ऋग्वेद - मण्डल 4/ सूक्त 14/ मन्त्र 4
ऋषिः - वामदेवो गौतमः
देवता - अग्निर्लिङ्गोक्ता वा
छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
आ वां॒ वहि॑ष्ठा इ॒ह ते व॑हन्तु॒ रथा॒ अश्वा॑स उ॒षसो॒ व्यु॑ष्टौ। इ॒मे हि वां॑ मधु॒पेया॑य॒ सोमा॑ अ॒स्मिन्य॒ज्ञे वृ॑षणा मादयेथाम् ॥४॥
स्वर सहित पद पाठआ । वा॒म् । वहि॑ष्ठाः । इ॒ह । ते । व॒ह॒न्तु॒ । रथाः॑ । अश्वा॑सः । उ॒षसः॑ । विऽउ॑ष्टौ । इ॒मे । हि । वा॒म् । म॒धु॒ऽपेया॑य । सोमाः॑ । अ॒स्मिन् । य॒ज्ञे । वृ॒ष॒णा॒ । मा॒द॒ये॒था॒म् ॥
स्वर रहित मन्त्र
आ वां वहिष्ठा इह ते वहन्तु रथा अश्वास उषसो व्युष्टौ। इमे हि वां मधुपेयाय सोमा अस्मिन्यज्ञे वृषणा मादयेथाम् ॥४॥
स्वर रहित पद पाठआ। वाम्। वहिष्ठाः। इह। ते। वहन्तु। रथाः। अश्वासः। उषसः। विऽउष्टौ। इमे। हि। वाम्। मधुऽपेयाय। सोमाः। अस्मिन्। यज्ञे। वृषणा। मादयेथाम् ॥४॥
ऋग्वेद - मण्डल » 4; सूक्त » 14; मन्त्र » 4
अष्टक » 3; अध्याय » 5; वर्ग » 14; मन्त्र » 4
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अष्टक » 3; अध्याय » 5; वर्ग » 14; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
अथ स्त्रीपुरुषगुणानाह ॥
अन्वयः
हे स्त्रीपुरुषौ ! वां ये वहिष्ठा रथा अश्वास उषसो व्युष्टौ सन्ति ते युवामिहाऽऽवहन्तु। य इमे हि वां सोमा अस्मिन् यज्ञे मधुपेयाय भवन्ति तानिह सेवित्वा वृषणा सन्तौ युवां मादयेथाम् ॥४॥
पदार्थः
(आ) (वाम्) युवयोः (वहिष्ठाः) अतिशयेन वोढारः (इह) अस्मिन् संसारे (ते) (वहन्तु) (रथाः) यानानि (अश्वासः) सद्यो गामिनः (उषसः) प्रातर्वेलायाः (व्युष्टौ) विशिष्टप्रतापे (इमे) (हि) यतः (वाम्) युवयोः (मधुपेयाय) मधुरैर्गुणैः पातुं योग्याय (सोमाः) सैश्वर्याः पदार्थाः (अस्मिन्) (यज्ञे) सङ्गन्तव्ये गृहाश्रमे (वृषणा) वीर्यवन्तौ (मादयेथाम्) आनन्दयतम् ॥४॥
भावार्थः
हे स्त्रीपुरुषा ! यूयं यदि रजन्याश्चतुर्थे प्रहर उत्थाय कृताऽवश्यका यानैः पद्भ्यां च सूर्योदयात् प्राक्छुद्धवायुदेशे भ्रमणं कुर्युस्तर्हि युष्मान् रोगा कदाचिन्नागच्छेयुर्येन बलिष्ठा भूत्वा दीर्घायुषस्सन्तोऽस्मिन् गृहाश्रमे पुष्कलमानन्दं भुङ्ध्वम् ॥४॥
हिन्दी (3)
विषय
अब स्त्री-पुरुष के गुणों को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
पदार्थ
हे स्त्री-पुरुषो ! (वाम्) आप दोनों जो लोग (वहिष्ठाः) अत्यन्त धारण करनेवाले (रथाः) वाहन (अश्वासः) शीघ्र चलनेवाले (उषसः) प्रातःकाल के (व्युष्टौ) विशिष्ट प्रताप में हैं (ते) वे आप दोनों को (इह) इस संसार में (आ, वहन्तु) अभीष्ट स्थान को पहुँचावें और जो (इमे) ये (हि) जिस कारण (वाम्) आप दोनों के (सोमाः) ऐश्वर्य के सहित पदार्थ (अस्मिन्) इस (यज्ञे) मेल करने योग्य गृहाश्रम में (मधुपेयाय) मधुर गुणों से पीने योग्य के लिये होते हैं, इस कारण उनका इस संसार में सेवन करके (वृषणा) पराक्रमवाले होते हुए आप दोनों (मादयेथाम्) आनन्दित होवें ॥४॥
भावार्थ
हे स्त्री पुरुषो ! आप लोग यदि रात्रि के चौथे प्रहर में उठ और आवश्यक कृत्य करके वाहन वा पैरों से सूर्योदय से पहिले शुद्ध वायु देश में भ्रमण करें तो आप लोगों को रोग कभी न प्राप्त होवें, जिससे कि बलिष्ठ और अधिक अवस्थावाले हुए इस गृहाश्रम में बड़े आनन्द को भोगो ॥४॥
विषय
[१] हे (अश्विनी) = देवो, प्राणापानो ! (इह) = इस जीवन में (वहिष्ठाः) = लभ्य स्थान की ओर ले जाने में उत्तम (ते रथाः) = वे शरीरस्थ तथा (अश्वासः) = इन्द्रियाश्व (उषसः व्युष्टौ) = उषा के उदित होते ही (वाम्) = आपको (आवहन्तु) = प्राप्त करानेवाले हों। हम उपाकाल में प्रबुद्ध होकर, स्वास्थ्य सम्बन्धी कार्यों से निवृत्त होकर, प्राणसाधना में प्रवृत्त हों। यह प्राणसाधना ही हमें जीवनयात्रा में सफल बनायेगी। [२] हे वृषणा शक्तिशाली प्राणापानो! (इमे) = ये (सोमाः) = सोम (वाम्) = आपके हैं। ये (हि) = निश्चय से (मधुपेयाय) = माधुर्य के पान के लिये हैं। प्राणसाधना के द्वारा शरीर में ही ऊर्ध्वगतिवाले ये सोम जीवन को मधुर बनाते हैं। इसलिए हे प्राणापानो! आप (अस्मिन् यज्ञे) = इस जीवनयज्ञ में (मादयेथाम्) = हर्ष का अनुभव करानेवाले होवो । प्राणसाधना से 'शरीर, मन व बुद्धि' सभी का स्वास्थ्य प्राप्त होता है, परिणामत: एक अद्भुत आनन्द का भी अनुभव होता है।
