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ऋग्वेद मण्डल - 4 के सूक्त 44 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 4/ सूक्त 44/ मन्त्र 7
    ऋषि: - पुरुमीळहाजमीळहौ सौहोत्रौ देवता - अश्विनौ छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    इ॒हेह॒ यद्वां॑ सम॒ना प॑पृ॒क्षे सेयम॒स्मे सु॑म॒तिर्वा॑जरत्ना। उ॒रु॒ष्यतं॑ जरि॒तारं॑ यु॒वं ह॑ श्रि॒तः कामो॑ नासत्या युव॒द्रिक् ॥७॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इ॒हऽइ॑ह । यत् । वा॒म् । स॒म॒ना । प॒पृ॒क्षे । सा । इ॒यम् । अ॒स्मे इति॑ । सु॒ऽम॒तिः । वा॒ज॒ऽर॒त्ना॒ । उ॒रु॒ष्यत॑म् । ज॒रि॒तार॑म् । यु॒वम् । ह॒ । श्रि॒तः । कामः॑ । ना॒स॒त्या॒ । यु॒व॒द्रिक् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इहेह यद्वां समना पपृक्षे सेयमस्मे सुमतिर्वाजरत्ना। उरुष्यतं जरितारं युवं ह श्रितः कामो नासत्या युवद्रिक् ॥७॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इहऽइह। यत्। वाम्। समना। पपृक्षे। सा। इयम्। अस्मे इति। सुऽमतिः। वाजरत्ना। उरुष्यतम्। जरितारम्। युवम्। ह। श्रितः। कामः। नासत्या। युवद्रिक् ॥७॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 4; सूक्त » 44; मन्त्र » 7
    अष्टक » 3; अध्याय » 7; वर्ग » 20; मन्त्र » 7
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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ सज्जनगुणविषयमाह ॥

    अन्वयः

    हे नासत्याऽध्यापकोपदेशकाविहेह वां यद्या समना वाजरत्ना सुमतिरस्ति सेयमस्मे पपृक्षे योऽयं युवद्रिक् कामो जरितारं श्रितस्तं ह युवमुरुष्यतम् ॥७॥ अत्राऽध्यापकोपदेशकराजामात्यसज्जनगुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥७॥ इति चतुश्चत्वारिंशत्तमं सूक्तं विंशो वर्गश्च समाप्तः ॥

    पदार्थः

    (इहेह) अस्मिञ्जगति (यत्) या (वाम्) (समना) सान्त्वनादिगुणयुक्ता (पपृक्षे) सम्बध्नातु (सा) (इयम्) (अस्मे) अस्मान् (सुमतिः) (वाजरत्ना) विज्ञानधनप्राप्तिसाधिका (उरुष्यतम्) सेवेतम् (जरितारम्) सकलविद्यास्तावकम् (युवम्) युवाम् (ह) खलु (श्रितः) आश्रितः (कामः) (नासत्या) धर्म्मात्मानौ (युवद्रिक्) युवां प्रापकः ॥७॥

    भावार्थः

    मनुष्यैः सदात्राप्तानां प्रज्ञेषणीया सत्यस्य कामना च याभ्यां सर्वेच्छा पूर्णा स्यादिति ॥७॥

    हिन्दी (1)

    विषय

    अब सज्जन विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे (नासत्या) धर्मात्मा अध्यापक और उपदेशक जनो ! (इहेह) इस संसार में (वाम्) आप दोनों की (यत्) जो (समना) शान्ति आदि गुणों से युक्त (वाजरत्ना) विज्ञान रूप धन की प्राप्ति सिद्ध करनेवाली (सुमतिः) श्रेष्ठ मति है (सा) सो (इयम्) यह (अस्मे) हम लोगों को (पपृक्षे) सम्बन्धयुक्त करे जो यह और (युवद्रिक्) आप दोनों को प्राप्त करानेवाला (कामः) मनोरथ (जरिताम्) सम्पूर्ण विद्याओं के स्तुति करनेवाले को (श्रितः) आश्रित है (ह) उसी का (युवम्) आप (उरुष्यतम्) सेवन करें ॥७॥

    भावार्थ

    मनुष्यों को चाहिये सदा इस संसार में यथार्थवक्ता पुरुषों की बुद्धि की इच्छा करें और सत्य की कामना करें, जिससे सम्पूर्ण इच्छा पूर्ण होवे ॥७॥ इस सूक्त में अध्यापक, उपदेशक, राजा, अमात्य और सज्जन के गुणों का वर्णन होने से इस सूक्त के अर्थ की पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥७॥ यह चवालीसवाँ सूक्त और बीसवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥

    मराठी (1)

    भावार्थ

    माणसांनी या जगात सदैव विद्वान पुरुषांच्या बुद्धीची इच्छा धरावी व सत्याची कामना करावी. ज्यांच्यामुळे संपूर्ण इच्छा पूर्ण व्हाव्यात. ॥ ७ ॥

    English (1)

    Meaning

    Ashvins, ever constant and true, here itself in this world, may this holy wisdom and knowledge of yours which is peaceable and procurative of science and speed of prosperity and progress, bless us, we pray. Both of you, we pray, protect, promote and elevate the celebrant. Our desire and ambition depends on you and we look forward up to you alone.

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