ऋग्वेद - मण्डल 4/ सूक्त 14/ मन्त्र 3
ऋषिः - वामदेवो गौतमः
देवता - अग्निर्लिङ्गोक्ता वा
छन्दः - स्वराट्पङ्क्ति
स्वरः - पञ्चमः
आ॒वह॑न्त्यरु॒णीर्ज्योति॒षागा॑न्म॒ही चि॒त्रा र॒श्मिभि॒श्चेकि॑ताना। प्र॒बो॒धय॑न्ती सुवि॒ताय॑ दे॒व्यु१॒॑षा ई॑यते सु॒युजा॒ रथे॑न ॥३॥
स्वर सहित पद पाठआ॒ऽवह॑न्ती । अ॒रु॒णीः । ज्योति॒षा । आ । अ॒गा॒त् । म॒ही । चि॒त्रा । र॒श्मिऽभिः॑ । चेकि॑ताना । प्र॒ऽबो॒धय॑न्ती । सु॒ऽवि॒ताय॑ । दे॒वी । उ॒षाः । ई॒य॒ते॒ । सु॒ऽयुजा॑ । रथे॑न ॥
स्वर रहित मन्त्र
आवहन्त्यरुणीर्ज्योतिषागान्मही चित्रा रश्मिभिश्चेकिताना। प्रबोधयन्ती सुविताय देव्यु१षा ईयते सुयुजा रथेन ॥३॥
स्वर रहित पद पाठआऽवहन्ती। अरुणीः। ज्योतिषा। आ। अगात्। मही। चित्रा। रश्मिऽभिः। चेकिताना। प्रऽबोधयन्ती। सुविताय। देवी। उषाः। ईयते। सुऽयुजा। रथेन ॥३॥
ऋग्वेद - मण्डल » 4; सूक्त » 14; मन्त्र » 3
अष्टक » 3; अध्याय » 5; वर्ग » 14; मन्त्र » 3
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अष्टक » 3; अध्याय » 5; वर्ग » 14; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
अथ विदुषीगुणानाह ॥
अन्वयः
हे विदुषि शुभगुणे पत्नि ! त्वं यथा सुयुजा रथेनेव रश्मिभिश्चेकिताना सुविताय प्रबोधयन्ती ज्योतिषा चित्राऽरुणीरावहन्ती मही देव्युषा ईयत आगात्तथा त्वं भव ॥३॥
पदार्थः
(आवहन्ती) समन्तात् प्रापयन्ती (अरुणीः) किञ्चिदारक्ताभाः (ज्योतिषा) प्रकाशेन (आ) (अगात्) आगच्छति (मही) महती (चित्रा) अद्भुतस्वरूपा (रश्मिभिः) स्वकिरणैः (चेकिताना) प्राणिनः प्रज्ञापयन्ती (प्रबोधयन्ती) जागरयन्ती (सुविताय) ऐश्वर्याय (देवी) देदीप्यमाना (उषाः) प्रभातवेला (ईयते) गच्छति (सुयुजा) सष्ठु युञ्जन्त्यश्वान् यस्मिंस्तेन (रथेन) यानेनेव ॥३॥
भावार्थः
अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यदि हृद्या प्रिया सुलक्षणाऽद्भुतरूपा पतिव्रता स्त्री पुरुषं प्राप्नुयात् सा उषा इव कुलं प्रकाशयन्त्वपत्यानि सुशिक्षमाणा सर्वानानन्दयति ॥३॥
हिन्दी (3)
विषय
अब विदुषी के गुणों को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
पदार्थ
हे विद्यायुक्त और उत्तम गुणवाली स्त्रि ! तू जैसे (सुयुजा) उत्तम प्रकार जोड़ते हैं घोड़ों को जिसमें उस (रथेन) वाहन के सदृश (रश्मिभिः) अपने किरणों से (चेकिताना) प्राणियों को जनाती हुई और (सुविताय) ऐश्वर्य के लिये (प्रबोधयन्ती) जगाती हुई (ज्योतिषा) प्रकाश से (चित्रा) अद्भुतस्वरूपवाली (अरुणीः) किञ्चित् लाल आभायुक्त कान्तियों को (आवहन्ती) सब प्रकार प्राप्त कराती हुई (मही) बड़ी (देवी) अत्यन्त प्रकाशमान (उषाः) प्रातःकाल की वेला (ईयते) जाती और (आ, आगात्) आती है, वैसे आप हूजिये ॥३॥
भावार्थ
इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो सुन्दर प्रिया उत्तम लक्षणों से युक्त, अद्भुत रूपवाली, पतिव्रता स्त्री पुरुष को प्राप्त होवे, वह प्रातःकाल के सदृश कुल का प्रकाश करती हुई और सन्तानों को उत्तम शिक्षा देती हुई सब को आनन्द देती है ॥३॥
विषय
'तीव्र बुद्धि' 'स्वस्थ शरीर'
पदार्थ
[१] (अरुणी:) = अरुण वर्णवाली प्रकाश की किरणों को (आवहन्ती) = धारण करती हुई (देवी) = प्रकाशमयी (उषा) = उषा (ज्योतिषा आगात्) = ज्योति के साथ आती है। यह हमारे लिये प्रकाश को करनेवाली होती है। स्वाध्याय के द्वारा ज्ञानवर्धन का साधन बनती हुई यह उषा (मही) = हमारे लिये अत्यन्त महत्त्वपूर्ण होती है, (चित्रा) = अद्भुत व [चित्र] ज्ञान को देनेवाली है। यह (रश्मिभिः) = अपनी रश्मियों के द्वारा चेकिताना हमारे निवास को उत्तम बनाती है व रोगों का अपनयन करती है [कित निवासे रोगापनयेन च] । [२] यह हमें (सुविताय) = उत्तम आचरण के लिये (प्रबोधयन्ती) = जगानेवाली है। यह (सुयुजा) = उत्तम इन्द्रियरूप अश्वों के योगवाले (रथेन) = शरीर रथ से (ईयते) = प्राप्त होती है। उषाकाल का जागरण बुद्धि के वर्धन का भी साधन है [प्रबोधयन्ती] शरीर की स्वस्थता का भी [सुयुजा रथेन] ।
