्वाध्याय की देवता (अवतु) हमारा रक्षण करे। मस्तिष्क व शरीर दोनों का ठीक होना ही पूर्ण स्वास्थ्य है। इस प्रकार स्वस्थ बनकर (सुवीराः) उत्तम वीर बनते हुए हम (विदथे) = ज्ञानयज्ञों में (बृहद्वदेम) = खूब ही इन सोम व पूषा की महिमा का गायन करें। इनके महत्त्व को समझकर दोनों का अपने में स्थापन करे और अधिकाधिक स्वस्थ बनें ।

    भावार्थ

    भावार्थ–'पूषा' हमें बुद्धि दे और 'सोम' शक्ति दे । इस प्रकार हम पूर्ण स्वास्थ्य लाभ करें। सम्पूर्ण सूक्त का सार यही है कि सुन्दर जीवन वही है, जिसमें कि सौम्यता व तेजस्विता का समन्वय है। इनका समन्वय हमें बुद्धिमान् व वीर्यमान् बनाता है। 'सोम व पूषा की कृपा से हमारा शरीर - रथ सुन्दर बनता है' इसी भावना को अग्रिम सूक्त में कहते हैं—

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    विषय

    सोम पूषा, माता पिता के कर्त्तव्य ।

    भावार्थ

    ( पूषा ) पोषण कर्त्ता पुरुष ( विश्वमिन्वः ) सब प्रकार की बाधाओं और बाधक शत्रुओं को नाश करने वाला होकर ( धियं ) गृहस्थ के धारण पोषण कर्त्तव्य को ( जिन्वतु ) पालन करे, बढ़ावे । ( सोमः ) उत्पादक माता ( रयि-पतिः ) ऐश्वर्य का पालक होकर ( रयिं ) ऐश्वर्य को ( दधातु ) धारण करे । ( देवी ) कामना करने हारी, उत्तम गुणों से युक्त स्त्री ( अदितिः ) माता होकर पुत्रों का ( अवतु ) पालन करे और वह ( अनर्वा ) विरोधी जन से रहित हो । इसी प्रकार ( अदितिः ) पिता भी ( अनर्वा ) सबसे उत्तम अश्व के समान गृहस्थ रथ का मुख्य सञ्चालक होकर ( अदितिः ) अखण्ड शासन और बल से युक्त या गृहस्थ सुखों का भोक्ता होकर ( अवतु ) पालन करे । हम ( सुवीराः ) उत्तम वीर्यवान् होकर ( विदथे ) ज्ञानसम्पादन में और युद्धों और यज्ञों में ( बृहद् वदेम ) बड़े ज्ञान और वेदादि का उपदेश करें । ( २ ) अपान धारण शक्ति बढ़ाता है सोम प्राण और वीर्य ‘रयि’ इस जड़ देह का पालक होकर धारण करता है । ‘अदिति’ अखण्ड नित्य चेतना शक्ति तेजोमयी होने से ‘देवी’ है वह (अनर्वा) निर्बाध सर्वोपरि स्वतन्त्र होकर सबको पालती है। हम उसी की खूब चर्चा करें । इति षष्ठो वर्गः ॥

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    गृत्समद ऋषिः॥ १-३ सोमापूषणावदितिश्च देवता॥ छन्दः–१, ३ त्रिष्टुप्। २ विराट् त्रिष्टुप्। ५, ६ निचृत् त्रिष्टुप्। ४ स्वराट् पङ्क्तिः॥ षडृचं सूक्तम्॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    हे माणसांनो ! सर्व पदार्थ धन, बुद्धी, आरोग्य व आयुष्य वाढविणारे असतात असे विधान करा. ज्यामुळे सर्व माणसांना अत्यंत सुख प्राप्त होईल. ॥ ६ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    May Pusha, all-pervading spirit of growth and refinement, inspire our will and intelligence. May Soma, lord of wealth, bless us with wealth. May mother Aditi, divine intelligence, moving in unseen currents, inspire our intelligence. And may we, blest with brave warriors and noble children, sing ecstatic songs of thanks and praise in celebration of Soma and Pusha.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    More about the learned persons is told.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O learned persons ! may Prana (vital energy) confer happiness upon my intellect. May the group of articles which pervades many places and which is the protector of wealth give us beauty and affluence. May the Divine mother who has no adversaries protect us, so that being good heroes, we may teach great wisdom at the Yajna (in the form of the diffusion of knowledge).

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    O men ! you should act in such a way that all the articles may multiply (splendor) intellect, health and longevity, so that all the human beings may enjoy much happiness.

    Foot Notes

    (पूषा) प्राणः । = Vital energy. (विश्वमिन्व:) विश्वं मिनोति व्याप्नोति यः सः।= Which pervades all. (सोमः ) पदार्थसमूहः । = The group of various articles. (अदितिः) माता। = Mother (अनर्वा) शतुरहिताः। = One who has no adversaries.

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