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ऋग्वेद मण्डल - 3 के सूक्त 42 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 3/ सूक्त 42/ मन्त्र 6
    ऋषिः - गोपवन आत्रेयः सप्तवध्रिर्वा देवता - इन्द्र: छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    वि॒द्मा हि त्वा॑ धनंज॒यं वाजे॑षु दधृ॒षं क॑वे। अधा॑ ते सु॒म्नमी॑महे॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वि॒द्म । हि । त्वा॒ । ध॒न॒म्ऽज॒यम् । वाजे॑षु । द॒धृ॒षम् । क॒वे॒ । अध॑ । ते॒ । सु॒म्नम् । ई॒म॒हे॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    विद्मा हि त्वा धनंजयं वाजेषु दधृषं कवे। अधा ते सुम्नमीमहे॥

    स्वर रहित पद पाठ

    विद्म। हि। त्वा। धनम्ऽजयम्। वाजेषु। दधृषम्। कवे। अध। ते। सुम्नम्। ईमहे॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 3; सूक्त » 42; मन्त्र » 6
    अष्टक » 3; अध्याय » 3; वर्ग » 6; मन्त्र » 1
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    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह।

    अन्वयः

    हे कवे ! वयं वाजेषु दधृषं धनञ्जयं त्वा विद्म। अध हि ते सुम्नमीमहे ॥६॥

    पदार्थः

    (विद्म) विजानीयाम। अत्र द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घः। (हि) यतः (त्वा) त्वाम् (धनञ्जयम्) यो धनं जयति तम् (वाजेषु) सङ्ग्रामेषु (दधृषम्) प्रगल्भम् (कवे) विद्वन् (अध) अथ। अत्र निपातस्य चेति दीर्घः। (ते) तव सकाशात् (सुम्नम्) सुखम् (ईमहे) याच्ञामहे ॥६॥

    भावार्थः

    मनुष्या यं सुखप्रदानेषु योग्यं शूरवीरं न्यायाधीशं विजानीयुस्तस्मादेव सुखाऽलङ्कृतिः कार्य्या ॥६॥

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    हिन्दी (2)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।

    पदार्थ

    हे (कवे) विद्वान् पुरुष ! हम लोग (वाजेषु) सङ्ग्रामों में (दधृषम्) प्रचण्ड (धनञ्जयम्) धनों के जीतनेवाले (त्वा) आपको (विद्म) जानें (अध) इसके अनन्तर (हि) जिससे (ते) आपके समीप से (सुम्नम्) सुख की (ईमहे) याचना करते हैं ॥६॥

    भावार्थ

    मनुष्य जिसको सुखों के प्रदानों में योग्य शूरवीर न्यायाधीश जानें, उसी से सुखों की पूर्त्ति करनी चाहिये ॥६॥

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    विषय

    धनों का विजय-शत्रुपराजय

    पदार्थ

    [१] हे (कवे) = क्रान्तदर्शिन्-सर्वज्ञ प्रभो ! (हि) = निश्चय से (त्वा) = आपको ही (धनञ्जयम्) = सब धनों का विजय करनेवाला (विद्म) = जानते हैं । वस्तुतः आप ही धनों का विजय करते हैं। आपकी शक्ति से ही हम उन-उन धनों को प्राप्त किया करते हैं। [२] (वाजेषु) = संग्रामों में आपको ही (दधृषम्) = शत्रुओं का धर्षण करनेवाला हम समझते हैं। काम-क्रोध आदि शत्रुओं को कुचलने की शक्ति आप में ही है। हमारी शक्ति से इनका विजय सम्भव नहीं। (अधा) = इसलिए (ते सुम्नम्) = आप से ही सुख की (ईमहे) = याचना करते हैं। आपका स्तवन करते हुए ही हम आपकी शक्ति से शक्तिसम्पन्न होकर धनों का विजय करते हैं और शत्रुओं का धर्षण कर पाते हैं।

    भावार्थ

    भावार्थ- प्रभु-स्तवन हमें धनों का विजेता व शत्रुओं का पराजेता बनाता है।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    माणसांनी सुख देणाऱ्या योग्य शूरवीर न्यायाधीशाला जाणावे. त्याच्याकडूनच सुखाची पूर्ती करून घ्यावी. ॥ ६ ॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    We know you for sure, O lord of knowledge and vision, winner of wealth and bold fighter of battles for health and energy. And now we pray to you for the gift of peace and comfort of well-being.

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