ऋग्वेद - मण्डल 3/ सूक्त 48/ मन्त्र 5
ऋषिः - गोपवन आत्रेयः सप्तवध्रिर्वा
देवता - इन्द्र:
छन्दः - भुरिक्पङ्क्ति
स्वरः - पञ्चमः
शु॒नं हु॑वेम म॒घवा॑न॒मिन्द्र॑म॒स्मिन्भरे॒ नृत॑मं॒ वाज॑सातौ। शृ॒ण्वन्त॑मु॒ग्रमू॒तये॑ स॒मत्सु॒ घ्नन्तं॑ वृ॒त्राणि॑ सं॒जितं॒ धना॑नाम्॥
स्वर सहित पद पाठशु॒नम् । हु॒वे॒म॒ । म॒घवा॑नम् । इन्द्र॑म् । अ॒स्मिन् । भरे॑ । नृऽत॑मम् । वाज॑ऽसातौ । शृ॒ण्वन्त॑म् । उ॒ग्रम् । ऊ॒तये॑ । स॒मत्ऽसु॑ । घ्नन्त॑म् । वृ॒त्राणि॑ । स॒म्ऽजित॑म् । धना॑नाम् ॥
स्वर रहित मन्त्र
शुनं हुवेम मघवानमिन्द्रमस्मिन्भरे नृतमं वाजसातौ। शृण्वन्तमुग्रमूतये समत्सु घ्नन्तं वृत्राणि संजितं धनानाम्॥
स्वर रहित पद पाठशुनम्। हुवेम। मघवानम्। इन्द्रम्। अस्मिन्। भरे। नृऽतमम्। वाजऽसातौ। शृण्वन्तम्। उग्रम्। ऊतये। समत्ऽसु। घ्नन्तम्। वृत्राणि। सम्ऽजितम्। धनानाम्॥
ऋग्वेद - मण्डल » 3; सूक्त » 48; मन्त्र » 5
अष्टक » 3; अध्याय » 3; वर्ग » 12; मन्त्र » 5
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अष्टक » 3; अध्याय » 3; वर्ग » 12; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह।
अन्वयः
हे मनुष्या ! वयमस्मिन् वाजसातौ भर ऊतये मघवानं नृतमं शृण्वन्तमुग्रं समत्सु घ्नन्तं धनानां सञ्जितं वृत्राणि प्राप्तमिन्द्रं प्राप्य शुनं हुवेम तथैव तादृशं राजानं प्राप्य यूयमप्येतदाह्वयत ॥५॥
पदार्थः
(शुनम्) राजधर्मजं सुखम् (हुवेम) आह्वयेम (मघवानम्) न्यायोपार्जितबहुधनसत्कृतम् (इन्द्रम्) राजानम् (अस्मिन्) (भरे) भर्त्तव्ये राज्ये (नृतमम्) नरोत्तमम् (वाजसातौ) सत्यासत्यव्यवहारविभाजके (शृण्वन्तम्) सत्याऽसत्ये निश्चित्याज्ञापयन्तम् (उग्रम्) दुष्टेषु कठिनस्वभावं श्रेष्ठेषु सरलम् (ऊतये) रक्षणाद्याय (समत्सु) धर्म्यसङ्ग्रामेषु (घ्नन्तम्) दुष्टान् विनाशयन्तम् (वृत्राणि) धनानि (सञ्जितम्) पालकं दातारं वा (धनानाम्) ॥५॥
भावार्थः
सर्वैः सभ्यैर्विद्वज्जनैरवश्यं सकलशास्त्रविशारदं शुभगुणकर्मस्वभावं राजधर्मकोविदं कुलीनं परमैश्वर्य्यवन्तं सर्वाधीशं कृत्वा राष्ट्रस्य सततं रक्षाञ्च विधाय दस्यवः परिहन्तव्या इति ॥५॥ अत्र राजधर्मसन्तानोत्पत्तिराज्यपालनादिगुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इत्यष्टचत्वारिंशत्तमं सूक्तं द्वादशो वर्गश्च समाप्तः ॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।
पदार्थ
हे मनुष्यो ! हमलोग (अस्मिन्) इस (वाजसातौ) सत्य और असत्य व्यवहार के विभाग करनेवाले (भरे) पोषण करने योग्य राज्य में (ऊतये) रक्षण आदि के लिये (मघवानम्) न्याय से इकट्ठे किये गये बहुत धन से सत्कृत (नृतमम्) मनुष्यों में उत्तम मनुष्य (शृण्वन्तम्) सत्य और असत्य का निश्चय करके आज्ञा देते हुए (उग्रम्) दुष्ट जनों में कठिन और श्रेष्ठ पुरुषों में सरल स्वभाववाले (समत्सु) धर्मयुक्त संग्रामों में (घ्नन्तम्) दुष्ट पुरुषों के नाशकर्त्ता (धनानाम्) धनों के (सञ्जितम्) पालन करने वा देनेवाले (वृत्राणि) धनों को प्राप्त (इन्द्रम्) राजा को प्राप्त हो कर (शुनम्) राजाओं के धर्म से उत्पन्न हुए सुख को (हुवेम) ग्रहण करें, वैसे ही ऐसे राजा को प्राप्त होकर आप लोग भी इसका ग्रहण करो ॥५॥
भावार्थ
