ऋग्वेद - मण्डल 3/ सूक्त 48/ मन्त्र 2
ऋषिः - गोपवन आत्रेयः सप्तवध्रिर्वा
देवता - इन्द्र:
छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
यज्जाय॑था॒स्तदह॑रस्य॒ कामें॒ऽशोः पी॒यूष॑मपिबो गिरि॒ष्ठाम्। तं ते॑ मा॒ता परि॒ योषा॒ जनि॑त्री म॒हः पि॒तुर्दम॒ आसि॑ञ्च॒दग्रे॑॥
स्वर सहित पद पाठयत् । जाय॑थाः । तत् । अहः॑ । अ॒स्य॒ । कामे॑ । अं॒शोः । पी॒यूष॑म् । अ॒पि॒बः॒ । गि॒रि॒ऽस्थाम् । तम् । ते॒ । मा॒ता । परि॑ । योषा॑ । जनि॑त्री । म॒हः । पि॒तुः । दमे॑ । आ । अ॒सि॒ञ्च॒त् । अग्रे॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
यज्जायथास्तदहरस्य कामेंऽशोः पीयूषमपिबो गिरिष्ठाम्। तं ते माता परि योषा जनित्री महः पितुर्दम आसिञ्चदग्रे॥
स्वर रहित पद पाठयत्। जायथाः। तत्। अहः। अस्य। कामे। अंशोः। पीयूषम्। अपिबः। गिरिऽस्थाम्। तम्। ते। माता। परि। योषा। जनित्री। महः। पितुः। दमे। आ। असिञ्चत्। अग्रे॥
ऋग्वेद - मण्डल » 3; सूक्त » 48; मन्त्र » 2
अष्टक » 3; अध्याय » 3; वर्ग » 12; मन्त्र » 2
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अष्टक » 3; अध्याय » 3; वर्ग » 12; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
अथ सन्तानोत्पत्तिविषयमाह।
अन्वयः
हे राजँस्त्वं यदहर्जायथास्तदहः कामेऽस्यांऽशोर्गिरिष्ठां पीयूषं ते तव पिताऽपिबस्तं तव पितुर्योषा तव जनित्री माताऽग्रे दमे महः पर्य्यासिञ्चत् ॥२॥
पदार्थः
(यत्) (जायथाः) (तत्) (अहः) दिने (अस्य) (कामे) (अंशोः) प्राप्तस्य (पीयूषम्) अमृतात्मकं रसम् (अपिबः) पिब (गिरिष्ठाम्) यो गिरौ मेघे तिष्ठति (तम्) (ते) तव (माता) (परि) सर्वतः (योषा) (जनित्री) (महः) महत् (पितुः) पालकस्य जनकस्य (दमे) गृहे। दम इति गृहना०। निघं०३। ४। (आ) (असिञ्चत्) समन्तात् सिञ्चति (अग्रे) प्रथमतः ॥२॥
भावार्थः
यदा स्त्रीपुरुषौ गर्भमादधेयातां तदा दुष्टान्नपानादिसेवनं विहाय श्रेष्ठान्नपानं कृत्वा गर्भमाधाय सन्तानमुत्पाद्य पुनस्तस्याप्येवमेव पालनं वर्धनं कुर्य्याद्यो राजा भवितुमर्हेत् ॥२॥
हिन्दी (3)
विषय
अब सन्तान की उत्पत्ति के विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।
पदार्थ
हे राजन् ! आप (यत्) जिस (अहः) दिन (जायथाः) उत्पन्न हुए (तत्) उस दिन की (कामे) कामना में (अस्य) इस (अंशोः) प्राप्त हुए भाग के (गिरिष्ठाम्) मेघ में विद्यमान (पीयूषम्) अमृतरूप रस को (ते) आपके पिता (अपिबः) पान करें (तम्) उसको आपके (पितुः) पालक और उत्पादक पिता की (योषा) स्त्री आपकी (जनित्री) उत्पन्न करनेवाली (माता) माता (अग्रे) पहिले (दमे) घर में (महः) बड़े को (परि, आ, असिञ्चत्) चारों ओर से सींचता है ॥२॥
भावार्थ
जब स्त्री और पुरुष गर्भ को धारण करें तब दुष्ट अन्न पान आदि का सेवन त्याग श्रेष्ठ अन्न पान गर्भधारण और सन्तान उत्पन्न करके फिर उसका भी इसी प्रकार पालन और वृद्धि करे, जो कि राजा होने को योग्य हो ॥२॥
विषय
उपासना व स्वाध्याय से सोमरक्षण
पदार्थ
[१] (यज्जायथाः) = जब आप प्रादुर्भूत होते हो, (तद् अहः) = उसी दिन (अस्य अंशो:) = इस सोम के (पीयूषम्) = अमृत की कामे इच्छा होने पर (अपिब:) = मेरे शरीर में ही व्याप्त करो। मेरे में सोमपान की कामना हो। और आपके प्रादुर्भाव से, वासनाओं से बचकर मैं सोमरक्षण कर सकूँ । उस सोम के अमृत का मैं पान करूँ, जो कि (गिरिष्ठाम्) = वेदवाणी में स्थित है। इस सोमरक्षण से ज्ञानाग्नि की दीप्ति होती है और हम ज्ञानवाणियों को धारण करनेवाले बनते हैं । [२] (तम्) = उस सोम को (ते माता) = तेरे जीवन के निर्माण को करनेवाली, (योषा) = गुणों का मिश्रण व अवगुणों का अमिश्रण करनेवाली, जनित्री सब शक्तियों के विकास की कारणभूत यह वेदमाता उस (महः पितुः दमे) = महान् पिता प्रभु के आश्रय में (अग्रे परि आसिञ्चत्) = सर्वप्रथम चारों ओर आसिक्त करती है। 'वेद सोम को शरीर में आसिक्त करता है' का भाव यह है कि जब मनुष्य वेद का अध्ययन करनेवाला बनता है, तो सोम का शरीर में रक्षण स्वभावतः होता है यह सोम ज्ञानाग्नि का ईंधन बन जाता है। 'उस महान् पिता प्रभु के आश्रय में' इन शब्दों का भाव यह है कि उपासना से वासना दूर होती है और सोम का रक्षण होता है।