भावार्थ
भावार्थ– उषाकाल का जागरण हमें स्वस्थ शरीर व स्वस्थ मस्तिष्क को प्राप्त कराता है |
विषय
उषावत् विदुषी स्त्री के कर्त्तव्य ।
भावार्थ
जिस प्रकार (देवी) प्रकाश से युक्त (उषाः) प्रभात वेला (अरुणीः) लाल २ कान्तियों को (आवसन्ती) सर्वत्र पहुंचाती हुई (मही) बड़ी (चित्रा) अद्भुत (रश्मिभिः चेकिताना) किरणों से समस्त प्राणियों को ज्ञानवान्, जागृत करती हुई और (प्रवोधयन्ती) अच्छी प्रकार जगाती हुई (सुविताय) सुख प्राप्ति के लिये (सुयुजा) उत्तम सहयोगी (रथेन) वेगवान् सूर्य के साथ (ईयते) आती है उसी प्रकार (उषाः देवी) पति को चाहने वाली, एवं कान्तिमती विदुषी स्त्री, देवी (अरुणीः आवहन्ती) आरक्त कान्तियों को धारण करती हुई (मही) आदरणीय (चित्रा) अद्भुत गुणोंवाली, (चेकिताना) स्वयं ज्ञानवती होकर (रश्मिभिः) किरणों से (ज्योतिषा) तेज से, (सुविताय) उत्तम ऐश्वर्य वा सुख प्राप्त करने वा उत्तम मार्ग से चलने के लिये (प्रबोधयन्ती) सबको ज्ञानयुक्त करती हुई (सुयुजा रथेन ईयते) उत्तम अश्वों से युक्त रथ से आवे ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वामदेव ऋषिः ॥ अग्निलिंगोक्ता वा देवता ॥ छन्दः- १ भुरिक्पंक्तिः । ३ स्वराट् पंक्ति: । २, ४ निचृत्त्रिष्टुप । ५ विराट् त्रिष्टुप । पञ्चर्चं सूक्तम् ॥
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जर मनोहर प्रिय सुलक्षणी, अत्यंत सुंदर पतिव्रता स्त्री पुरुषाला प्राप्त झाली तर ती उषेप्रमाणे कुळाचा उद्धार करून संतानांना सुशिक्षण देत सर्वांना आनंद देते. ॥ ३ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Crimson clad in brilliance, great and glorious, bright with morning rays, comes the blessed dawn by the chariot in top-notch harness, awaking the world to the joy and bliss of the new day.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The attributes of learned women are described.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O learned and virtuous woman ! the way horses carry a chariot well, likewise, you exhort people with the rays of your knowledge in order to enlighten them with your excellence. Thus you acquire peculiar scarlet, like radiant virtues in full scale for them. It is like a goddess and comparable with the advent of nice dawn (Usha).
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
As a beautiful and chaste wife seeks a good husband, she delights all by carrying a good reputation for her family and dynasty and imparts ideal education to their issues.
Foot Notes
(आवहन्ती) समन्तात्प्रापयन्ती । = Acquiring. (अरुणी:) किचिदा-रक्ताभा: । Radiant like scarlet. (चित्रा) अद्भुतस्वरूपा । Peculiar (प्रबोधयन्ती) जागरयन्ती = Awakening, enlightening. (सुयुजा) सुष्ठु युजंन्त्यश्वान् यस्मिंस्तेन । = Well adjusted.
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