पदार्थ
भावार्थ– प्राणायाम द्वारा शक्ति की ऊर्ध्वगति से त्रिविध स्वास्थ्य को प्राप्त करके (शरीर मन व बुद्धि में) हम आनन्द का अनुभव करें।
विषय
स्त्री पुरुषों का परस्पर बन्धन ।
भावार्थ
हे (वृषणा) वीर्यवान्, एवं वीर्यनिषेक करने में समर्थ युवा स्त्री पुरुषो ! (उषसः) दिन के प्रभात वेला के समान (वां) तुम दोनों के बीच में (उषसः) कान्तिमती, प्रातः प्रभा के तुल्य पति की कामना करने वाली स्त्री के (वि-उष्टौ) विशेष कामना से युक्त होने पर ही (ते) वे नाना (वहिष्ठाः) भार वहन करने वाले (रथाः अश्वासः) रथ और अश्व गण (वां वहन्तु) तुम दोनों को देशदेशान्तर पहुंचायें । (इमे हि सोमाः) ये समस्त ऐश्वर्य और ओषधि आदि रस (वां) तुम दोनों के लिये (मधुपेयाय) मधुर जल और अन्न के तुल्य खान पान करने योग्य हैं । (अस्मिन् यज्ञे) इस यज्ञ, परस्पर दान प्रतिदान, सत्संग और मैत्री भाव में आप दोनों (मादयेथाम्) प्रसन्न, हर्षित होकर रहो ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वामदेव ऋषिः ॥ अग्निलिंगोक्ता वा देवता ॥ छन्दः- १ भुरिक्पंक्तिः । ३ स्वराट् पंक्ति: । २, ४ निचृत्त्रिष्टुप । ५ विराट् त्रिष्टुप । पञ्चर्चं सूक्तम् ॥
मराठी (1)
भावार्थ
हे स्त्री-पुरुषांनो ! तुम्ही जर रात्रीच्या चौथ्या प्रहरी उठून आवश्यक कृत्य करून वाहनाने किंवा पायी सूर्योदयापूर्वी शुद्ध वायूमध्ये भ्रमण केल्यास तुम्हाला कधी रोग होणार नाही. त्यामुळे बलवान व दीर्घायुषी बनून गृहस्थाश्रमात अत्यंत आनंद भोगा. ॥ ४ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Come ye Ashvins, harbingers of the dawn, breath and beauty of the morning, men and women dedicated to Divinity, may these strong chariots and horses bring you here in the light of the dawn. These honey drinks of soma, vital energy of life, are for you. Come, virile ones, and rejoice in this yajna (of the creation of a new day).
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The attributes of men and women are stated.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O men and women ! as the sturdy and fast horses (horse-power) carry the transport early morning with great speed and excellently and take you to the destination.. They carry, bath of you to the site of Yajna (non-violent sacrificial act), so that you, both eat and drink the nourishing and sweet stuff (Soma) and enjoy your nuptial life having acquired vitality.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
If, men and women rise quite early and go on morning walk before the sunrise in open fields, they will never fall sick and would become strong and sturdy and will live long span of life. Thus you enjoy full pleasure in the married life in good measure.
Foot Notes
(बर्हिष्ठा:) अतिशयेन वोढार:। = Strong and sturdy load carriers. (अश्वासः ) सद्योगामिनः ।= Fast horses. (मधपेयाय) मधुरंगुणे: पार्तु योग्याय। = Sweet drink to be relished. (यज्ञे) सड्गन्तव्ये गृहाश्रमे । | = =In the married life.
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