संपूर्ण श्रेष्ठ सभासद् विद्वज्जनों को चाहिये कि अवश्य संपूर्ण शास्त्रों में निपुण उत्तम गुण कर्म और स्वभाववाले राजधर्म में चतुर व उत्तम कुलयुक्त अत्यन्त ऐश्वर्य्यवान् पुरुष को सबका अधीश करके और राज्य की निरन्तर रक्षा करके चौरादिकों का नाश करें ॥५॥ इस सूक्त में राजधर्म सन्तानोत्पत्ति और राज्यपालन आदि के गुणों का वर्णन होने से इस सूक्त के अर्थ की पिछले सूक्त के अर्थ के साथ संगति जाननी चाहिये ॥ यह अड़तालीसवाँ सूक्त और बारहवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
विषय
भरे नृतमम्
पदार्थ
[१] मन्त्र व्याख्या ३.३०.२२ पर द्रष्टव्य है । सम्पूर्ण सूक्त सोम का महत्त्व व्यक्त कर रहा है। इसी सोमरक्षण के लिए वासना का विनाश करना है। इसी भाव से अगले सूक्त का प्रारम्भ है -
विषय
शरीरवत् वीर की राष्ट्र वृद्धि।
भावार्थ
व्याख्या देखो सू० ३३॥ मं० २२॥ इति द्वादशो वर्गः॥
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
विश्वामित्र ऋषिः। इन्द्रो देवता ॥ छन्द:–१, २ निचृत्त्रिष्टुप। ३, ४ त्रिष्टुप्। ५ भुरिक् पंक्तिः॥
मराठी (1)
भावार्थ
संपूर्ण श्रेष्ठ सभासद विद्वानांनी सर्व शास्त्रात निपुण, उत्तम गुण, कर्म स्वभावयुक्त, राजधर्मात चतुर, कुलीन, अत्यंत ऐश्वर्ययुक्त पुरुषाला राजा करावे व राज्याचे निरंतर रक्षण करून चोर इ. चा नाश करावा. ॥ ५ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
We invoke, invite and call upon Indra, auspicious and benevolent giver, commander of wealth, power and honour, best of men and leaders, for protection, defence and victory in this battle of life. He listens to prayer for protection in battles and rises, a fierce fighter, destroyer of demons and dark clouds, and winner of the wealths of life.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The same subject is continued.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O men! we enjoy political stability and happiness in this State by invoking a king, who is blessed with abundant wealth earned justly. He is the best among men, who issues instructions after verifying the truth and distinguishing between the truth and untruth. Such a ruler is fierce towards the wicked but upright and humble towards good men, and destroys the wicked in the battles and gives wealth of all kinds. As we enjoy happiness by electing and getting such a ruler, you should also do the same.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
It is the duty of all members of the Assembly and other civilized persons, to elect a man, as President or King a who is well-versed in all shastras, a man of noble merits, actions and temperament, expert in political affairs, belonging to a noble family and blessed with much wealth. Having elected such a President of the Assembly or Council of Ministers, they should preserve and protect the State and destroy all thieves, robbers and other wicked persons.
Foot Notes
(शुनम्) राजधर्मजसुखाम्। =Political happiness or happiness attained by having political stability and good administration. (भरे) भर्तव्ये राज्ये। = In the state or kingdom to be supported well (शृण्वन्तम् ) सत्यासत्ये । निश्चित्याज्ञापयन्तम् |= Passing orders after distinguishing between the truth and falsehood (वुत्राणि) धनानि । Wealth of all kinds.
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