भावार्थ
भावार्थ- स्वाध्याय व उपासना सोमरक्षण के साधन बनते हैं।
विषय
माता पिता, सूर्य पृथिवीवत् राजा प्रजा का व्यवहार।
भावार्थ
हे राजन् ! तू (यत्) जब भी (जायथाः) उत्पन्न हो, गुणों से सबके समक्ष प्रकट हो (तत् अहः) उस दिन सूर्य के समान तेजस्वी होकर (अस्य अंशोः) इस प्राप्त हुए राष्ट्र की (कामे) अभिलाषा के अनुसार इसके (गिरिष्ठाम्) वेद वाणी व व्यवस्था पुस्तक में विद्यमान् (पीयूषम्) हिंसक पुरुषों के नाश करने वाले ज्ञान और बल को (अपिबः) प्राप्त कर। और उसका पालन कर। (तं) उस बल को (ते) तेरी (माता) मान करने वाली, (योषा) तुझ से मिलकर रहने वाली (जनित्री) तुझ जैसे ऐश्वर्यवान् को उत्पन्न करने वाली पृथिवी या राष्ट्रशक्ति (महः पितुः) बड़े भारी अपने पालक राजा के (दमे) गृह के समान शरण में या राज्य के दमन कार्य में (अग्रे) सब से पहले (आसिञ्चत्) सेचन करे, उक्त बल को पुष्ट करे। सूर्य पक्ष में—सूर्य दिन के समय (गिरिष्ठाम्) मेघस्थ जल को पान करता है। मानो अन्न-उत्पादक माता पृथिवी अपने पालक सूर्य के शासन में रहकर पालक पति के अधीन रहकर स्त्री के समान ही प्रथम अपने उस जल को आसिञ्चन करती है। पृथिवी माता है तो सूर्य पिता है और पृथिवी का पालक होने से पति भी है। सूर्य से उत्पन्न और अनुप्राणित पृथिवी सूर्य की पुत्री के समान होकर भी स्त्री के समान है। इस प्रकार सूर्य ‘प्रजापति’ का अपनी दुहिता या पुत्री के भोग को बतलाने वाला चमत्कारी वाक्य स्पष्ट होता है। इसी दृष्टि से कहा है। ‘प्रजापति’—‘प्रजा का पति’ अपनी सन्तानवत् पालनीय प्रजा का ही पति, पालक इसी प्रकार राजा भी जहां पुत्रवत् प्रजा का पालक है वहां उसी का पतिवत् भोक्ता भी है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
विश्वामित्र ऋषिः। इन्द्रो देवता ॥ छन्द:–१, २ निचृत्त्रिष्टुप। ३, ४ त्रिष्टुप्। ५ भुरिक् पंक्तिः॥
मराठी (1)
भावार्थ
जेव्हा स्त्री-पुरुष गर्भ धारण करतात तेव्हा निकृष्ट अन्नपान इत्यादींचा त्याग करून व उत्कृष्ट अन्नपान करून गर्भ धारण करावा व संतान उत्पन्न करून त्याचेही त्याचप्रकारे पालन करून वृद्धी करावी. ते संतानही राजा बनण्यायोग्य असावे. ॥ २ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
As you were born, that same day, in the desire for life and sustenance, you drank the nectar sweet of soma abiding and maturing in the cloud and on the mountain, which your loving mother, as life’s creative spirit, inspired with love, recreated and nourished for you in the house of your great father much in advance of your birth.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The subject of reproduction has been dealt.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O king ! the day on which you were born, your father drank the nectar of the Soma, found in the mountain. Your birth-giving mother, wife of your father also took this effective juice in her home before this conception.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
When the husband cohabits and wifes conceive, they should give up all bad meals and drink and take good food and drink. Thus they give birth to ideal children and bring them up properly, so that they may be worthy of being rulers.
Foot Notes
(अंशोः) प्राप्तस्य । सोमस्य। = The drop of the Soma that was prepared. (गिरिष्ठाम् ) यो गिरो मेघे तिष्ठति तम् । = Which is in the cloud.
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